विवेक मिश्रा
प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जो भ्रूण के प्राकृतिक विकास को प्रभावित करती है। बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का असर उनके गर्भधारण से पहले ही शुरू हो जाता है। पुरुष और महिला, दोनों की प्रजनन क्षमता पर बुरे असर से इसकी शुरुआत होती है।

1 फरवरी, 2023 को एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित चीन के एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से महिलाओं के अंडाशय में बचे अंडों की मात्रा और उनकी गुणवत्ता में गिरावट आने लगती है। चीन में महिलाओं पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ ही एंटी-म्यूलरियन हार्मोन में कमी आने लगती है। एंटी-म्यूलरियन हार्मोन एक प्रोटीन हार्मोन है, जिससे पता चलता है कि किसी महिला की डिम्बग्रंथि में कितने अंडे बचे हैं। शोध के मुताबिक, पीएम 1, पीएम 2.5, पीएम 10 और एनओ 2 में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर बढ़ोतरी पर एंटी-म्यूलरियन हार्मोन में क्रमशः -8.8%, -2.1%, -1.9% और -4.5% की गिरावट आई।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, “पीएम 1 जैसे सूक्ष्म पार्टिकुलर मैटर अपने छोटे आकार और बड़े सतही क्षेत्रफल की वजह से फेफड़ों की पतली रक्त वाहिकाओं को पार करके सीधे रक्त प्रवाह में पहुंच सकते हैं और ओवरी के कार्यों को प्रभावित कर सकते हैं।” हालांकि, वायु प्रदूषकों के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता में गिरावट के इस पूरे तंत्र को वैज्ञानिक अब तक स्पष्ट नहीं कर पाए हैं, लेकिन सीमित साक्ष्यों के आधार पर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सूजन के प्रति होने वाली प्रतिक्रिया को इसकी प्रमुख वजह माना जा रहा है। इसी तरह, चीन में 33,876 पुरुषों पर किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चला कि पीएम 2.5 और पीएम 10 के संपर्क में आने से स्पर्म की कुल और सक्रिय गतिशीलता में कमी आती है। यह शोध पत्र 17 फरवरी, 2022 को जामा नेटवर्क्स में प्रकाशित किया गया।

अगर सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद गर्भधारण हो भी जाता है, तब भी वायु प्रदूषण गर्भ में शिशु के विकास को बाधित कर सकता है, क्योंकि प्रदूषक गर्भनाल को पार कर सीधे भ्रूण के रक्त में प्रवेश कर सकते हैं। जून 2017 में जर्नल ऑफ फैमिली एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ में प्रकाशित ईरान के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से प्लेसेंटा के वजन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्लेसेंटा भ्रूण के विकास को बनाए रखने वाला महत्वपूर्ण अंग है। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित अध्ययनों की एक व्यापक समीक्षा में बताया गया कि कॉर्ड ब्लड यानी गर्भनाल के रक्त में ब्लैक कार्बन के कण पाए गए, जो भ्रूण के यकृत, फेफड़ों और मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। इन प्रदूषकों की उपस्थिति विकसित हो रहे भ्रूण को लगातार नुकसान पहुंचाती रही है, जिससे समय से पहले जन्म का खतरा बढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप, मृत बच्चे के जन्म, जन्म के समय वजन कम होने, नवजात के फेफड़ों के अविकसित होने और जन्म के समय या उसके तुरंत बाद उसकी मृत्यु जैसे खतरों की आशंका बढ़ जाती है।

बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में स्त्री रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष सुधीर गुप्ता कहते हैं कि प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जो भ्रूण के प्राकृतिक विकास को प्रभावित करती है। इसके अलावा वायु प्रदूषण में सल्फर की मात्रा जितनी अधिक होगी, गर्भपात का खतरा उतना ही अधिक होगा। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष भूपेन्द्र शर्मा कहते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं में अनीमिया भी हो सकता है, जिससे स्वस्थ बच्चे को जन्म देने की संभावना कम हो जाती है। कई अध्ययनों से पता चला है कि अगर बच्चा गर्भ में प्रदूषकों के हमले से बच भी जाता है, तो जन्म से पहले और बाद में प्रदूषण के संपर्क में आने से उसके मानसिक और शारीरिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। मई 2022 में न्यूरोसाइंस एंड बिहेवियरल रिव्यूज में प्रकाशित 30 शोध पत्रों की समीक्षा में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से बच्चों के बौद्धिक कौशल, स्मृति और सीखने की क्षमता, ध्यान और निर्णय लेने की शक्ति, भाषा, गणना क्षमता, मोटर व सेंसरी स्किल्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इनमें सबसे खतरनाक प्रदूषक पीएम 2.5, एनओ 2 और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन हैं। जैसे वयस्कों में वायु प्रदूषण ब्लड प्रेशर बढ़ाता है, वैसे ही गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चों का ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। खासकर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के दौरान औसत पीएम 2.5 और ब्लैक कार्बन का संपर्क जितना ज्यादा होगा, नवजात का सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर उतना ही अधिक बढ़ा होगा।

गर्भावस्था में वायु प्रदूषण के संपर्क से बच्चों में जन्मजात हृदय दोष की आशंका भी बढ़ती है, जिससे जीवन की शुरुआत ही मुश्किल हो जाती है। प्रदूषण की मार से फेफड़े भी अछूते नहीं रहते। यह देखा गया है कि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है। पीएम2.5 के ज्यादा संपर्क में रहने वाले बच्चों में गंभीर श्वसन संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि पीएम 2.5 में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से सांस से जुड़े संक्रमण की आशंका और अधिक बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण के चक्रव्यूह से आंतें भी नहीं बच पाती हैं। जन्म के पहले छह महीनों में सांस के साथ शरीर में घुसे प्रदूषक बच्चों की आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की संरचना को प्रभावित करते हैं, जिससे एलर्जी, मोटापा, मधुमेह और यहां तक कि मस्तिष्क विकास पर भी गहरा असर पड़ सकता है। 2020 में गट माइक्रोब्स में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि आंतों में मौजूद ये सूक्ष्मजीव और उनके उप-उत्पाद बच्चे की भूख, इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, मूड और संज्ञानात्मक क्षमता को आकार देते हैं। इन सूक्ष्मजीवों की विविधता में असंतुलन होने पर बच्चों में अस्थमा, टाइप-2 डायबिटीज और अन्य पुरानी, गंभीर बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।

गर्भावस्था में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे की कोशिकाओं की प्रोटीन एक्टिविटी तक में बदलाव आ जाता है। 12 सितंबर, 2023 को मिलान (इटली) में आयोजित “यूरोपीयन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस” में प्रस्तुत एक अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषक ऑटोफैगी प्रक्रिया पर भी असर डालते हैं। तनाव के दौरान कोशिकाओं द्वारा स्वयं को खाकर मरम्मत करने की प्रक्रिया ऑटोफैगी कहलाती है। एनओ 2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) के उच्च स्तर के संपर्क से एसआईआरटी 1 नामक प्रोटीन की मात्रा घटती है, जो आमतौर पर शरीर को तनाव, सूजन और उम्र से संबंधित होने वाले नुकसानों से सुरक्षा प्रदान करता है। यूरोप के कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं न सिर्फ बच्चों के फेफड़ों को, बल्कि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के विकास को भी प्रभावित करता है, विशेषकर उन बच्चों में जो हाइवे या व्यस्त सड़कों के पास रहते हैं।

2013 के एक अध्ययन में तो यातायात प्रदूषण के संपर्क और बचपन में होने वाले कई तरह के कैंसर के बीच संबंध भी पाया गया। शोधों के अनुसार, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से किशोरियों के प्रजनन स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। गर्भ और बाल्यावस्था के दौरान पार्टिकुलेट मैटर एंडोक्राइन (हार्मोन) सिस्टम को बाधित कर देते हैं, जिससे शरीर की प्राकृतिक प्रजनन घड़ी बिगड़ सकती है और किशोरियों में जल्दी मासिक धर्म शुरू होने की संभावना बढ़ जाती है। भारत में स्वास्थ्य विशेषज्ञ पहले से इस बात के सबूत जुटा रहे हैं कि देश में बच्चों की उच्च मृत्यु दर और खराब स्वास्थ्य की एक प्रमुख वजह वायु प्रदूषण बन चुका है।

नवंबर, 2023 में एम्स, दिल्ली और आईआईटी की तरफ से संचालित राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क “कोलैबोरेशन फॉर एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ इफेक्ट रिसर्च, इंडिया” ने एक नीतिगत रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि वायु प्रदूषण भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारक बन गया है, जबकि 14 साल से कम उम्र के बच्चों में यह दूसरा प्रमुख कारक है। 2010 के बाद से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में बाहरी पीएम 2.5 प्रदूषण से संबंधित बच्चों की मौतों का प्रतिशत सबसे अधिक देखा गया। भारत में हुए प्रमुख अध्ययनों की समीक्षा पर आधारित यह नीतिगत रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अगर अभी भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हमारी आने वाली पीढ़ी सांस तक नहीं ले सकेगी।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )
