ललित मौर्या

बुरुंडी ने 20 वर्षों के अथक प्रयास के बाद ट्रेकोमा पर जीत हासिल कर ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आज बुरुंडी को आधिकारिक तौर पर ट्रेकोमा मुक्त घोषित कर दिया है। इस उपलब्धि के साथ ही बुरुंडी अफ्रीका के उन आठ देशों में शामिल हो गया है, जो इस खतरनाक बीमारी से उबर चुके हैं।

यही नहीं, यह देश में समाप्त होने वाला पहला उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) भी बन गया है। देखा जाए तो यह केवल एक बीमारी की हार नहीं, बल्कि गरीबी, उपेक्षा और अंधेरे के खिलाफ एक ऐतिहासिक जीत है। गौरतलब है कि ट्रेकोमा बैक्टीरिया से फैलने वाली संक्रामक बीमारी है, जो आंखों को प्रभावित करती है। इसके लिए क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस नामक बैक्टीरिया जिम्मेवार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह ऐसा रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, गंदी सतहों को छूने या आंख-नाक के रिसाव से सनी मक्खियों के जरिए फैलती है।

इसमें बार-बार संक्रमण होने पर पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं, जिससे आंखों में चोट लगती है और धीरे-धीरे आंखों को रौशनी जाने का खतरा बढ़ जाता है। दुनिया के कई कमजोर और पिछड़े इलाकों में, जहां साफ पानी और साफ-सफाई की पर्याप्त सुविधा नहीं है, यह बीमारी अब भी बेहद आम है। अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया, पश्चिमी प्रशांत और मध्य पूर्व के कमजोर और ग्रामीण इलाकों में यह समस्या अभी भी बनी हुई है। आंकड़े दर्शाते हैं कि आज भी दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं। बुरुंडी की बात करें तो 2007 से पहले वहां इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन उसी साल सरकार ने उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के खिलाफ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की। 2009-10 में किए गए सर्वे से पता चला कि देश के कई हिस्सों में ट्रेकोमा फैला हुआ है। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह पर ‘सेफ’ रणनीति अपनाई गई, जिसमें सर्जरी, एंटीबायोटिक, चेहरे की सफाई और पर्यावरण में सुधार शामिल थे।

इस दौरान करीब 25 लाख लोगों तक यह उपचार पहुंचाया गया। इसके साथ ही बुरुंडी के स्वास्थ्य मंत्रालय के नेतृत्व में, स्थानीय कार्यकर्ताओं की मेहनत, डब्ल्यूएचओ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से यह सपना सच हुआ। डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस ने बुरुंडी को बधाई देते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “ट्रेकोमा जैसी बीमारी को खत्म करना एक बड़ी उपलब्धि है। मैं बुरुंडी के लोगों और सरकार को बधाई देता हूं।“ बुरुंडी की स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर लिडविन बरदहाना का कहना है, “यह मान्यता हमारे देश की स्वास्थ्य समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह 20 वर्षों की मेहनत, राष्ट्रीय प्रयास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की साझा जीत है। मैं सभी साझेदारों, समुदायों और संस्थाओं का धन्यवाद करती हूं, जिनकी मदद से यह ऐतिहासिक उपलब्धि संभव हो सकी।”

32 देशों में अभी भी बनी हुई है यह समस्या

भले है बुरुंडी इस बीमारी से उबर चुका है, लेकिन अभी भी दुनिया के 32 देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। यह वे देश हैं जिसमें 10 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। अकेले अफ्रीका में अप्रैल 2024 तक 9.3 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां इस बीमारी का खतरा बना हुआ है।

मतलब की अफ्रीका इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र है।  देखा जाए तो बीते कुछ वर्षों में ट्रेकोमा के खिलाफ बड़ी प्रगति हुई है। 2014 में जहां 18.9 करोड़ लोगों को एंटीबायोटिक इलाज की जरूरत थी, वहीं 2024 में यह आंकड़ा घटकर 9.3 करोड़ रह गया है, यानी इस दौरान इसमें 51 फीसदी की गिरावट आई है। रुझानों के मुताबिक अफ्रीका में अभी 20 देश ऐसे हैं जहां ट्रेकोमा को खत्म करने के लिए बड़े स्तर पर हस्तक्षेप की जरूरत है, इनमें इथियोपिया, नाइजीरिया, तंजानिया, केन्या और जाम्बिया आदि शामिल हैं।

भारत भी इस बीमारी से हो चुका है मुक्त

बता दें कि भारत भी इस बीमारी से मुक्त हो चुका है। भारत ने 2024 में यह उपलब्धि हासिल की थी। अब तक दुनिया के 24 देश इस बीमारी से उबर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अब तक कुल 57 देश कम से कम एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग से मुक्त हो चुके हैं। बुरुंडी की यह सफलता न केवल लोगों की मेहनत का नतीजा है, बल्कि एक मिसाल भी है कि जब सरकार, समुदाय और वैश्विक संस्थाएं एकजुट होती हैं, तो किसी भी बीमारी को जड़ से मिटाया जा सकता है। यह ऐतिहासिक जीत अन्य देशों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन सकती है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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