दयानिधि

अत्यधिक अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन शरीर में सूजन बढ़ाकर हृदय रोग, कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ाता है। आज की आधुनिक जीवनशैली में सुविधाजनक और स्वादिष्ट खाने की चाह ने हमारी थाली में ऐसे खाद्य पदार्थों को जगह दे दी है, जो शरीर के लिए धीरे-धीरे जहर का काम कर रहे हैं। ये हैं अति-प्रसंस्कृत खाद्य (अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड), यानी अत्यधिक रूप से तैयार किए गए खाद्य उत्पाद, जिनमें पोषक तत्वों की कमी और रासायनिक पदार्थों की अधिकता होती है।

नई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो लोग इन उत्पादों का अधिक सेवन करते हैं, उनके शरीर में सूजन के स्तर काफी ऊंचे पाए गए हैं, जिससे हृदय रोग, कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड क्या हैं?

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड वे खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने, स्वाद बढ़ाने और जल्दी खाने योग्य बनाने के लिए कई तरह के रासायनिक पदार्थों, रंगों और एडिटिव्स से तैयार किया जाता है। इनमें सॉफ्ट ड्रिंक्स, पैकेट वाले स्नैक्स, बर्गर, सॉसेज, बिस्किट, इंस्टेंट नूडल्स, पैकेज्ड जूस, प्रोसेस्ड मीट जैसे खाद्य पदार्थ शामिल हैं। इन खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक पोषक तत्व लगभग न के बराबर होते हैं, जबकि नमक, चीनी और अस्वस्थ (अनहेल्दी) वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है। अमेरिका में किए गए एक सर्वे के अनुसार, वयस्कों के भोजन में 60 फीसदी से अधिक और बच्चों के भोजन में लगभग 70 फीसदी हिस्सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से आता है।

नई रिसर्च में चौंकाने वाले खुलासे

फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी (एफएयू) के चार्ल्स ई. श्मिट कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक बड़े अध्ययन में पाया कि जो लोग अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड सबसे अधिक मात्रा में खाते हैं, उनके शरीर में ‘हाई-सेंसिटिव सी-रिएक्टिव प्रोटीन’ का स्तर काफी अधिक होता है। यह एक महत्वपूर्ण सूजन संकेतक है, जो हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का पूर्व संकेत देता है।

यह अध्ययन 9,254 अमेरिकी वयस्कों पर आधारित था, जिनके खानपान, शारीरिक गतिविधि और स्वास्थ्य स्थिति का विस्तृत विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग अपने कुल कैलोरी का 60 से 79 फीसदी हिस्सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से लेते हैं, उनमें हाई-सेंसिटिव सी-रिएक्टिव प्रोटीन का स्तर सबसे ऊंचा था। इनकी तुलना में जो लोग 0 से 19 फीसदी तक प्रोसेस्ड फूड खाते थे, उनमें सूजन का स्तर काफी कम पाया गया।

कौन लोग हैं सबसे अधिक खतरे में?

अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कुछ समूहों में यह खतरा और भी अधिक पाया गया जिनमें 50 से 59 साल के वयस्कों में सूजन का खतरा 26 फीसदी अधिक था। मोटे लोगों में यह खतरा 80 फीसदी तक बढ़ गया। धूम्रपान करने वालों में जोखिम 17 फीसदी अधिक पाया गया। जबकि शारीरिक गतिविधि न करने वालों में वृद्धि तो देखी गई, लेकिन सांख्यिकीय रूप से बहुत बड़ी नहीं थी। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि खानपान की गुणवत्ता के साथ उम्र, मोटापा और जीवनशैली की आदतें भी सूजन और बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकती हैं।

विशेषज्ञों की राय: चेतावनी और सुझाव

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है की अध्ययन से स्पष्ट है कि जो लोग सबसे अधिक अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन करते हैं, उनमें सूजन का स्तर काफी अधिक होता है। यह परिणाम न केवल चिकित्सा क्षेत्र के लिए बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सी-रिएक्टिव प्रोटीन शरीर में यकृत द्वारा बनाया जाता है और इसका हाई-सेंसिटिव सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट सस्ता, सरल और अत्यधिक संवेदनशील तरीका है जिससे भविष्य में हृदय रोगों की संभावना का पता लगाया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को अपने मरीजों से इस विषय पर बातचीत करनी चाहिए और उन्हें प्राकृतिक व संपूर्ण खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, साबुत अनाज और घर के बने भोजन के सेवन के लिए प्रेरित करना चाहिए।

कैंसर और अन्य बीमारियों से जुड़ाव

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि अमेरिका में कोलोरेक्टल कैंसर (आंत का कैंसर) की दर तेजी से बढ़ रही है, खासकर युवाओं में। उनका मानना है कि यह बढ़ोतरी अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बढ़ती खपत से जुड़ी हो सकती है। साथ ही ये भोजन पाचन तंत्र से संबंधित अन्य बीमारियों का भी कारण बन रहे हैं।

तंबाकू उद्योग जैसी स्थिति

शोधकर्ताओं ने इस स्थिति की तुलना तंबाकू (सिगरेट) उद्योग से की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह सिगरेट के नुकसान के सबूत आने के बावजूद नीतिगत बदलावों में वर्षों लग गए थे, उसी तरह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड कंपनियों का प्रभाव भी बहुत बड़ा है, जिससे नीति परिवर्तन में समय लग सकता है। फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार और स्वास्थ्य संस्थानों को लेबलिंग सुधारने, हानिकारक एडिटिव्स पर नियंत्रण लगाने और स्कूलों में स्वस्थ विकल्प उपलब्ध कराने जैसी नीतियां अपनानी चाहिए।

जागरूकता ही सबसे बड़ा बचाव

आज जब हमारा जीवन तेज रफ्तार का हो गया है, तो तैयार खाने वाले पैक फूड्स आसान विकल्प लगते हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि सुविधा के बदले हम अपने स्वास्थ्य से समझौता कर रहे हैं। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड केवल शरीर को कैलोरी देते हैं, पोषण नहीं। इसलिए हमें अपने आहार में धीरे-धीरे बदलाव लाना होगा – जैसे घर का बना खाना, ताजे फल-सब्जियां, साबुत अनाज और बिना प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देना। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की यही सलाह है कि यदि हम इन खाद्य पदार्थों को सीमित करें और प्राकृतिक भोजन अपनाएं, तो सूजन कम होगी, हृदय और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा घटेगा, और हम एक अधिक स्वस्थ जीवन जी सकेंगे।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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