ललित मौर्या
चिकनगुनिया मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है, जो हर साल करीब 3.5 करोड़ लोगों को बीमार बना रही है। लेकिन अब नई वैक्सीन इस गंभीर संकट के खिलाफ मानवता की बड़ी उम्मीद बनकर उभरी हैं। जर्नल ‘नेचर मेडिसिन’ में प्रकाशित एक नए वैश्विक अध्ययन में दावा किया गया है कि अगर हाल में विकसित वैक्सीन का सही इस्तेमाल किया जाए तो इनकी मदद से चिकनगुनिया के 58 लाख मामले टाले जा सकते हैं।
इतना ही नहीं 1.68 लाख लोग वैक्सीन की मदद से इस बीमारी की वजह से लम्बे समय तक जोड़ों में होने वाले दर्द से बच सकते हैं। साथ ही इनकी मदद से 450 लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। यह वैक्सीन न केवल बीमारी की गंभीरता को कम करती है, बल्कि लोगों की जीवन गुणवत्ता में भी सुधार लाने की क्षमता रखती है।
बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु के कारण अब एडीज मच्छर नए इलाकों में भी फैलने लगे हैं, जिससे दक्षिणी यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में भी चिकनगुनिया के फैलने का खतरा बढ़ गया है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में जब मच्छर एक वैश्विक संकट बन चुके हैं, जिनकी वजह से लाखों लोग दर्द और बीमारी से जूझ रहे हैं, इस बीच यह वैक्सीन इंसानियत के लिए बड़ी उम्मीद बनकर उभरी हैं।
गौरतलब है कि चिकनगुनिया से बचाव के लिए दो वैक्सीन – IXCHIQ (Valneva) और Vimkunya (Bavarian Nordic) – को अमेरिका की एफडीए और यूरोप की ईएमए से मंजूरी मिल चुकी है। इन दोनों वैक्सीन को कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशंस (सीईपीआई) का भी सहयोग प्राप्त है। इन वैक्सीनों को तैयार करने की जरूरत कई दशकों से महसूस की जा रही थी।
चिकनगुनिया एक गंभीर बीमारी है, हालांकि इसमें मृत्यु के मामले कम ही सामने आते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इस बीमारी में औसतन 1,000 पीड़ितों में से एक की मौत हो सकती है। भले ही यह बीमारी ज्यादा लोगों की जान नहीं लेती, लेकिन इसके लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, और करीब 50 फीसदी मरीजों में संक्रमण के महीनों बाद तक जोड़ों में तेज दर्द बना रहता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है।
भारत में सबसे ज्यादा डोज की जरूरत
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि दुनिया के 180 में से 104 देशों में चिकनगुनिया वायरस का संक्रमण या तो जारी है या फिर समय-समय पर उभरता रहता है। चिंता की बात यह है कि 280 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां इसके संक्रमण का खतरा बना रहता है। वहीं जलवायु परिवर्तन के चलते ऐडीज मच्छरों का फैलाव बढ़ रहा है, जिससे चिकनगुनिया भी नए इलाकों को निशाना बना रहा है।
अध्ययन के मुताबिक आज यह बीमारी अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से फैली चुकी है, जबकि आशंका है कि जलवायु परिवर्तन के चलते इसके फैलाव का दायरा दक्षिणी यूरोप और अमेरिका के नए हिस्सों तक बढ़ सकता है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बीमारी हर साल औसतन 3.5 करोड़ लोगों को संक्रमित करती है। आमतौर पर हर 6.2 साल में एक बार इसका बड़ा प्रकोप देखने को मिलता है, लेकिन अध्ययन के अनुसार महामारी वाले वर्षों में करीब आठ फीसदी लोग संक्रमित हो सकते हैं।
अपने अध्ययन में वैक्सीन के प्रभाव का आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन, सीईपीआई, गवी और शैक्षणिक संस्थानों के विशेषज्ञों की एक टीम से सुझाव लिए हैं। उनके अनुसार, यह वैक्सीन बीमारी से 70 फीसदी और संक्रमण से 40 फीसदी सुरक्षा देती है और इसका असर औसतन पांच वर्षों तक बना रहता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि अगर किसी इलाके में संक्रमण फैलने पर वहां की 50 फीसदी आबादी को टीका दिया जाए, तो हर साल करीब 13.2 करोड़ डोज की जरूरत पड़ेगी। इसमें से लगभग एक चौथाई डोज केवल भारत के लिए चाहिए, क्योंकि यहां यह वायरस लंबे समय से फैला हुआ है।
चुनौतियां अब भी हैं बाकी
हालांकि वैक्सीन से उम्मीदें जरूर बढ़ी हैं, लेकिन इसका प्रभावी इस्तेमाल अभी भी कई चुनौतियों से घिरा है। अध्ययन के मुताबिक चिकनगुनिया के लक्षण काफी हद तक डेंगू और जीका वायरस से मिलते-जुलते हैं, जिससे कई बार सही पहचान नहीं हो पाती। इसके अलावा, कई देशों में निगरानी तंत्र कमजोर है, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि वायरस कहां और कितना फैला है।
हालांकि चिकनगुनिया वैक्सीन का विकास एक बड़ी सफलता है, लेकिन वैक्सीन खरीदने में कम आय वाले देशों की मदद करने वाला संगठन गवी ने इसे फिलहाल अपनी लर्निंग एजेंडा में रखा है। इसका मतलब है कि वैक्सीन के असर और उपयोग को लेकर अभी और जानकारी की जरूरत है, ताकि यह तय किया जा सके कि इसे कब और कैसे इस्तेमाल किया जाए।
साथ ही, यह वैक्सीन अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूरी प्राप्त नहीं है, जो गवी के जरिए किसी देश में वैक्सीन शुरू करने के लिए जरूरी शर्त होती है। शोधकर्ता मानते हैं कि वैक्सीन का विकास एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन अभी और काम बाकी है। उन्होंने अपील की है कि लंबे समय तक चलने वाले अध्ययन किए जाएं ताकि यह समझा जा सके कि वैक्सीन कितने समय तक सुरक्षा देती है, यह वायरस के प्रसार को कैसे प्रभावित करती है, और अलग-अलग रणनीतियों के जमीनी असर क्या होंगे।
स्पष्ट है कि चिकनगुनिया के खिलाफ वैक्सीन एक बड़ा बदलाव ला सकती है, लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए वैश्विक सहयोग, निगरानी तंत्र की मजबूती और फंडिंग को लेकर स्पष्ट नीति की जरूरत है। खासतौर पर भारत जैसे देशों में, जहां इसका बोझ सबसे ज्यादा है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )