मनीष कुमार
विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा का देश के ग्रामीण इलाकों में देखा जाना आजकल आम होता जा रहा है। सौर ऊर्जा से ग्रामीण क्षेत्र में कई चुनौतियों का समाधान खोजा जा रहा है। ग्रामीणों क्षेत्र में किसान इसकी मदद से सिंचाई मे सहूलियत पा रहे हैं तो दूसरी तरफ महिलाएं कुटीर उद्योग में इसका इस्तेमाल कर रही हैं।
पहले इस तकनीक का प्रयोग मुख्यतः ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में बिजली पहुंचाने के लिए किया जाता था। अब यह इन इलाकों में रोजगार पैदा करने का नया साधन भी बन चुका है। पिछले कुछ दिनों में कुछ अन्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन भी भारत में इस क्षेत्र में होने वाले रोजगार की अपार संभानावों पर प्रकाश डाला गया है।
पावर फॉर ऑल एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जो ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती है। इस संस्थान के एक नए अध्ययन ने भारत के विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार का आंकलन किया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि 2019 से 2021 के बीच, इस क्षेत्र में 80,000 लोगों को रोजगार मिला जो सीधे तौर पर इस क्षेत्र में काम करते हुये पाये गए। इस क्षेत्र में औपचारिक नौकरियों की संख्या भी बढ़ी है। इस शोध में यह कहा गया है कि 2019 में औपचारिक नौकरियों का योगदान 45 प्रतिशत था, वहीं 2021 में यह बढ़ के 77 प्रतिशत हो गया। इस रिपोर्ट में यह भी यह कहा गया है कि 2023 तक इस क्षेत्र में कुल रोजगार बढ़ के 89,000 तक हो सकता है। इस अध्ययन में भारत के अलावा, इथियोपिया, केन्या, नाइजीरिया और यूगांडा जैसे देशों को भी शामिल किया गया है।
अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, अध्यायनकर्ताओं ने 350 विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा की कंपनियों के साथ बातचीत की। 2019 से 2021 के बीच के रोजगार से जुड़े आंकड़ों को देखा और 2022-23 में रोजगार और विक्रय के आंकलन का भी अध्ययन किया। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2021-23 के बीच में इस क्षेत्र में औपचारिक नौकरियों की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ सकती है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में 2019 से 2021 के बीच (कोरोना काल में) में 42 प्रतिशत तक बेरोजगारी देखी गई थी। हालांकि विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा क्षेत्र में कोरोना से आए मंदी का ज्यादा असर नहीं देखा गया और यहां महज 2.5 प्रतिशत तक की बेरोजगारी दर्ज की गई।
“इस मुद्दे पर यह हमारी दूसरी रिपोर्ट थी। हमनें अपनी पहली रिपोर्ट 2019 में प्रकाशित की थी। 2022 के ताजा रिपोर्ट में हमनें बहुत से विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा की कंपनियों से बात की। जमीनी स्तर पर सर्वे भी किया गया। इस क्षेत्र के रोजगार के मुद्दे को लेकर एक बहुत ही व्यापक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सरकार और निवेशकों को इस क्षेत्र में किन किन जगहों पर ध्यान देने की जरूरत है,” क्रिस्टीना स्कीर्का, पावर फॉर ऑल के चीफ़ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ने बताया।
अन्तर्राष्ट्रीय संस्था आईआरईएनए की एक दूसरी रिपोर्ट में भी इस क्षेत्र में हो रहे बदलाव पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि नवीन उर्जा के क्षेत्र में पूरे दुनिया में रोजगार के अवसर बढ़ रहें है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि 2021 में पूरी दुनिया में इस क्षेत्र से जुड़े कुल रोजगार में 2/3 रोजगार सिर्फ एशिया में ही उत्पन्न हुए। इसमें 42 प्रतिशत रोजगार केवल चीन में उपलब्ध हुए जबकि विश्व में कुल रोजगार का सात प्रतिशत रोजगार भारत में देखा गया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और भारत ने सौर उर्जा में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की है। वर्ष 2021 में, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया में तीसरा देश भारत ही है जिसने सौर उर्जा का सबसे ज्यादा विकास किया है। ग्रिड से जुड़े नवीन उर्जा के क्षेत्र में देश में 2021 में 1,37,000 रोजगार देखने को मिला जबकि ऑफ-ग्रिड क्षेत्र में लगभग 80,600 रोजगार देखने को मिले, इस रिपोर्ट में कहा गया है।
अभिषेक जैन, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडबल्यू) में सौर उर्जा और आजीविका मामलों के विशेषज्ञ हैं। उन्होने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “नवीन उर्जा के दूसरे क्षेत्रों की तुलना में विकेंदीकृत नवीन उर्जा में अधिक रोजगार के अवसर हैं। इससे बिजली की जरूरत तो पूरी होती ही है बल्कि आस पास के लोगों के आजीविका सुरक्षित करने में भी मदद मिलती है। सीईईडबल्यू का आंकलन कहता है कि अगर भारत 2030 तक 500 गीगावाट नवीन उर्जा का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो पाता है तो देश में लगभग 35 लाख रोजगार पैदा होगा। उसमें से अधिकतर रोजगार सोलर रूफटॉप के क्षेत्र में होगा जो विकेंद्रीकृत उर्जा का ही एक भाग है। लेकिन इसके सीधे रोजगार के अलावा देश में उस समय तक 2.5 करोड़ लोगों को परोक्ष रूप से फायदा होगा।
महिलाओं की भागीदारी
पावर फॉर ऑल का अध्ययन कहता है कि उनके द्वारा पांच देशों में विकेंद्रीकृत उर्जा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पर भी शोध किया गया। इन सारे देशों की तुलना में भारत में इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीधारी सबसे कम पाई गई। 2021 में कुल रोजगार में केवल 20 प्रतिशत महिलाओं को ही रोजगार करते हुये पाया गया जबकि 2019 में यह 23 प्रतिशत था।
इस रिपोर्ट में महिलाओं को बराबर के काम के लिए कम वेतन की बात भी कही गई जो लिंग के आधार पर भेदभाव को भी दर्शाता है। “इस क्षेत्र में समान काम के लिए महिलाओं को 20 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। जब बात उच्च प्रबंधन की नौकरियों की होती है तो अंतर और बढ़ जाता है और महिलाओं को 40 प्रतिशत तक कम वेतन मिलता है। जबकि अकुशल महिला श्रमिकों के वेतन में 4 प्रतिशत का अंतर पाया गया,” इस रिपोर्ट में कहा गया है।
सुरभि राजगोपालन, सेलको इंडिया में वरिष्ठ प्रोग्राम मैनेजर हैं। वह कहती हैं, “इस क्षेत्र में कुशल और प्रतिभाशाली महिलाओं की कमी नहीं है। लेकिन अगर महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी है तो हमें कुछ चीजों का ध्यान रखना पड़ेगा। हमें ग्रामीण इलाकों में स्थापित संस्थानों जैसे महिला समूहों और ग्रामीण जीविका मिशन के माध्यम से सही प्रशिक्षण देकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। हमें ऐसी नीति बनाने की जरूरत है जो महिलाओं की जरूरतों और उनके मांगों पर ध्यान दे सके।”
उपेंद्र भट, सी-काइनेटिक्स नाम के सह-संथापक हैं। भट का मानना है कि विकेंद्रीकृत उर्जा क्षेत्र में बहुत संभावना है। चूंकि इस क्षेत्र का मुख्य विकास ग्रामीण इलाकों में होना है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि इससे इन इलाकों से होने वाला पलायन कुछ हद तक रुक सकता है। इसको लेकर बेहतर नीति बनाने की जरूरत है।
( ‘मोंगाबे ‘हिंदी से साभार )