ललित मौर्या

भारतीय शहरों में बढ़ता तापमान अपने साथ नई चुनौतियां भी पैदा कर रहा है। इसका एक जीता जागता उदाहरण हाल ही में दिल्ली में सामने आया जब भीषण गर्मी और लू के चलते गर्मियों की छुट्टियों के लिए स्कूलों को जल्द बंद कर देना पड़ा। गौरतलब है कि दिल्ली में पारा 47.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में भारतीय शहरों में तापमान इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है, क्या शहरों में तेजी से बढ़ता कंक्रीट, पेड़ो और जलस्रोतों का होता विनाश इसके लिए जिम्मेवार है। इसमें कोई शक नहीं की शहर जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के संयुक्त प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। लेकिन शहरीकरण किस हद तक बढ़ते तापमान और गर्मी के लिए जिम्मेवार है, इसे समझना भी बेहद जरूरी है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा है कि अकेले शहरीकरण ने भारतीय शहरों में गर्मी को 60 फीसदी तक बढ़ा दिया है। उनके मुताबिक पूर्वी भारत के टियर-2 शहर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उदाहरण के लिए ओडिशा के भुवनेश्वर में शहरीकरण ने वार्मिंग में 90 फीसदी का योगदान दिया है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर से जुड़े शोधकर्ता सौम्या सत्यकांत सेठी और वी विनोज द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सिटीज में प्रकाशित हुए हैं। देखा जाए तो जिस तरह से शहरों में पेड़ों, हरित क्षेत्रों, झीलों को पाट कर कंक्रीट का जंगल बढ़ रहा है। उसका खामियाजा शहरों में आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इतना ही नहीं पेड़ों की ठंडी छांव की जगह जिस तरह एयर कंडीशन जैसी मशीनों पर निर्भरता बढ़ रही है, वो भी भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी की वजह बन रही है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों के दौरान भारत के 141 प्रमुख शहरों में बढ़ते तापमान पर शहरीकरण और स्थानीय जलवायु में आते बदलावों के प्रभावों का अध्ययन किया है। उन्होंने इन शहरों की सीमाओं को मैप करने के लिए उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है।

पेड़ों को काट, झीलों को पाट, बिछ रहा कंक्रीट का जंगल

इन शहरों में बढ़ते तापमान के रुझानों को जानने के लिए 2003 से 2020 के बीच नासा के मोडिस एक्वा उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है। तापमान के यह आंकड़े भूमि की सतह के पास बढ़ते तापमान के रुझानों को दर्शाते हैं। इनकी मदद से शोधकर्ताओं ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते तापमान के रुझानों की तुलना की है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां ग्रामीण और गैर-शहरी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान के पीछे की वजह क्षेत्रीय तौर पर जलवायु में आता बदलाव है। वहीं शहरों में बढ़ते तापमान के लिए जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण दोनों ही जिम्मेवार हैं। इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ता कंक्रीट और भूमि उपयोग में आता बदलाव अतिरिक्त गर्मी पैदा कर रहा है।

बढ़ता शहरीकरण ऐसे अपरिवर्तनीय इंसानी हस्तक्षेपों में से एक है, जो बड़ी तेजी से प्राकृतिक आवासों को निगल रहा है। यह सही है कि इसने सामाजिक आर्थिक बदलावों को गति दी है, लेकिन साथ ही इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो यह शहर भूमि के केवल एक फीसदी हिस्से पर मौजूद हैं, लेकिन साथ ही यह दुनिया की आधी आबादी का घर हैं।

अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी। देखा जाए तो सामाजिक उन्नति का संकेत माने जाने के बावजूद तेजी से होते अनियोजित शहरीकरण ने दुनिया के कई हिस्सों में पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। इससे स्वयं इंसान भी सुरक्षित नहीं है।

इंसान स्वयं लिख रहा विनाश की पटकथा

भारतीय शहर भी इन बदलावों से परे नहीं है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 2050 तक शहरी आबादी दोगुनी हो सकती है। अनुमान है कि तब भारत में करीब 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगें। नतीजन यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला शहरी क्षेत्र बन जाएगा। अनुमान है कि भारत 2050 तक ऊर्जा मांग में सबसे अधिक वृद्धि के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था भी होगा। इस स्तर पर होते विकास का समर्थन करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाएगा, जो उत्सर्जन में वृद्धि की वजह बनेगा। इसका असर स्थानीय और क्षेत्रीय जलवायु पर भी पड़ेगा।

इसमें कोई शक नहीं कि भारत पहले ही जलवायु में आते बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील है। यही वजह है कि ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 ने भी भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली चरम मौसम घटनाओं के मामले में सातवें सबसे प्रभावित देश के रूप में दर्शाया है। वैज्ञानिक अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं भारत जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कमजोर देशों में से एक होगा, खासकर भारतीय शहर, तेजी से होते शहरीकरण और जलवायु जोखिमों के चलते विशेष रूप से असुरक्षित होंगे।

हालांकि शहरों में बढ़ती गर्मी में शहरीकरण की कितनी भूमिका है यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। यही वजह है कि अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अलग-अलग अध्ययन किया है।

गौरतलब है कि इससे  पहले किए एक अन्य अध्ययन में पूर्वी भारत के शहर भुवनेश्वर में बढ़ती गर्मी में शहरीकरण के प्रभावों को उजागर किया था। इस अध्ययन के मुताबिक भुवनेश्वर में रात के समय भूमि की सतह के तापमान में होने वाली 70 से 80 फीसदी वृद्धि के लिए शहरीकरण जिम्मेवार है।

वहीं इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने देश के 141 शहरों में बढ़ते तापमान और शहरीकरण का अध्ययन किया है। इसके नतीजे दर्शाते हैं कि दिल्ली, मुंबई की तुलना में पूर्वी भारत के टियर-2 शहरों में बढ़ती गर्मी में शहरीकरण की भूमिका कहीं ज्यादा होगी। आंकड़ों के मुताबिक जहां भुवनेश्वर में शहरीकरण के चलते गर्मी में 90 फीसदी का इजाफा हुआ है। वहीं जमशेदपुर में यह आंकड़ा 100 फीसदी दर्ज किया गया।

इसी तरह रायपुर में 77.7 फीसदी, पटना में 67.2 फीसदी, इंदौर में 66.9 फीसदी, भिलाई में 65.4 फीसदी, औरंगाबाद में 61.8 और पुणे के बढ़ते तापमान में 61.2 फीसदी के इजाफे के लिए शहरीकरण जिम्मेवार रहा।

कुल मिलकर देखें तो अध्ययन किए गए भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है। इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ती गर्मी के कुल 37.7 फीसदी हिस्से के लिए शहरीकरण जिम्मेवार है। वहीं यदि आसपास के गैर शहरी क्षेत्रों से तुलना करें तो शहरों की गर्मी में 60 फीसदी इजाफे के लिए शहरीकरण जिम्मेवार था।

अध्ययन में शहरीकरण के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि शहरी परिदृश्य में आता बदलाव वाष्पीकरण की वजह से वातावरण के ठंडे होने के प्रभाव को खो देता है। शहरों में बढ़ता कंक्रीट और डामर, वायु प्रवाह में बदलाव और बढ़ती इंसानी गतिविधियों जैसे कारणों के चलते गर्मी को रोके रखता है।

नतीजन हीट आइलैंड इफेक्ट के चलते शहर और गर्म होते जाते हैं। इसका असर बारिश और प्रदूषण पर भी पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ शहरों में बढ़ती इंसानी गतिविधियां बढ़ते उत्सर्जन की वजह बनती हैं। जो जलवायु में आते बदलावों में योगदान देता है। इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में घनी आबादी और बुनियादी ढांचे के कारण, वे लू, बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु-परिवर्तन के प्रभावों के प्रति भी अग्रिम पंक्ति में हैं।

देखा जाए तो शहरीकरण की वजह से शहरों में बढ़ती गर्मी के बीच जो असमानता है, वो शहरी नियोजन में मौजूद खामियों को दूर करने और बढ़ते तापमान को सीमित करने के प्रयासों के महत्व को रेखांकित करती है। जो इन क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी के साथ-साथ, प्रदूषण, आपदाओं जैसे अन्य मुद्दों को हल करने में भी मददगार हो सकते हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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