रोहिणी के मुर्ति
अगर आप यह मानते हैं कि आप जो सोच रहे हैं, वह कोई नहीं जान सकता तो संभावना यही है कि आप ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) में ताजा प्रगति से वाकिफ नहीं हैं। सीधी-सादी लगने वाली इस प्रौद्योगिकी के कई अन्य सांसारिक प्रभाव हैं।
दिसंबर 2022 में इसकी झलक देखने को मिली, जब यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे आदमी का वीडियो जारी किया जो चुपचाप अपने दिमाग में वाक्यों को पढ़ रहा था और एक मशीन उसके शब्दों को दोहरा रही थी। वह आदमी बिना कोई आवाज निकाले स्क्रीन से पढ़ रहा था, “नमस्कार! मैं आशा करता हूं आप सकुशल हैं। मैं एस्प्रेसो कॉफी के एक्स्ट्रा शॉट के साथ कैपूचीनो से शुरुआत करूंगा।” विश्वविद्यालय की वेबसाइट के अनुसार इस पर स्पीकर से रोबोटिक आवाज आई, “नमस्कार! आप सकुशल? कैपूचीनो, एक्स्ट्रा शॉट। एस्प्रेसो।”
जब हम कुछ सोचते हैं या कुछ क्रियाएं करते हैं, जैसे कॉफी का कप उठाना या नृत्य करना, या जब हम आराम भी करते हैं, तब हमारी तंत्रिका कोशिकाओं की गतिविधि में उतार-चढ़ाव आता है। इसे न्यूरोइमेजिंग उपकरणों जैसे ईईजी (जो सिर पर सेंसर डालकर विद्युत गतिविधि की माप करता है, जिसका यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के शोध में उपयोग किया गया था), फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग या एफएमआरआई (जो रक्त प्रवाह से जुड़े बदलावों की खोज करके मस्तिष्क की गतिविधि की माप करता है) और मैग्नेटोएनसेफालोग्राफी या एमईजी (जो मस्तिष्क के विद्युतीय प्रवाहों से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्रों की माप करता है) से मालूम किया जा सकता है।
हालांकि ये उपकरण दशकों से हमारे बीच मौजूद हैं, लेकिन एआई मॉडलों के उपयोग ने दिमाग पढ़ने वाली प्रौद्योगिकियों को उन्नत कर दिया है, जिनको विचारों या गतिविधियों के साथ मस्तिष्क संकेतों की एक प्रवृति के साथ मिलाने और उन्हें वाक्यों में बदलने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। एआई की एक विशेष शाखा जिसे मशीन लर्निंग कहा जाता है, कंप्यूटरों को ऐसा करने के लिए स्पष्ट तौर पर प्रोग्राम किए बिना ही सीखने की क्षमता प्रदान करती है। शोधकर्ता विभिन्न मुहावरों या शब्दों के अनुरूप ब्रेन डेटा डालकर सबसे पहले एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करते हैं। एक बार जब यह जटिल न्यूरल डेटा में मानचित्रित किए जाने वाले शब्दों के प्रतिरूप को देखना सीख लेता है, तो वो मस्तिष्क की अंदरुनी भाषा को भी डीकोड कर सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी के प्रोफेसर और इस अध्ययन की अगुवाई करने वाले सीटी लिन ने डाउन टू अर्थ से कहा, “हमारी प्रणाली और अन्य वाणिज्यिक बीसीआई के बीच एक प्रमुख अंतर मानवीय मस्तिष्क से ज्यादा विस्तृत विचारों को डीकोड करना और एक स्वाभाविक भाषा वाक्य का निर्माण करने की क्षमता होगी।” शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी प्रौद्योगिकी की सटीकता 40 प्रतिशत है और वह इसे बढ़ाकर 90 प्रतिशत करने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन अभी पीयर-रिव्यूड जर्नल में इसका प्रकाशन होना बाकी है।
बीसीआई उपयोगकर्ताओं को उनके हाथ-पैर, जीभ, आंखें या होंठ हिलाए बिना अपने मस्तिष्क संकेतों के जरिए कंप्यूटरों को कमांड भेजने में सक्षम बनाता है। इस प्रौद्योगिकी का विविध क्षेत्रों में उपयोग है। उदाहरण के तौर पर चिकित्सा के क्षेत्र में यह उन लोगों की मदद कर सकता है जो चोट, पक्षाघात या लकवे के कारण बोलने की क्षमता खो चुके हैं, ऐसे लोग इसके जरिए संवाद कर सकते हैं। शरीर के किसी हिस्से को हिलाने-डुलाने की महज कल्पना भर से कोई मरीज एक व्हील चेयर को चला सकता है या कृत्रिम अंग का संचालन कर सकता है। मस्तिष्क के द्वारा यंत्रों का नियंत्रण करने के लिए गेमिंग ऐप्लिकेशंस में भी बीसीआई की संभावना टटोली जा रही है।
पिछले कुछ वर्षों में बीसीआई में भारी विकास देखा गया है। उदाहरण के लिए मई 2023 में अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नेचर न्यूरोसाइंस पेपर में ये घोषणा की कि सीमेंटिक डिकोडर नाम का उनका एआई सिस्टम कहानी सुनते हुए या कहानी सुनाए जाने की कल्पना करते हुए (सिडनी अनुसंधान की तरह शब्द-दर-शब्द विवरण दिए बिना) किसी व्यक्ति के विचारों का भावार्थ पकड़ सकता है। अगस्त 2023 में मेटा एआई और पेरिस स्थित इकोल नॉर्मेल सुपिरियर, पीएसएल यूनिवर्सिटी ने बताया कि उनका एआई मॉडल लघु कथा सुन रहे 175 स्वस्थ प्रतिभागियों के मस्तिष्क की रिकॉर्डिंग से उनके अनुरूप व्याख्यान खंडों की पहचान कर सकता है। इसने 41 प्रतिशत तक की सटीकता दिखाई है। इसके निष्कर्षों को नेचर मशीन इंटेलिजेंस में प्रकाशित किया गया है।
हालांकि ये सभी उदाहरण बिना चीरफाड़ वाली बीसीआई प्रौद्योगिकी के हैं। 30 जनवरी 2024 को न्यूरालिंक के संस्थापक एलन मस्क ने घोषणा की कि कंपनी ने क्लिनिकल ट्रायल में एक इंसान में एआई से संचालित बीसीआई प्रत्यारोपित किया है। 20 फरवरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक साक्षात्कार में मस्क ने एलान किया कि वह व्यक्ति केवल कल्पना मात्र से ही स्क्रीन पर कर्सर को आगे बढ़ाने में सक्षम है। कंपनी ने अपने दावे के समर्थन में इस प्रयोग को लेकर किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं किया है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि शल्य क्रिया से लगाए जाने वाले इम्प्लांट संक्रमण का खतरा साथ लाते हैं।
प्रौद्योगिकी पर शोध प्रकाशनों की संख्या से बीसीआई की बढ़ती लोकप्रियता जाहिर होती है। फ्रंटियर्स इन सिस्टम्स न्यूरोसाइंस में 2021 का एक पत्र कहता है कि 2003-2005 में महज 306 की तुलना में 2018-2020 में इस प्रौद्योगिकी पर 2,000 से भी अधिक अध्ययनों का प्रकाशन हुआ। पिछले दो दशकों में हुई इस प्रगति से उस इकलौते मोर्चे पर प्रौद्योगिकी के निहितार्थों के बारे में चिंता बढ़ गई है जो अब तक मोटे तौर पर निजी रहा है यानी मानव मस्तिष्क। यूनेस्को के एक पॉडकास्ट में ड्यूक विश्वविद्यालय की नीता ए फराहानी ने कहा, “निजी विचारों के बारे में सोचने, सपने बुनने और नए विचार रखने के साथ-साथ अपनी पहचान सुनिश्चित करने में सक्षम होने के लिए हमें इस एक स्थान की दरकार है।” वह चेतावनी देते हुए कहती हैं कि इससे निगमों और सरकारों द्वारा व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुंच हासिल कर लेने का खतरा है।
सरकार और निजी कंपनियां इस होड़ में शामिल हो गई हैं। उदाहरण के तौर पर 2019 में अमेरिकी रक्षा उन्नत शोध परियोजना एजेंसी ने सक्रिय साइबर प्रतिरक्षा प्रणालियों और मानव-रहित हवाई वाहनों के झुंड के नियंत्रण जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा अनुप्रयोगों के साथ बीसीआई उपकरणों के विकास के लिए 6 संगठनों को कोष आवंटित किए।
नैतिक चिंताएं
जैसे-जैसे शोधकर्ता बीसीआई को परिपूर्ण बनाने की कोशिश कर रहे हैं, समाज विज्ञानी, नैतिकतावादी और कानूनी विशेषज्ञ आचार-विचार और निजता से जुड़ी चुनौतियों पर विचार कर रहे हैं। एक अहम मसला बिना चीरफाड़ वाले बीसीआई उपकरणों के उपयोग की सुगमता का है। लुडविग मैक्सिलियन यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख, जर्मनी में फिलॉसोफी ऑफ माइंड एंड न्यूरोसाइंसेज की अध्यक्ष ओफेलिया डेरॉय ने डाउन टू अर्थ से कहा, “इसका मतलब है प्रौद्योगिकी की व्यापक स्वीकार्यता में संभावित बढ़ोतरी, जो डेटा संग्रहण और प्रसंस्करण के आचार संबंधी मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने में चुनौतियां पेश कर सकती हैं।”
जर्नल ऑफ कॉग्निटिव एनहैंसमेंट में 2018 का एक पत्र यह रेखांकित करता है कि किस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती पर केंद्रित पोर्टेबल ईईजी उपकरणों का उपभोक्ता क्षेत्र में तेजी से प्रसार हो रहा है। वर्तमान में ऐसे उपकरणों की कीमत 99 अमेरिकी डॉलर से लेकर 799 डॉलर तक है और इन्हें कंपनी वेबसाइट या अमेजन जैसे खुदरा विक्रेताओं से खरीदा जा सकता है। उपयोगकर्ता के हाथ में धारण किया जाने वाला सेंसर उनके मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकॉर्ड कर उसे कंप्यूटर पर प्रदर्शित करता है। यह उपभोक्ताओं को यह सूचना दे सकता है कि किसी क्रिया पर उनका मस्तिष्क कैसे प्रतिक्रिया जताता है। एक बार इसकी पहचान हो जाने पर वह एक वांछित स्थिति तक पहुंचने के लिए अपने बर्ताव में बदलाव लाने के लिए खुद को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
कंपनियां सबसे योग्य या उपयुक्त व्यक्तियों के चयन के लिए अपनी भर्ती प्रक्रिया में ईईजी का उपयोग कर सकती हैं। हालांकि, हो सकता है कि नौकरी के अभ्यर्थियों को अपना ब्रेन डेटा साझा करने के प्रभावों की समझ न हो या वे इसके संभावित दुरुपयोग के बारे में जागरूक न हों। उदाहरण के तौर पर कंपनियां एक उम्मीदवार की किसी मानसिक बीमारी के प्रति संवेदनशीलता की खोज में रह सकती हैं। 2023 की यूनेस्को रिपोर्ट (अन्विलिंग द न्यूरोटेक्नोलॉजी लैंडस्केप साइंटिफिक एडवांसमेंट एंड मेजर ट्रेंड) के अनुसार इससे सूचना से लैस होकर सहमति जताने की प्रक्रिया की वैधता कमजोर पड़ जाती है।
ऐसी आशंकाएं हैं कि प्रौद्योगिकी मानसिक समग्रता को नुकसान पहुंचा सकती है। मानसिक समग्रता का संबंध किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मानसिक स्थितियों और मस्तिष्क डेटा के स्वामित्व से है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी सहमति के बिना कोई भी उसे पढ़ने, फैलाने या उसमें बदलाव करने का हकदार नहीं होता। रिपोर्ट बताती है, “अगर व्यक्ति विशेष की इच्छित क्रियाओं को बदलने या हैकर के आदेशों को मानने के लिए इन उपकरणों से छेड़छाड़ या उन्हें हैक किया जाता है तो इससे न केवल व्यक्ति की भौतिक स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि इसके महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकते हैं, जिनमें घबराहट, अवसाद या मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अन्य मसले शामिल हैं।”
नेचर में 2017 के एक पत्र ने एक और डरावना, काल्पनिक परिदृश्य प्रस्तुत किया। कल्पना कीजिए कोई लकवाग्रस्त मनुष्य रोबोटिक हाथ को हिलाने डुलाने के लिए बीसीआई क्लीनिकल ट्रायल में हिस्सा ले। अब मान लीजिए, वह व्यक्ति किसी से चिढ़ा हुआ है और उसके विचार एआई ने पढ़ लिए हैं। तत्काल ही वह रोबोटिक हाथ उस व्यक्ति को चोट पहुंचा देता है। यह एक ऐसी हरकत है जिसे अन्यथा उस मनुष्य द्वारा अंजाम दिए जाने की संभावना नहीं है।
यूनेस्को ने ऐसी चिंताओं के समाधान में मदद करने के लिए बचाव व्यवस्था तैयार करने की योजना बनाई है। चिली, फ्रांस और स्पेन जैसे देश मानसिक समग्रता की रक्षा करने के लिए कानून बना रहे हैं या निजी डेटा संरक्षण कानूनों में न्यूरो डेटा को शामिल कर रहे हैं। डेरॉय के अनुसार, “सरकारें इन चिंताओं के प्रति जागरूक हो रही हैं, मानसिक निजता और समकालीन समाज में इसके मूल्य जैसे सवालों की निश्चित रूप से पड़ताल की जानी चाहिए।”
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )