लता जिष्णु

जुगाड़, जीवन का सबसे उत्कृष्ट भारतीय दृष्टिकोण है। जब संसाधन सीमित हो, तो हम खर्चीली तकनीक में अपने हिसाब से कामचलाऊ सुधार कर समस्या से लड़ना सीखते हैं और इसके लिए हम उन चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हैं। जुगाड़, उत्तर भारत का एक आम बोलचाल का शब्द है, जिसका धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है और सभी इसका अर्थ जानते हैं। जुगाड़ का मतलब एक ऐसी तरकीब है जिसके जरिए पारम्परिक उपायों से परेशानी का हल निकालने की जगह काफी सस्ते में समाधान कर लिया जाता है। यह तरकीब हालांकि देशव्यापी है, जहां समस्याएं और खर्चीली उच्च तकनीक ने लोगों को सरल समाधान तलाशने को विवश कर दिया है।

जुगाड़ का ईजाद भारत की आजादी के शुरुआती वर्षों में ही हो गया था क्योंकि उस वक्त संसाधनों की कमी थी, मगर लोगों में तेजी से आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा थी। संघर्ष के उन वर्षों में पंजाब के सुदूर इलाकों के किसान यातायात के ऐसे साधन की जरूरत महसूस कर रहे थे, जो यांत्रिक हो। चूंकि, उस वक्त ऐसा कुछ नहीं था जिसे सस्ते में खरीद सकते, तो उन्होंने एक अजीब मशीन का इस्तेमाल कर काम चलाऊ ट्रैक्टर बना लिया। किसानों ने ट्रॉली के चेसिस पर एक डीजल पंप डाला और उससे चक्का और स्टीयरिंग रॉड को जोड़ दिया। इस तरह मोटर चालित वाहन का जन्म हुआ और इसे जुगाड़ कहा गया। इस पर कोई पेटेंट नहीं था और किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था, सो जिनके पास साधन उपलब्ध थे, उन्होंने इस जुगाड़ का इस्तेमाल कर अपने तरीके से इसमें बदलाव किया। इस तरह बहुत सारे लोगों ने जुगाड़ को जीवन-रक्षक बनाया।

इस जमीनी नवाचार को कई तरह से और दूसरी व्यवस्थाओं में दोहराया गया। हालांकि, इसका सबसे ज्यादा प्रयोग परिवहन के क्षेत्र में ही हुआ। अगर आप यह सोच रहे हैं कि जुगाड़ का इस्तेमाल केवल ग्रामीण लोगों ने किया, तो आप गलत हैं। वर्षों तक समाज के धनाढ्य तबके के लिए भी जुगाड़, खर्च कम करने का सबसे आसान तरीका रहा और अब भी है। अगर किसी को विदेश निर्मित रेफ्रिजरेटर या कार की मरम्मत की जरूरत पड़ती तो खर्च कम करने के लिए कहीं और से पुर्जे मंगाकर ठीक कर लिया जाता। संक्षेप में कहें, तो यह नवाचार का किफायती तरीका था। जुगाड़ पर केंद्रित किताब जुगाड़ ऐटीट्यूड के लेखक विरेंदर कपूर कहते हैं, “अगर आवश्यकता, आविष्कार की जननी है, तो सख्त आवश्यकता, जुगाड़ की जननी है।” वह आगे लिखते हैं कि असंभव स्थिति के लिए शुरू किया गया समाधान धीरे-धीरे हर समस्या, हर व्यक्ति, हर चीज या हर स्थिति के लिए व्यावहारिक ज्ञान समाधान या सबसे अलग समाधान बन गया। इसने ऐसा अर्थ ले लिया, जो असाधारण था। परिस्थितियों के मद्देनजर भारत का राष्ट्रव्यापी जुगाड़ एक ऐसा तरीका बन गया, जो तुरंत समाधान देता था। लिहाजा, किसी ने भी स्थायी समाधान के बारे में नहीं सोचा।

हालांकि, लम्बी अवधि में इस तरह का जुगाड़ लाभकारी नहीं रहता। इसके पीछे पहला कारण तो यह है कि जुगाड़ से बने उत्पाद की क्षमता प्रायः असली उत्पाद जितनी नहीं होती है। इसके अलावा अगर बड़े स्तर पर इस तरह का उत्पाद तैयार किया जाता है और अगर पहले से किसी ने इसका पेटेंट कराया हुआ है, तो ये पेटेंट का उल्लंघन भी हो सकता है। इस तरह के उत्पाद का बड़े स्तर पर उत्पादन संभव नहीं है क्योंकि ज्यादातर जुगाड़ उत्पाद विशेष तौर पर स्थानीय जरूरतों को ही पूरा करते हैं। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने ग्रामीण इलाकों में बहुत सारे नवाचारों का प्रदर्शन किया, लेकिन ऊपर बताई गई वजहों के चलते ही इनके उत्पादन में इजाफा करने में मदद नहीं कर पा रहा। बिजली के बिना चलने वाला मिट्टी कूल क्ले रेफ्रिजरेटर इसका एक बड़ा उदाहरण है। ग्रामीण इलाकों के लिए यह एक अहम उत्पाद है, लेकिन महंगा होने के कारण लोगों के लिए यह हतोत्साहित करने वाला उत्पाद साबित हुआ और साथ ही इसका उठाव भी बेहद खराब रहा है।


मगर, इसके बावजूद जुगाड़ वर्षों से वैज्ञानिकों और प्रबंधन विशेषज्ञों में दिलचस्पी पैदा करता रहा है और उन्होंने समाज के गरीब तबके की जरूरतों को पूरा करने में जुगाड़ के महत्व पर बहुत सारे सिद्धांत बुने। जुगाड़ पर शुरुआती किताब करीब 20 साल पहले सीके प्रह्लाद ने लिखी थी, जिसका शीर्षक था, द फॉर्चून ऑफ द पिरामिट । तब से अब तक कई प्रबंधन अध्ययन सामने आ चुके हैं, मसलन कि “जुगाड़ इनोवेशन: ए फ्रुगल एंड फ्लेक्सिबल एप्रोच टु इनोवेशन फॉर ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी।” मगर इन अध्ययनों का फोकस पूरी तरह भारत था। जुगाड़ नवाचार अब मार्केटिंग सिद्धांत बन गया है, जो वैश्विक स्तर पर ध्यान खींच रहा है क्योंकि कंपनियों को यह एहसास हो रहा है कि विकासशील देशों के बाजार पर पकड़ बनाने में यह किफायती नवाचार अहम हैं।

द वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूआईपीओ) ने अपनी रिपोर्ट “डायरेक्शन ऑफ इन्नोवेशन” में जुगाड़ को पर्याप्त जगह दी है और इसे निम्न-आय वाले विकासशील देशों की मदद करने के एक प्रमुख तरीके के रूप में चिन्हित किया है। लेकिन एक अहम अंतर है। भारत में देशव्यापी जुगाड़ टिकाऊ नहीं था, वहीं, डब्ल्यूआईपीओ ने ऐसी कंपनियों का उदाहरण दिया जिन्होंने गरीब विकासशील देशों (जो विकसित देशों द्वारा बनाई गई तकनीकों तक पहुंच पाने में असमर्थ हैं) की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उच्चस्तरीय तकनीकों का इस्तेमाल कर लम्बे समय तक टिकने वाले उत्पाद बनाए। यह बहुत जरूरी भी है क्योंकि इस तरह के देशों के पास अपनी खास सामाजिक-आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए तकनीकी समाधान निकालने की क्षमता नहीं है। चूंकि, कई प्रमुख रुकावटों में एक रुकावटों कीमत भी है, तो नवाचार के अधिकतर प्रयास कीमत कम करने पर या तकनीक में सिर्फ जरूरी विशेषताएं रखने और अन्य विशेषताओं को हटा देने पर होते हैं। डब्ल्यूआईपीओ ने जुगाड़ या किफायती नवाचार के उदाहरण के रूप में ट्रांजिन का जिक्र किया है, जो चीनी मोबाइल फोन निर्माता और सेवा प्रदान करने वाली अपेक्षाकृत अनजान कंपनी है। यह कंपनी खासतौर पर अफ्रीकी बाजार के लिए मोबाइल फोन बनाती है।

अफ्रीका के मोबाइल मार्केट के 40 प्रतिशत हिस्से पर इस कंपनी ने कब्जा कर लिया है, जो चीन की अपनी कंपनी हुआवेई, शाओमी सहित एप्पल, सैमसंग और नोकिया जैसी बड़ी कंपनियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन है। कंपनी ने अफ्रीका में यह मुकाम अफ्रीकी उपभोक्ताओं की जरूरतों को समझते हुए हासिल किया। कंपनी ने उनकी जरूरतों के मुताबिक, तकनीक डिजाइन करते वक्त कमजोर नेटवर्क सिग्नल, सीमित कवरेज, बिजली की अनिश्चित उपलब्धता जैसी दिक्कतों का समाधान किया। डब्ल्यूआईपीओ का कहना है कि किफायती नवाचार या जुगाड़ का मतलब महज खर्च और इनपुट्स में कटौती करना नहीं है। डब्ल्यूआईपीओ ने कहा, “सीमांत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर सस्ता उत्पाद बनाने में उच्च-स्तरीय तकनीकी जानकारी की जरूरत पड़ती है।” कुछ विशेषज्ञों ने टाटा द्वारा भारत के उन परिवारों के लिए टिकाऊ समाधान के रूप में ठोस और किफायती वाहन नैनो कार बनाने को कॉरपोरेट कोशिश का उदाहरण बताया, जो चार सदस्यों के आवागमन के लिए दोपहिया वाहन इस्तेमाल करते हैं। मगर ये प्रयोग विफल हो गया, क्योंकि कंपनी बाजार के जिस वर्ग को लक्ष्य कर रही थी, उसकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का आकलन करने में फेल हो गई।


बहुराष्ट्रीय कंपनियां जुगाड़ को उच्च स्तर पर और वैश्विक मार्केट में ले जाने के लिए भारत की मदद कर रही हैं। अमेरिका की कंपनी जीई जब ईसीजी और अल्ट्रासाउंड मेडिकल उपकरणों को भारत और चीन के ग्रामीण इलाकों में ले गई, तो उसने सस्ता और छोटा उपकरण बनाने के लिए इन देशों में अपनी अनुषंगी का इस्तेमाल किया, लेकिन उसने गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया। डब्ल्यूआईपीओ के अनुसार, “परिणाम इतना सफल रहा कि जीई ने इन उत्पादों को उच्च-आय वाले देशों में भी बेचना शुरू कर दिया।”
विदेशी तकनीकों के स्थानीय स्तर पर संयोजन से नवाचार आता है, जो औद्योगीकृत देशों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। लेकिन क्या यह सच में जुगाड़ ही है जैसा हम समझते हैं या फिर एक तरह का नवाचार?

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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