डी एन एस आनंद
साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड द्वारा वैज्ञानिक चेतना अभियान के तहत जारी परिचर्चा – ‘राष्ट्रीय युवा संवाद’ का ऑनलाइन आयोजन 16 जून को संपन्न हो गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खां, (प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक) अध्यक्ष, साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने की। जबकि संचालन राज्य के पूर्व बाल विज्ञानी (NCSC) अनंत नाथ गिरि, (बोकारो) ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन जमशेदपुर की विज्ञान शिक्षिका रेशमा जबीन ने किया। परिचर्चा का विषय था – “वर्तमान समय में छात्र-छात्राओं-युवाओं की चुनौतियां एवं संभावनाएं” वक्ता पैनल में शामिल सदस्य थे – प्रीति, रिसर्च स्कॉलर, महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक हरियाणा, ग्यांती कुमारी, रिसर्च स्कॉलर दक्षिण बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी, गया, बिहार, निकिता सिंह, रिसर्च इंटर्न, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी उत्तरप्रदेश एवं अंजू अंसीमा टुड्डू पूर्व बाल विज्ञानी (NCSC), दुमका, झारखंड।
परिचर्चा में शामिल लोगों का स्वागत एवं विषय प्रवेश करते हुए साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड के महासचिव डी एन एस आनंद ने कहा कि यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड इसे “वैज्ञानिक चेतना वर्ष” के रूप में मना रही है। उल्लेखनीय है कि संविधान ने समाज में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है। इसी कड़ी में ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के ‘राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना अभियान’ के तहत राष्ट्रीय परिचर्चा – ‘युवा – संवाद’ का आयोजन पिछले कुछ समय से किया जा रहा है, जिसकी यह चौथी कड़ी है। इस सिलसिले में देश के छात्र -छात्राओं- युवाओं के बीच वैज्ञानिक चेतना अभियान को आगे बढ़ाने पर खास बल दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का है जिन्हें वैश्वीकरण, तेज तकनीकी प्रगति एवं मोबाइल-इंटरनेट के मौजूदा दौर ने काफी गहरे प्रभावित किया है। इससे नई, युवा -पीढ़ी के सामने कई गंभीर चुनौतियां उभर कर सामने आई हैं, तो असीम संभावनाओं के नए द्वार भी खुले हैं। सजगता, बेहतर संवाद एवं उसका सही उपयोग ही उनके आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
परिचर्चा की शुरुआत करते हुए महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक, हरियाणा की रिसर्च स्कॉलर प्रीति ने कहा कि इंटरनेट प्रगति के मौजूदा दौर में लोगों का अकेलापन लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी परिसर में स्टूडेंट्स, जीवन से जुड़ी समस्याओं पर बातचीत नहीं कर पाते। सोशल मीडिया पर हर प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध है पर वहां फिल्टर की कोई व्यवस्था नहीं है और छात्र – युवा सही गलत सूचनाओं को जानने, समझने में सक्षम नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि बच्चे बाहर जाकर खेलना पसंद नहीं कर मोबाइल में डूब रहे हैं, यह स्थिति ठीक नहीं है। विभिन्न आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बेरोजगारी के गहराते संकट को रेखांकित किया। प्रीति ने युवाओं में बढ़ता अकेलापन, रोजगार की समस्या, अकेलापन के कारण बढ़ती बीमारियां, मंहगी होती शिक्षा, युवाओं में स्किल की कमी तथा उनमें रातों रात अमीर बनने की ललक को प्रमुख चुनौती करार देते हुए व्यवस्था के मौजूदा ढांचे में आमूलचूल बदलाव पर बल दिया।
परिचर्चा की दूसरी वक्ता थीं सेंट्रल यूनिवर्सिटी, दक्षिण बिहार, गया, बिहार की रिसर्च स्कॉलर ज्ञांती। उन्होंने शिक्षा की मौजूदा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए शिक्षा की खराब होती गुणवत्ता को बड़ी चुनौती करार दिया। उन्होंने शिक्षा का निजीकरण, सरकारी एवं निजी क्षेत्र की शिक्षा के कारण लगातार बढ़ती असमानता तथा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध सुविधाओं में फर्क व उससे सामने आने वाली दुश्वारियों को रेखांकित किया। बढ़ती बेरोजगारी, स्किल डेवलपमेंट की चुनौती को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि गार्जियन ही बच्चों का भविष्य तय करना चाहते हैं। इससे बच्चों पर पढ़ाई-लिखाई का दबाव काफी बढ़ जाता है। वे खेलकूद एवं रचनात्मक गतिविधियों से दूर होकर दबाव, तनाव , डिप्रेशन का शिकार हो कई बार आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। युवाओं के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि तकनीकी प्रगति, नई शिक्षा नीति, कैरियर के बढ़ते विकल्प आदि ने युवाओं के सामने अनेक संभावनाओं को जन्म दिया है। इस क्रम में उन्होंने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिए जाने पर बल दिया।
परिचर्चा की तीसरी वक्ता थीं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की रिसर्च इंटर्न निकिता सिंह। उपलब्ध आंकड़ों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वैसे भारत युवाओं का देश है तथा 2023 तक यहां युवाओं की संख्या काफी होगी पर यहां शिक्षा की गुणवत्ता का ठीक नहीं होना दुखद है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के गिरते स्तर ने कॉलेज – युनिवर्सिटी से पढ कर निकलने वाले छात्र- छात्राओं के सामने कैरियर की बड़ी चुनौती सामने ला दी है। मौजूदा मैकाले शिक्षा पद्धति की सीमाएं, रोजगार के घटते अवसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती भूमिका आदि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बदलते दौर में लीक से हटकर पहल करने की जरूरत है। बच्चों पर पढ़ाई, कैरियर का भारी दबाव, उससे उत्पन्न तनाव से पैदा होने वाली दुश्वारियों का उल्लेख करते हुए उनके बीच क्रिएटिव एक्टिविटी के आगे बढ़ाने पर बल दिया। उन्होंने इस मामले में गार्जियन को भी जागरूक करने, समाधान में जन भागीदारी को बढ़ाने एवं प्रकृति -पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया।
परिचर्चा की चौथी वक्ता थीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस की पूर्व बाल विज्ञानी एवं एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल, काठियाजोरिया, दुमका झारखंड की छात्रा अंजु अंसीमा टुड्डू। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिभाशाली बच्चे तो हैं पर उन्हें आगे बढ़ने के लिए सही मंच नहीं मिल पाता। समुचित साधन सुविधाओं का अभाव बच्चों की पढ़ाई एवं कैरियर के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। जागरूकता एवं सही सोच के अभाव में ग्रामीण क्षेत्र में गार्जियन बच्चों को पढ़ाई-लिखाई, कैरियर के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ा पाते। बल्कि परंपराओं एवं रूढ़ मान्यताओं के कारण वे लड़कियों की शादी कम उम्र में कर देना अधिक जरूरी समझते हैं जो ठीक नहीं है। हालांकि उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में मौजूद परंपरागत ज्ञान की चर्चा करते हुए उसे आगे बढ़ाने पर बल दिया तथा बच्चों को एक बेहतर मंच प्रदान करने की साइंस फॉर सोसायटी झारखंड की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बताया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए वारंगल, तेलंगाना के NIT के छात्र निखिल ने कहा कि मौजूदा शिक्षा में ज्ञान पर बल नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यक्ति केन्द्रित एवं पैसा केंद्रित समाज में सर्वत्र पैसे वालों की पूछ होती है। सही जानकारी एवं जागरूकता के अभाव में गार्जियन का जोर अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर बनाने पर ही होता है। और गार्जियन के सपोर्ट के बिना नई पीढ़ी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल होगा। अतः इसको लेकर समाज में जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ अली इमाम खां ने कहा कि साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड ‘युवा -संवाद’ को दिशा देने का हर संभव प्रयास कर रही है तथा इससे यह बात सामने आ रही है कि अपने सामने मौजूद चुनौतियों एवं संभावनाओं को लेकर आज के युवा क्या सोचते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता, उसकी पहुंच उसके कारगर होने की समस्या बनी हुई है तथा इसमें मौजूद गैर-बराबरी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि बाजार का बढ़ता प्रभाव, रोजगार के अवसर में कमी एवं उसमें मौजूद भेदभाव, युवाओं में मानसिक दबाव, तनाव, डिप्रेशन एवं मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पैदा कर रहा है। उन्होंने इसको लेकर लोगों में आवश्यक जागरूकता पैदा करने, वस्तुस्थिति को तथ्यपरक तर्कसंगत ढंग से समझने एवं उसके समाधान की दिशा में सही एवं ठोस पहल किए जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि लोगों में वैज्ञानिक सोच एवं वैज्ञानिक व्यवहार का विकास चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने एवं सुलझाने में हमारी मदद करेगा। उन्होंने स्कूल – कॉलेज की सीमाओं से बाहर निकल गांव मुहल्लों में भी ग्रुप एक्टिविटी को आगे बढ़ाए जाने पर बल दिया ताकि हम समाज को बेहतर ढंग से समझ सकें। व्यक्तित्व के विकास के लिए समाज के साथ इंटरेक्शन को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने की बजाय उन्हें संघर्ष करना भी सिखाना चाहिए। और संघर्ष से ही व्यक्ति में सामूहिक, वैज्ञानिक चेतना का विकास होता है। उन्होंने संविधान के जन हितकारी प्रावधानों को समाज में बेहतर एवं प्रभावशाली ढंग से लागू करने पर बल दिया ताकि हर नागरिक तक उसका लाभ पहुंच सके।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जमशेदपुर की विज्ञान शिक्षिका रेशमा जबीन ने मौजूदा दौर में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका एवं लोगों में रातोंरात मिलेनियर बनने की ललक की चर्चा करते हुए कहा कि पैनल के वक्ताओं ने मौजूदा दौर में युवाओं के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों के साथ साथ उन संभावनाओं की भी विस्तृत चर्चा की है, जो मौजूदा निराशा के दौर में भी उम्मीद बंधाती है। उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ समस्याओं की बातें नहीं कर, उनके समाधान की बातें करने, उनसे टकराने के लिए भी तैयार रहना चाहिए तथा इसमें समाज की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड की राष्ट्रीय परिचर्चा ‘युवा -संवाद’ को महत्वपूर्ण पहल बताते हुए इसे सतत आगे बढ़ाने पर बल दिया ताकि इस अभियान से समाज और देश के अधिक से अधिक लोगों, खासकर छात्र -छात्राओं एवं युवाओं को जोड़ा जा सके। उन्होंने आयोजन में शामिल होने के लिए सबों का आभार व्यक्त किया।