अमृत चंद्र
गुफाओं में रहना कभी आरामदायक नहीं था. तब लोगों को खाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर शिकार करना पड़ता था. पत्थरों पर सोना पड़ता था. लेकिन, उसी दौरान आदिमानव ने आराम के लिए अपने बिस्तर में कुछ बदलाव किए थे. आइए जानते हैं कि उनके बिस्तर कैसे थे ?
हमारे पूर्वज यानी करीब 1,00,000 साल पहले के आदिमानवों को हर दिन जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता था. उन्हें पेट भरने के लिए अपनी जिंदगी खतरे में डालकर जंगली जानवरों का शिकार करना पड़ता था. जानवरों की खाल और पेड़ों की छाल से वे अपना शरीर जैसे-तैसे ढकते थे. समय के साथ उन्होंने खेती की खोज की. वहीं, गुफाओं में रहने वाले तब के मानव ने पत्थरों पर सोने के बजाय नए तरह के बिस्तर की खोज कर ली थी. दक्षिण अफ्रीका के प्राचीन निवासियों ने गुफाओं में अपने बिस्तरों को पत्थरों के मुकाबले ज्यादा आरामदायक बना लिया था.
गुफाओं में रहना कभी आसान नहीं था. उसी दौर में दक्षिणी अफ्रीका के मानव ने शरीर को ज्यादा आराम देने के लिए अपने घरों को ज्यादा से ज्यादा आरामदायक बनाना शुरू कर दिया था. इसी क्रम में उसने अपने बिस्तर पर राख और घास का बिछौना बिछाना शुरू कर दिया था. जर्नल साइंस के नए अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, राख और घास से बने बिस्तरों पर एक तरफ उन्हें ज्यादा आराम मिला, तो दूसरी तरफ कीड़े-मकोड़ों से भी बचाव हो सका. रिपोर्ट के मुताबिक, मानव ने विकास के क्रम में एक लाख साल पहले ही इस आरामदायक बिस्तर को बना लिया था.
किस तकनीक के जरिये खोजा गया आरामदायक बेड
शोधकर्ताओं ने इससे पहले बताया था कि दक्षिण अफ्रीका में सिब्दू के मानव ने 77 हजार साल पहले पौधों का इस्तेमाल कर बिस्तर बनाया था. तब शोधकर्ताओं ने बताया था कि मानव ने राख और औषधियों गुणों वाले पौधों की मदद से बिस्तर बनाया था, जो काफी आरामदायक था. अब नए शोध में पता चला है कि बिस्तर के आरामदायक होने का सिलसिला एक लाख साल पहले ही शुरू हो गया था. नई खोज के नतीजे दक्षिण अफ्रीका क बॉर्डर गुफा में किए गए शोध से निकले हैं. इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि इसमें 2.27 लाख साल पहले मानव रहते थे. माइक्रोस्कोपिक और स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीक का इस्तेमाल कर किए गए अध्ययन से पता चला कि बिस्तर में इस्तेमाल की गई सफेद राख गुफा में इंसान के पहुंचने के समय की है.
शोधकर्ताओं को राख और पौधों से बना बिस्तर मिला
शोधकर्ताओं का दावा है कि गुफा के एक हिस्से में सफेद राख और पौधों से बना मिश्रण पाया गया है. उनका दावा है कि मानव इसका इस्तेमाल बिस्तर के लिए करते थे. दरअसल, राख कीड़ों को बिस्तर पर चढ़ने और उनके डंक को बेकार कर देती है. वहीं, राख के कारण कीड़ों में पानी की कमी हो जाती है. इससे वे मर जाते हैं. उन्हें इस मिश्रण में कैम्फर की पत्तियों के अवशेष मिले. इस खुश्बूदार पौधे का इस्तेमाल आज के दौर में भी दक्षिण अफ्रीका में इंसेक्ट रेपेलेंट के तौर पर किया जाता है. साथ ही इनका इस्तेमाल आज भी बिस्तरों में किया जाता है. इससे उनकी कीड़ों से बचाव को लेकर तैयार की गई थ्योरी को सपोर्ट मिलती है.
बॉर्डर गुफा से शुरू हुआ आरामदायक बिस्तर का दौर
शोधकर्ताओं को विश्वास है कि बॉर्डर गुफाओं में शुरुआती दौर में रहने वाले मानव पौधों का इस्तेमाल आरामदायक और कीट-पतंगों से मुक्त बिस्तर बनाने के लिए करते थे. हालांकि, सोने के लिए मुलायम पत्तियों को इकट्ठा करने का काम ज्यादा प्रभावशाली नहीं दिख रहा है. फिर भी मानव ने करीब 1,00,000 साल पहले सोने के लिए आरामदायक बिस्तर का विकास कर लिया था. इसके बाद भी सोने के लिए आरामदायक बिस्तर की खोज उस समय से पहले की जरूर मालूल पड़ती है, जो अब तक शोधकर्ता मानते आए हैं. मानव ने जीने ही नहीं, आरामदायक जीवन जीने के लिए नई खोज करने का सिलसिला काफी पहले ही शुरू कर दिया था.
(‘डाउन-टू-अर्थ‘ पत्रिका से साभार)