ललित मौर्य

इससे बड़ी विडंबना क्या होगी की साढ़े तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश में अभी भी करोड़ों बच्चे कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं। मतलब कि आजादी के 75 साल बाद भी हम अपने बच्चों के लिए पोषण की समुचित व्यवस्था नहीं कर पाए हैं।

दुनिया भर में कुपोषण की स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि देश में अभी भी पांच वर्ष से कम उम्र के 2.19 करोड़ बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई की तुलना में कम है। मतलब की देश के 18.7 फीसदी बच्चे वेस्टिंग का शिकार हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक वेस्टिंग, कुपोषण से जुड़ी एक ऐसी समस्या है जिसमें बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई के लिहाज से कम रह जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समस्या में बच्चा अपनी लम्बाई की तुलना में काफी पतला रह जाता है।

देखा जाए तो दक्षिण सूडान के बाद इस मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है। गौरतलब है कि दक्षिण सूडान में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 22.7 फीसदी बच्चे वेस्टिंग की इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं यमन में 16.4 फीसदी, सूडान में 16.3 फीसदी और श्रीलंका में 15.1 फीसदी बच्चे इस समस्या का शिकार हैं।

हालांकि वेस्टिंग के शिकार बच्चों की संख्या के लिहाज से देखें तो भारत इन देशों से कहीं आगे है। दुनिया में वेस्टिंग के शिकार करीब आधे बच्चे भारत में हैं। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट “लेवल्स एंड ट्रेंड इन चाइल्ड मालन्यूट्रिशन 2023” में सामने आई है, जिसे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और वर्ल्ड बैंक ने संयुक्त रूप से जारी किया है।

पोषण के लक्ष्य से काफी दूर है भारत

पोषण को लेकर जो 2030 के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनके अनुसार दुनिया में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में वेस्टिंग की दर को 3 फीसदी से नीचे लाना है।  ऐसे में क्या भारत 2030 तक इसके लिए निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर पाएगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। हालांकि आंकड़े जो दर्शाते हैं उनके मुताबिक भारत इस लक्ष्य से काफी पीछे है और इसे हासिल करना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है।

वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 4.5 करोड़ बच्चे वेस्टिंग का शिकार हैं। मतलब की दुनिया के 6.8 फीसदी बच्चे कुपोषण की इस समस्या से जूझ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण एशिया में इसका प्रसार सबसे ज्यादा है, जहां भारत में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।

बच्चों में वेस्टिंग के लिए मुख्य तौर पर उनके भोजन में पोषक तत्वों की कमी या बार-बार होने वाली बीमारियां जिम्मेवार हैं। यह स्थिति बच्चों के जीवन तक को खतरे में डाल सकती हैं। इतना ही नहीं वेस्टिंग का शिकार बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है। जो लम्बे समय में उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकती है।

आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में 1.36 करोड़ बच्चे गंभीर वेस्टिंग से पीड़ित थे। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जितने बच्चे गंभीर वेस्टिंग से पीड़ित हैं उनमें से करीब तीन-चौथाई एशिया में रह रहे हैं जबकि अन्य 22 फीसदी अफ्रीका के हैं।

ऐसा नहीं है कि भारत में सिर्फ वेस्टिंग के मामले में स्थिति खराब है। यदि बच्चों में कुपोषण को देखें तो देश में स्टंटिंग की समस्या भी काफी गंभीर है। रिपोर्ट में जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 31.7 फीसदी बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं। वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो इस मामले में देश पहले स्थान पर है। जहां इतनी बड़ी संख्या में बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं।

रिपोर्ट का अनुमान है कि वेस्टिंग को लेकर जिस तरह से स्थिति में सुधार हो रहा है, उसको देखकर नहीं लगता की दुनिया के करीब आधे देश इसके लिए तय लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगें। ऐसे में यदि हमें इन लक्ष्यों को हासिल करना है तो प्रयासों की धुरी को कहीं ज्यादा रफ्तार देनी होगी।

देखा जाए तो कुपोषण कोई ऐसी बीमारी नहीं जिसे ठीक न किया जा सके। बस हमें इसपर ध्यान देने की जरूरत है। न केवल नीति स्तर पर बल्कि परिवार में भी बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें कैसा आहार दिया जाता है, इसको ध्यान में रखकर इस समस्या को काफी हद तक सीमित किया जा सकता है।

    (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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