अमृत चंद्र
वैज्ञानिकों ने मानव कोशिकाओं का इस्तेमााल कर लैब में बायोकंप्यूटर बनाया है. उनके मुताबिक, उन्होंने ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर ऐसा कंप्यूटर बना लिया है, जो इंसानों की तरह सोच-समझकर फैसला लेगा. उनका दावा है कि ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुकाबले ज्यादा सक्षम होगा.
हॉलीवुड की साइंस फिक्शन मूवीज में सभी ने देखा होगा कि एक रोबोटिक कैरेक्टर है, जो इंसानों की तरह सोचता है. इंसानों की ही तरह उसमें इमोशन भी डेवलप हो जाते हैं. यूनिवर्सल सोल्जर और टर्मिनेटर के मेन लीड कैरेक्टर करीब करीब ऐसे ही हैं. जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास हुआ तो लोगों को लगा कि अब ऐसे रोबोट आएंगे, जो इंसानों की तरह व्यवहार करेंगे. अब वैज्ञानिकों ने मानव कोशिकाओं का इस्तेमाल कर ऐसा कंप्यूटर बना लिया है, जिसके बारे में जानकार आप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को भूल जाएंगे.
वैज्ञानिकों ने बीते एक दशक के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये इंसानी दिमाग की तरह काम करने वाले कंप्यूटर्स बनाने की कोशिश की. अब वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस की मदद से ऐसा कंप्यूटर तैयार कर लिया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को भी पीछे छोड़ देगा. उनका दावा है कि ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कई गुना बेहतर होगा. वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क कोशिकाओं का इस्तेमाल कर बनाए कंप्यूटर को बायोकंप्यूटर नाम दिया है.
क्या है ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस, कैसे करेगी काम?
अमेरिका की जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस नए तरह का क्षेत्र है. जहां, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को चिप या दूसरी तरह से डिवाइस में इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस लैब में तैयार ऑर्गन्स से जुड़ा हुआ होता है. दरअसल, वैज्ञानिक जिन टिश्यूज की मदद से लैब में ह्यूमन ब्रेन सेल्स बना रहे हैं, ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस उनकी मदद से ही काम करेगा. बायोकंप्यूटर में इस ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जाएगा.
ह्यूमन ब्रेन की तरह काम करेगा बायोकंप्यूटर
बायोकंप्यूटर पर काम करहे वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ये ह्यूमन ब्रेन की तरह ही काम करेगा. ऐसे में बायोकंप्यूटर्स को किसी भी तरह के फैसले तक पहुंचने के लिए इंसान की मदद की दरकार नहीं रहेगी. अंतरराष्ट्रीय शोध दन में शामिल जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस हार्टंग के मुताबिक, तैयार किए गए प्रोग्राम की मदद से ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस को इंप्लीमेंट किया जाएगा.
ओआई और एआई में कितना है अंतर?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ह्यूमन ब्रेन की तुलना में बहुत तेजी से गणनाएं करता है. हालांकि, जब दिमाग लगाकर फैसला लेने के मामले में एआई को इंसानों की मदद की दरकार होती है. वहीं, ऑर्गेनॉयड इंटेलिजेंस एआई से अलग और बेहतर काम कर सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, ओआई इंसानों की तरह सोच-समझकर फैसला ले सकता है. इसी कारण बायोकंप्यूटर को एआई ये लैस सिस्टम के मुकाबले बहुत ज्यादा बेहतर कहा जा रहा है. बायोकंप्यूटर एआई से लैस सिस्टम के मुकाबले ज्यादा सटीक और लॉजिकल फैसले ले पाएंगे.
क्या ह्यूमन ब्रेन के छोटे संस्करण बन रहे?
ब्रेन ऑर्गेनॉयड्स असल में मानव मस्तिष्क के छोटे संस्करण नहीं होते हैं, बल्कि ये पेन डॉट-साइज सेल कल्चर में न्यूरॉन्स होते हैं, जो दिमाग की तरह काम करने में सक्षम होते हैं. बाल्टीमोर में जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और व्हिटिंग स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में पर्यावरणीय स्वास्थ्य व इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. थॉमस हार्टंग ने 2012 में मानव त्वचा के नमूनों को बदलकर मस्तिष्क के अंगों को विकसित करना शुरू किया. ये ‘बायोकंप्यूटर’ अल्जाइमर जैसी बीमारियों के लिए फार्मास्युटिकल परीक्षण में क्रांति लाने, मानव मस्तिष्क की ज्यादा जानकारी जुटाने और कंप्यूटिंग के भविष्य को बदलने के लिए ब्रेन ऑर्गनॉयड्स के नेटवर्क को नियोजित करेंगे.
बायोकंप्यूटर पर सवाल भी उठा रहे लोग
वैज्ञानिक बायोकंप्यूटर्स के लिए जॉन्स हॉप्किंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की लैब में स्टेम सेल की मदद से ब्रेन तैयार कर रहे हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, ह्यूमन ब्रेन के अलग हिस्सों की सेल्स काम भी अलग ही करती हैं. इनकी मदद से बायोलॉजिकल हार्डवेयर काम करेंगे. इसके गलत इस्तेमाल की आशंकाओं पर वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हम उस सीमा से आगे बढ़ चुके हैं. ह्यूमन टिश्यूज की मदद से लैब में कई छोटे दिमाग विकसित किए जा चुके हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ऑर्गेनॉयड दर्द महसूस करेंगे. हालांकि, अब इस पर कुछ सवाल भी उठने लगे हैं. कुछ वैज्ञानिकों ने पूछा है कि मिनी ब्रेन तैयार करने के लिए कोशिकाएं देने वाले लोगों से मंजूरी ली गई है या नहीं.
( न्यूज 18 हिन्दी से साभार )