संतोष कुमार

डेली लाइफ में कई ऐसी चीजें होती हैं जिनके पीछे का लॉजिक हम समझने की कोशिश नहीं करते. दरअसल, हम अपने रूटीन में इतना व्यस्त रहते हैं कि उस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता. लेकिन, ये चीजें बच्चों के लिए नई होती हैं. एक ऐसा ही सवाल एक बच्चे ने अपने पापा से पूछ लिया. फिर क्या…पापा को आठवीं की साइंस की किताब पलटनी पड़ी.

साइंस हर जगह है. अगर आप बारीक नजर से चीजें देखें तो आपकी जिंदगी किसी प्रयोगशाला से कम नहीं. लेकिन, हम अपने रूटीन लाइफ में इन चीजों पर ध्यान नहीं देते. कई ऐसी चीजें मिलती हैं, जिनके पीछे एक गंभीर साइंस होता है, लेकिन हम उसके बारे में नहीं जानते. एक ऐसा ही साइंस का मसला एक 10 वर्षीय बच्चे और उसके पिता के बीच आ गया. बच्चे ने पापा से तपाक से पूछ बैठा कि अभी कुछ दिन पहले तक जो नारियल का तेल लिक्विड फॉर्म में था वो आज सॉलिड कैसे बन गया. पापा के लिए यह एक बेहद आम सवाल था लेकिन वह बेटे को ठीक ढंग से समझा नहीं पा रहे थे. फिर उनको इसका जवाब ढूंढने के लिए इंटरनेट पर जाना पड़ा और लंबे-चौड़े ज्ञान हासिल करने पड़े. खैर, आज हम इस सवाल का जवाब देते हैं?

दरअसल, नारियल तेल के सॉलिड बनने का साइंस बहुत सिंपल है. हम सभी लोग स्कूल के स्तर पर साइंस की किताबों में इस बारे में पढ़ चुके हैं. लेकिन, समय बीतने और प्रयोग में नहीं आने की वजह से हम भूल जाते हैं. इस जवाब को जानने के लिए हम थोड़ी साइंस और नारियल की प्रोपर्टी की बात करते हैं. नारियल तेल के सॉलिड बनने के पीछे पहला कारण उसका मेल्टिंग प्वाइंट है. नारियल और सरसों के तेल का मेल्टिंग प्वाइंट अलग-अलग होता है. मेल्टिंग प्वाइंट वह तापमान होता है जिसपर कोई पदार्थ अपना रूप बदलता है. यानी वह सॉलिड से लिक्विड बनता है. नारियल तेल का मेल्टिंग प्वाइंट करीब 76 डिग्री फारेनहाइट (करीब 24 डिग्री सेल्सियस) होता है. यानी 24 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर नारियल तेल लिक्विड और उससे कम तापमान होने वह सॉलिड फॉर्म में रहता है. इसी तरह सरसों के तेल का मेल्टिंग प्वाइंट 120 डिग्री फारेनहाइट (49 डिग्री सेल्सियस) होता है.

अब आप यहां थोड़ा कंफ्यूज होंगे कि सरसों के तेल का मेल्टिंग प्वाइंट 49 डिग्री सेल्सियस है. ऐसे में उससे कम तापमान पर तो उसको सॉलिड होना चाहिए. लेकिन, नहीं. दरअसल, जब किसी पदार्थ का मेल्टिंग प्वाइंट हाई होता है तो उसका सॉलिड प्वाइंट उतना ही लो होता है. कहने के मतलब है कि नॉर्मल परिस्थिति में सरसों का लेत 49 डिग्री सेल्सियस पर अपना रूप बदलता है और वह गाढ़े तरल से पतला तरल रूप ले लेता है. इसी कारण घरों में खाना पकाते समय जब कढ़ाई में तेल डाला जाता है तो वह गर्म होने के साथ पतला दिखने लगता है. इसी तरह जब उसको आप सॉलिड बनाएंगे तो आपको उसे उतना ही कम तापमान में ले जाना होगा. सरसों का तेल शून्य से नीचे के तापमान में सॉलिड बनना शुरू होता है.

फैटी एसिड कंपोजिशन
दूसरा कारण, नारियल में ज्यादा मात्रा में सैचुरेटेड फैटी एसिड का पाया जाना है. यह कम तापमान पर सॉलिड बन जाता है. नारियल के अलावा एनिमल फैट में सैचुरेटेड फैटी एसिड पाया जाता है. इस फैटी एसिड में हाइड्रोकार्बन चेन के साथ हाइड्रोजन के एटम्स पाए जाते हैं. इसे मीडियम-चेन फैटी एसिड कहा जाता है. यह लोवर मेल्टिंग प्वाइंट वाला एसिड है. दूसरा- लॉन्ग चेन फैटी एसिड होता है. वह हाई मेल्टिंग प्वाइंट वाला एसिड होता है. सरसों के तेल में लॉन्ग चेन फैटी एसिड पाया जाता है. दूसरे शब्दों कहें तो नारियल का तेल स्मॉल चेन फैटी एसिड से बना होता है जो तापमान कम होने के साथ सॉलिड बनने लगता है, जबकि सरसों के तेल में नारियल तेल की तरह स्मॉल चेन फैटी एसिड नहीं होता. इस कारण वह तापमान कम होने से जल्दी सॉलिड नहीं बनता. उसको सॉलिड बनाने के लिए तापमान को माइनस में लाना होगा.

सरसों ही नहीं ये तेल भी नहीं बनते सॉलिड
नारियल के उलट सरसों ही नहीं सोयाबीन, तिल, सन फ्लावर और ओलिव ऑयल में भी अनसैचुरेटेड फैट पाया जाता है. इन तेल का भी मेल्टिंग प्वाइंट हाई होता है. यह ये रूम टेंपरेचर में लिक्विड फॉर्म में रहते हैं. गर्म करने पर ये और पतले होने लगेंगे और अगर आप इन्हें सॉलिड फॉर्म में लाना चाहेंगे तो आपको इन्हें नारियल की तुलना में ज्यादा कम टेंपरेचर में रखना होगा.

 (‘न्यूज 18 हिन्दी ‘ से साभार )

Spread the information