24 मार्च 2023। आज विश्व क्षय रोग ( TB ) दिवस है। वैसे तो कभी भयावह एवं जानलेवा माना जाने वाला क्षय रोग ( ट्यूबरक्यूलोसिस) अब उतना डरावना नहीं रहा। विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में प्रगति एवं चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक सुधार ने उसे लगभग सामान्य बीमारी की स्थिति में ला खड़ा किया है। हालांकि उसको लेकर लापरवाही अब भी घातक है। आज का सच यही है कि आवश्यक जागरुकता, सही समय पर जांच एवं बेहतर इलाज के जरिए क्षय रोग को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि निश्चय ही यह चिंता का विषय है कि विश्व के कुल टीबी रोगियों का 25 प्रतिशत हिस्सा भारत में मौजूद है। यहां प्रति एक लाख की आबादी पर 210 टीबी के मरीज आज भी मौजूद हैं। आज 24 मार्च को दुनिया भर में विश्व क्षय दिवस मनाया जा रहा है जिसका उद्देश्य इसको लेकर लोगों में आवश्यक जागरूकता पैदा करना है। क्योंकि व्यापक जन जागरूकता एवं जन सहभागिता से ही क्षय रोग को हराया जा सकता है।
कैसे हुई विश्व क्षय दिवस मनाने की शुरुआत
अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार 24 मार्च 1882 को डॉक्टर रॉबर्ट कोच ने टीबी रोग के लिए जिम्मेदार माइक्रोबैक्टीरियल ट्यूबकुलोसिस बैक्टीरिया की खोज की थी. डॉ. रॉबर्ट कोच की ये खोज आगे चलकर टीबी के इलाज में बहुत मददगार साबित हुई. उनकी इस खोज की वजह से डॉ. रॉबर्ट कोच को साल 1905 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. यही वजह है कि इस बीमारी को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए 24 मार्च की तारीख को चुना गया और 24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा हुई.
क्या है इस साल की थीम
विश्व तपेदिक दिवस को लेकर हर साल एक थीम निर्धारित की जाती है. साल 2023 की थीम है- यस! वी कैन एंड टीबी! इसका मतलब है कि हां, हम टीबी का अंत कर सकते हैं. इस थीम के जरिए लोगों को टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए मोटिवेट करने का प्रयास किया गया है.
2030 तक दुनिया को टीबी मुक्त करने का संकल्प
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टीबी अभी भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक किलर डिजीज में से एक है. डब्ल्यूएचओ की तरफ से साल 2030 तक दुनिया को पूरी तरह से टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं भारत की ओर से 2025 तक देशवासियों की टीबी की बीमारी से पूरी तरह से निजात दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. हर साल विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार की ओर से लोगों को बीमारी के प्रति जागरुक करने के लिए तमाम कार्यक्रम चलाए जाते हैं.
टीबी जल्दी पता चलने के ये होंगे तीन बड़े फायदे
1.मात्र 6 महीने में इलाज संभव
अगर जांच में टीबी का पता जल्दी चल जाता है, तो ये आपकी टीबी की बीमारी की अर्ली स्टेज है, ऐसे में इसका इलाज जल्दी शुरू हो जाएगा और 9 महीने के बजाय महज 6 महीने के इलाज में ही आप ठीक हो जाएंगे. फेफड़ों की टीबी के इलाज में आपको दो महीने तक 4 गोलियां और बाकी 4 महीनों में सिर्फ 2 या 3 गोलियां ही रोजाना खानी पड़ेंगी. ऐसे में आपको 3 महीने कम इलाज कराना पड़ेगा.
2. मरीज को होगी कम परेशानी
डॉ. कहती हैं कि टीबी जल्दी डायग्नोस होने पर घातक नहीं रहती. यह एक सामान्य बीमारी की तरह रहती है. मरीज को हल्का बुखार, थकान, खांसी, कफ या बलगम और सीने में कभी-कभी दर्द की समस्या रहती है. इलाज के दौरान वह अपने रुटीन काम भी कर सकता है. ऐसे में मरीज का जीवन सामान्य रहता है लेकिन अगर टीबी का पता लेट चलता है तो घातक हो सकती है. इससे मौत भी हो सकती है.
3. दो हफ्ते के बाद ही टीबी इन्फेक्शन फैलाना बंद
जल्दी टीबी का पता चलने की सबसे खास बात यही है. टीबी का इलाज शुरू होने के 2 हफ्ते के बाद मरीज की ट्यूबरक्यूलोसि फैलाने की क्षमता खत्म हो जाती है. उसके छींकने खासंने से निकली ड्रॉपलेट्स या एयरोसोल से अन्य लोगों को टीबी का इन्फेक्शन होने की संभावना लगभग न के बराकर होती है.
टीबी का एक मरीज दे सकता है इतने लोगों को बीमारी
ट्यूबरक्यूलोसि का एक मरीज एक साल के अंदर 15-16 अन्य लोगों को भी टीबी की बीमारी दे सकता है. यह एक बड़ी संख्या है. खास बात है कि ये लोग टीबी होने के दो हफ्ते के भीतर भी संक्रमित हो सकते हैं और अगर इलाज शुरू न किया जाए तो साल भर तक भी हो सकते हैं. ऐसे में टीबी को जड़ से मिटाने के लिए जरूरी है कि टीबी की जल्दी से जल्दी जांच जरूर हो.
सूख चुकी ड्रॉपलेट और हवा से भी फैलती है टीबी
डॉ. उर्वशी कहती हैं कि टीबी भी कोविड की तरह ही फैलती है. यह फेफड़ों वाली टीबी के मरीज के खांसने, छींकने से निकलीं ड्रॉपलेट या एयरोसोल्स से अन्य मरीजों तक जाती है. ध्यान रखने वाली बात है कि टीबी ड्रॉपलेट न्यूक्लियर से भी फैलती है, यानि कि अगर किसी मरीज ने खांसा या छींका है, कई दिन हो गए हैं और ड्रॉपलेट सूख गई है या आसपास की ये हवा में फैल गई है तो भी अन्य लोगों को टीबी का संक्रमण हो सकता है.