विश्व ब्रेल दिवस हर साल 4 जनवरी को दुनिया में नेत्रहीनों को एक लिपि प्रदान करने वाले लुईस ब्रेल के जन्म दिन के मौके पर मनाया जाता है. कम लोग जानते हैं कि लुई ब्रेल ने केवल इस लिपि की आविष्कार ही नहीं किया था. बल्कि इस लिपि को नेत्रहीनों के लिए आधिकारिक लिपि दर्जा दिलवाने के लिए जीवन संघर्ष भी करते रहे. उनके इसी संघर्ष के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है.

आज लोगों से जब पूछा जाता है कि नेत्रहीनों की कौन सी लिपि है यानि वे किसी लिपि में लिख या पढ़ सकते हैं तो उसे ब्रेल लिपि कहते हैं. लेकिन एक समय था जब इसकी कल्पना करना तक असंभव था. हकीकत तो यह है कि लिपि बनने के सौ साल तक इसे स्वीकार ही नहीं किया जा सका और जब इसे स्वीकार किया गया तभी से इसके आविष्कारक लुईस ब्रेल के सम्मान में हर साल चार जनवरी को उनके जन्मदिन पर विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है.

क्या होती है ब्रेल लिपि
ब्रेल वास्तव में एक तरह का कोड है. इसे अकसर भाषा के तौर पर देखा जाता है. इसके अंतर्गत उभरे हुए 6 बिंदुओं की तीन पंक्तियों में एक कोड बनाया जाता है. इन्हीं में पूरे सिस्टम का कोड छिपा होता है. ये तकनीक अब कंप्यूटर में भी उपयोग में लाई जाती है जिसमें गोल व उभरे बिंदु होते हैं. इससे नेत्रहीन लोग अब तकनीकी रूप से काम करने के काबिल हो रहे हैं.

बचपन से संघर्ष
लुईस ब्रेल फ्रांस के कुप्रे गांव में 4 जनवरी 1809 को पैदा हुए थे. मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे लुईस के पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी और जीन बनाने का काम करते थे. लेकिन उनके परिवार को जल्दी ही आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. जिसके कारण लुईस को अपने पिता के काम में सहयोग करना शुरू करना पड़ा था.

कैसे गंवाई आंखें
खिलौने से खेलने की उम्र में लुईस ब्रेल को खिलौने नहीं मिल सके जिसके कारण वे अपने आसपास की उपलब्ध चीजों से ही खेला करते थे जिसमें लकड़ी, रस्सी, घोड़े की नाल, लोहे के औजार शामिल थे. लेकिन एक दिन उनकी एक आंख में चाकू घुस गया जिससे उनकी आंख ही खराब हो गई,. धीरे धीरे उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी जाने लगी और सही इलाज ना मिलने पर 8 साल की उम्र में लुईस पूरी तरह से नेत्रहीन हो गए.

उम्मीद की किरण
इसके बाद नेत्रहीनों के स्कूलों में लुईस को दाखिला मिला. जब वे 12 साल के थे, तब उन्हें पता चला कि सेना के लिए एक खास कूटलिपि बनी है जिससे अंधेरे में भी संदेश पढ़े जा सकते हैं. इसी खबर को सुनकर लुई के मन में उम्मीद की किरण जागी कि इस तरह की लिपि नेत्रहीनों के लिए उपयोगी हो सकती है.

8 साल की मेहनत के बाद
लुईस ने तुरंत अपने स्कूल के पादरी से मिले और उस कूटलिपि को विकसित करने वाले कैप्टन चार्ल्स बार्बर से मिले. जिसके बाद नेत्रहीनों के लिए लिपि विकसित करने का काम शुरू हो गया. 8 साल की कड़ा मेहनत और बहुत से संशोधनों के बाद, 1829 तक उनकी छह बिंदुओं पर आधारित लिपि तैयार तो हो गई, लेकिन उनकी लिपि को मान्यता नहीं मिली.

मान्यता के लिए लंबा समय
लुईस ब्रेल की इस लिपि को मान्यता मिलने में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उनकी ब्रेल लिपि को शिक्षाविदों ने स्वीकार नहीं किया है. नेत्रहीनों में यह लिपि धीरे-धीरे लोकप्रिय होती रही है. लुई इस लिपि को सरकारी या आधिकारिक तौर पर मान्यता मिलते नहीं देख सके. उनकी मौत के सौ साल बाद ही उनकी भाषा को मान्यता मिली.

लुईस ब्रेल की मौत के सौ साल साल बाद उनकी पुण्यतिथि को उनके सम्मान का दिन निर्धारित किया गया. उनके गांव में सौ साल पहले दफनाए गए  उनके पार्थिव शरीर के अवशेष पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाहर निकाले गए. सेना और स्थानीय प्रशासन ने उन्हें नजरअंदाज करने के लिए माफी मांगी और राष्ट्रीय धुन के साथ राष्ट्रीय ध्वज में उन अवशेषों को लपेट कर उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया गया. संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने नवंबर 2018 को आधिकारिक तौर पर 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस मनाने का फैसला किया. इसके बाद 4 जनवरी 2019 को पहला विश्व ब्रेल दिवस मनाया गया.

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