डी एन एस आनंद

साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड द्वारा वैज्ञानिक चेतना अभियान के तहत जारी राष्ट्रीय युवा -संवाद की ऑनलाइन 5वीं कड़ी का आयोजन 7 जुलाई 2024 को किया गया। उल्लेखनीय है कि यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी झारखंड इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। संविधान ने वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है। इसी के मद्देनजर लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए ऑनलाइन परिचर्चा “राष्ट्रीय युवा -संवाद” का आयोजन किया जा रहा है जिसमें विभिन्न राज्यों की युवा पीढ़ी, छात्र- छात्राओं एवं युवाओं को जोड़ने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है तथा इस पहल को अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है।

राष्ट्रीय युवा संवाद की 5वीं कड़ी का विषय था – “मौजूदा दौर में छात्रों-युवाओं के समक्ष चुनौतियां एवं उनकी भूमिका” जिस पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों, युवाओं ने अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खां (प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक), अध्यक्ष साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने की जबकि समन्वयन एवं संचालन डी एन एस आनंद, महासचिव साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने किया। वक्ता पैनल के सदस्यों में शामिल थे – वी. निखिल ( पीएचडी स्टूडेंट) एनआईटी वारंगल, तेलंगाना, विपुल तिवारी ( पीएचडी स्टूडेंट) आईआईटी बीएचयू वाराणसी, राजकिशोर हेम्ब्रम (पीजी स्टूडेंट) जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली एवं रेशमा जबीन, युवा विज्ञान संचारक जमशेदपुर झारखंड।

विषय प्रवेश करते हुए साइंस फार सोसायटी, झारखंड के महासचिव डी एन एस आनंद ने कहा कि पढ़ाई, कैरियर एवं जीवन संघर्षों का लगातार बढ़ता दबाव युवा पीढ़ी के सामने कठिन चुनौती बनकर खड़ा है। शिक्षा का निजीकरण, लगातार मंहगी होती शिक्षा, छात्रों पर पढ़ाई का बढ़ता दबाव, घटते रोजगार के अवसर, तेजी से बढ़ती बेरोजगारी के बीच विभिन्न परीक्षाओं में पेपर लीक जैसी घटनाओं ने छात्रों और युवाओं को असुरक्षित एवं उद्वेलित कर दिया है। अपने असुरक्षित भविष्य को लेकर चिंतित छात्र- युवा सड़कों पर आंदोलनरत हैं तथा उसका उचित समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा है।
सत्ता -व्यवस्था द्वारा अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा एवं प्रोत्साहन दिए जाने के कारण 21 वीं सदी के विज्ञान, तकनीक के मौजूदा दौर में भी समाज में अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास बढ़ा है जिससे कुरीति एवं पाखंड में लिप्त, रूढ़ परंपराओं व मूढ़ मान्यताओं को आगे बढ़ा रहे धर्म के धंधेबाजों को ही बल मिला है। इससे देश की संविधान सम्मत तर्कसंगत, प्रगतिशील चिंतन परंपरा को गहरा आघात लगा है। ऐसे में युवा पीढ़ी को खुद को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाते हुए समाज को भी बचाना है ताकि बेहतर समाज एवं देश का निर्माण किया जा सके।

चर्चा की शुरुआत करते हुए एन आई टी, वारंगल, तेलंगाना के पीएचडी के छात्र वी निखिल ने इस विषय पर चर्चा को बेहद जरूरी बताते हुए कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली काफी काम्प्लेक्स है जिसमें अंक पर अधिक जोर दिया जाता है तथा छात्र का भविष्य प्रतियोगिता परीक्षाओं पर निर्भर करता है। बढ़ती आबादी के कारण छात्र छात्राओं का चयन मुश्किल होता है जिससे उनमें निराशा की स्थिति पैदा होती है। पढ़ाई में डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल, स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का भारी दबाव एवं कैरियर की अनिश्चितता उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। बेरोजगारी को बड़ी समस्या बताते हुए उन्होंने उनके स्किल डेवलपमेंट पर बल दिया। उन्होंने सोशल मीडिया से उनके नैतिक मूल्यों के प्रभावित होने की चर्चा करते हुए उनके लिए टाइम मैनेजमेंट, सेल्फ मोटिवेशन, क्रिएटिव एक्टिविटी में भागीदारी, हार्ड वर्क एवं श्रेष्ठ मानवीय, नैतिक मूल्यों की स्वीकृति को जरूरी बताया।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए परिचर्चा के दूसरे वक्ता आईआईटी बीएचयू, वाराणसी, उत्तर प्रदेश के पीएचडी छात्र विपुल तिवारी ने कहा कि आज ज्ञान का इस्तेमाल महज पैसा कमाने के लिए हो रहा है तथा पढ़ाई का मतलब सिर्फ पैसा कमाना रह गया है। स्टूडेंट्स का मकसद सिर्फ किसी तरह जॉब पाना रह गया है जबकि पढ़ाई में गुणवत्ता की भारी कमी है। छात्रों के स्किल डेवलपमेंट पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि स्किल इंडिया विफल रहा तथा सही प्रशिक्षण के अभाव में गुणवत्ता लगातार प्रभावित हो रही है। पर्यावरण को जीवन से जोड़ने, उसे मौलिक अधिकार निरूपित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश की चर्चा करते हुए इसे जरूरी बताया। इसके साथ ही उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास को दूर करने के लिए रेशनल सोच को बढ़ावा देने तथा युवाओं के बेहतर मेंटल हेल्थ के लिए फिजिकल एक्टिविटी को बेहद जरूरी बताया ।

परिचर्चा के अगले वक्ता थे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पीजी के छात्र राजकिशोर हेम्ब्रम। दुमका झारखंड के रहने वाले राजकिशोर राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस झारखंड के पूर्व बाल विज्ञानी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि आज जिस तेजी से दुनिया बदल रही है, छात्र उसे समझ नहीं पा रहे हैं। डिजिटल शिक्षा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि छात्रों को इसकी समझ होनी चाहिए। मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में कैरियर के सवाल को चुनौती बताते हुए उन्होंने कहा कि लोग शिक्षा को महज नौकरी पाने का जरिया मानते हैं। उन्होंने शिक्षा को क्रिएटिविटी एवं विविधता से जोड़ने पर बल देते हुए कहा कि बच्चे अपने माता-पिता से अपनी समस्याओं को साझा नहीं करते। इससे वे भारी दबाव एवं तनाव में जीते हैं जो कई बार आत्मघाती साबित होता है। उन्होंने मौजूदा परिदृश्य में सेक्स एजुकेशन को भी शिक्षा में शामिल करने पर बल देते हुए कहा कि यदि आज के युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में नहीं लगाया गया तो समाज को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

परिचर्चा की अगली वक्ता थीं जमशेदपुर झारखंड की युवा विज्ञान शिक्षिका एवं विज्ञान संचारक रेशमा जबीन। उन्होंने कहा कि आजकल बच्चे पढ़ाई लिखाई में दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि वे गूगल से सर्च कर उत्तर देना एवं कट पेस्ट करना अधिक बेहतर समझते हैं। बच्चों में घटते मोरल वैल्यू की चर्चा करते हुए उन्होंने उन्हें रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ने पर बल दिया। लोगों की घटती सहनशक्ति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में दूसरों के विचारों, भावनाओं एवं असहमति – मतभिन्नता का सम्मान बेहद जरूरी है। समाज के कमजोर एवं वंचित समूहों को इसकी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की चर्चा करते हुए उन्होंने संवेदनशील व्यक्ति एवं समाज के निर्माण पर बल दिया ताकि बेहतर समाज, देश-दुनिया का निर्माण किया जा सके। उन्होंने कहा कि बदलाव की शुरुआत खुद से करनी चाहिए। इससे परिवार एवं समाज में भी सार्थक बदलाव सामने आएगा। उन्होंने कहा कि युवा खुद को मजबूत करें, बेहतर इंसान बनें तथा विभिन्न मोर्चे पर जिम्मेदारी उठाने का प्रयास करें। उन्होंने युवाओं से विभिन्न मुद्दों पर सवाल पूछने एवं उत्तर की तलाश करने को कहा लेकिन साथ ही अपने दायरे का ख्याल रखने एवं मर्यादा का पालन करने पर जोर दिया।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड के अध्यक्ष डॉ अली इमाम खां ने कहा कि इस युवा संवाद के माध्यम से आज छात्रों -युवाओं के सामने मौजूद समस्याएं एवं चुनौतियां खुद उनसे ही सुनने का अवसर मिला है। इससे जाहिर है कि आज के युवा बेहद सजग हैं तथा आज के ज्वलंत मुद्दों पर उनकी पैनी नजर है। इससे इस समझ की पुष्टि नहीं होती कि आज के युवा आत्मकेंद्रित एवं गैर जिम्मेदार हैं। उनकी सजगता का ही परिणाम है कि आज की परिचर्चा में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, मेंटल हेल्थ, स्किल डेवलपमेंट से लेकर नैतिकता तक के सवाल उठे। समाज में मोबाइल की बढ़ती भूमिका एवं घटते आपसी संवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि अन्य मुद्दों के साथ देश में मौजूद असमानता एवं उसके दुष्परिणाम पर भी बात करने की जरूरत है। शिक्षा का निजीकरण एवं उस क्षेत्र की विभिन्न विसंगतियों की चर्चा करते हुए उसमें लगातार बढ़ते ऊपरी हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त करते हुए उसमें पर्याप्त लोकतांत्रिक स्पेस की जरूरत पर बल दिया तथा पढ़ने के इच्छुक सभी छात्र छात्राओं के लिए उनकी रुचि की शिक्षा सस्ते दर पर उपलब्ध कराने की मांग की। उन्होंने गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए स्किल डेवलपमेंट पर बल देते हुए रोजगार का अवसर बढ़ाने पर बल दिया। शोधकार्य की मौजूदा स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इनोवेशन एवं टेक्नोलॉजी का सवाल हमारे ज्ञान विज्ञान एवं अंततः वैज्ञानिक चेतना से भी जुड़ा है। आज समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देने में बाजार की भी अहम भूमिका है तथा इसे भारी मुनाफे के बाजार में बदल दिया गया है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक चेतना के विकास एवं विस्तार के लिए इस संवाद की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने एवं व्यापक बनाने की जरूरत है ताकि एक बेहतर समाज देश-दुनिया का निर्माण किया जा सके।

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