ललित मौर्या

किप्लास्टिक एक ऐसा जहर जो आज इंसानी शरीर पर पूरी तरह हावी हो चुका है। हमारे भोजन, पानी और यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें भी घुल चुके इसके बेहद महीन कण धीरे-धीरे इंसानी शरीर में पैठ बना रहे हैं।

ऐसा ही कुछ एक बार फिर सामने आया है, जब वैज्ञानिकों को इंसानी मस्तिष्क में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत मिले हैं। इससे पहले वैज्ञानिकों को इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल, लीवर, किडनी, अस्थि मज्जा, प्रजनन अंगों, घुटने और कोहनी के जोड़ों के साथ अन्य अंगों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। अबअब इंसानी अंगों के साथ रक्त, दूध, सीमन और यूरीन में भी माइक्रोप्लास्टिक की पुष्टि हुई है।

वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्लास्टिक के यह महीन कण मस्तिष्क के साथ-साथ इंसानों के महत्वपूर्ण अंगों में जमा हो रहे हैं। हाल यह है कि कभी जिस प्लास्टिक को वरदान समझा जाता था, वो आज अभिशाप में तब्दील हो चुका है।

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इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के बाद दिमाग में भी मिले माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत

प्लास्टिक के यह कण इंसानी स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा बन चुके हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि आज दुनिया में शायद ही ऐसी कोई जगह बची है जहां माइक्रोप्लास्टिक्स के कण मौजूद न हों। आज निर्जन अंटार्कटिका भी इनकी मौजूदगी से अछूता नहीं रह गया है।

वैज्ञानिकों को हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई में यहां तक की हवा और बादल में भी भी प्लास्टिक के इन महीन कणों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। देखा जाए तो एक बार बादलों में पहुंचने के बाद यह कण वापस ‘प्लास्टिक वर्षा’ के रूप धरती पर गिर सकते हैं। इस तरह जो कुछ भी हम खाते, पीते हैं, यह कण उसे दूषित कर सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि प्लास्टिक के यह कण बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स को 30 गुना तक बढ़ा सकते है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक के बढ़ते प्रदूषण पर तत्काल लगाम लगाने का आह्वान किया है।

सावधान! रक्त और फेफड़ों के बाद अब वैज्ञानिकों को इंसानी नसों में मिले माइक्रोप्लास्टिक के अंश

इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के बाद दिमाग में भी मिले माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत

गौरतलब है कि प्लास्टिक के अत्यंत महीन कणों को माइक्रोप्लास्टिक्स के नाम से जाना जाता है। इन कणों का आकार एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के बीच होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्लास्टिक के इन महीन कणों में जहरीले प्रदूषक और केमिकल होते हैं, जो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको, ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी, न्यू मैक्सिको ऑफिस ऑफ द मेडिकल इन्वेस्टिगेटर से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया अध्ययन अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा साझा किए गए हैं।

समय के साथ माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी में भी दर्ज की गई वृद्धि

अपने इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों को मस्तिष्क के साथ लीवर और किडनी में भी माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष साझा किए हैं उनसे पता चला है कि अन्य अंगों की तुलना में मस्तिष्क के ऊतकों में 20 गुणा अधिक प्लास्टिक पाया गया है।

इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह रही कि डिमेंशिया से जूझते लोगों के दिमाग में स्वस्थ लोगों की तुलना में कहीं अधिक प्लास्टिक पाया गया है। इसी तरह शोधकर्ताओं को पता चला है कि 2016 से 2024 के बीच इंसानी अंगों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

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इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के बाद दिमाग में भी मिले माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2016 और 2024 के बीच उपलब्ध सैम्पल्स की जांच की है। बता दें कि 2016 में जो सैम्पल्स एकत्र किए गए थे उनमें से 17 पुरुषों के जबकि दस महिलाओं के थे। वहीं 2024 में पुरुषों से 13 नमूने और 11 नमूने महिलाओं से जुड़े थे।

चिंताजनक बात यह रही 2024 में एकत्र किए गए मस्तिष्क के नमूनों में 2016 की तुलना में अधिक प्लास्टिक पाया गया। रिसर्च से पता चला है कि 2016 में लिए नमूनों की तुलना में 2024 में इंसानी मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा करीब 50 फीसदी अधिक थी। मतलब की कहीं न कहीं समय के साथ मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मस्तिष्क के 91 नमूनों में अन्य अंगों की तुलना में औसतन दस से 20 गुणा माइक्रोप्लास्टिक अधिक था। इसी तरह 2024 की शुरूआत में मस्तिष्क के 24 नमूनों में उनके वजन के हिसाब से औसतन 0.5 फीसदी प्लास्टिक मौजूद था।

पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य के लिए बन रहा बड़ी चुनौती

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर सहित मनोभ्रंश से मरने वाले लोगों के मस्तिष्क से लिए गए 12 नमूनों का अध्ययन किया है। इन लोगों के मस्तिष्क में स्वस्थ लोगों की तुलना में वजन के हिसाब से दस गुणा अधिक प्लास्टिक था। इनके दुष्प्रभावों को लेकर जर्नल केमिकल रिसर्च टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर में कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं।

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वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार जब प्लास्टिक के यह महीन कण सांस या अन्य तरीके से शरीर में पहुंच जाते हैं तो वो कुछ दिनों में ही फेफड़ों की कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म और विकास को प्रभावित करके उन्हें धीमा कर सकते हैं। इतना ही नहीं यह इन कोशिकाओं के आकार में भी बदलाव की वजह बन सकते हैं।

पशुओं पर किए अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स कैंसर के साथ-साथ प्रजनन संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है। इतना ही नहीं यह प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकता है और इंसानों की सीखने, सोचने और समझने की क्षमता पर भी असर डाल सकता है। साथ ही यह सीखने समझने और याद रखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

1907 में पहली बार सिंथेटिक प्लास्टिक ‘बेकेलाइट’ का उत्पादन शुरू हुआ था| हालांकि पहले वो बहुत थोड़ी मात्रा में उत्पादित किया जाता था, इसके उत्पादन में तेजी 1950 के बाद से आई। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि तब से लेकर अब तक हम करीब 830 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं, आंशका है कि 2025 तक यह आंकड़ा दोगुना हो सकता है। ऐसे में समय के साथ यह समस्या कितना विकराल रूप ले लेगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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