ललित मौर्या

एक नई रिसर्च से पता चला है कि जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धिमता जैसी उन्नत तकनीक की मदद से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की पहचान और निदान मुमकिन हो सकती है। ऐसे में एआई समय रहते इस बीमारी की पहचान करने में मददगार साबित हो सकती है। इसकी मदद से रोगी का जल्द से जल्द इलाज मुमकिन हो सकेगा।

कैंसर एक बेहद गंभीर बीमारी है, जिसकी समय रहते पहचान आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यह बीमारी दबे पांव तेजी से फैलती है, ऐसे में इसके अंतिम चरण में ट्यूमर का इलाज मुश्किल हो जाता है।

इस बीमारी की गंभीरता का अनुमान विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जिसके मुताबिक हर साल दुनिया भर में कैंसर के 1.9 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आते हैं। इतना ही नहीं यह बीमारी हर साल एक करोड़ से ज्यादा जिंदगियां निगल रही है। मतलब की दुनिया में होने वाली हर छठी मौत के लिए कैंसर जिम्मेवार है।

इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धिमता आधारित मॉडल को “डीएनए मिथाइलेशन” से जुड़े पैटर्न को देखने और 13 अलग-अलग तरह के कैंसर की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया है। इसमें, ब्रेस्ट,लीवर, फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर शामिल हैं।

वैज्ञानिको के मुताबिक मशीन और डीप लर्निंग आधारित यह मॉडल 98.2 फीसदी सटीकता के साथ कैंसर की पहचान कर सकता है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल बायोलॉजी मेथड्स एंड प्रोटोकॉल्स में प्रकाशित हुए हैं।

कैसे काम करता है एआई मॉडल

शोधकर्ताओं ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में समझाया कि, “डीएनए निर्देशों के एक सेट की तरह है जो हमारे शरीर को बताता है कि कैसे काम करना है। यह चार प्रकार के बिल्डिंग ब्लॉक्स से बना है, जो वर्णमाला के अक्षरों ए, टी, जी, और सी की तरह हैं।“

ये बिल्डिंग ब्लॉक्स ऐसे पैटर्न बनाते हैं जो हमारी आनुवंशिक जानकारी को स्टोर कर लेते हैं। हालांकि कभी-कभी, हमारे पर्यावरण में मौजूद चीजें ‘मिथाइल ग्रुप’ की मदद से इन बिल्डिंग ब्लॉक्स के पैटर्न को बदल सकती हैं। इस प्रक्रिया को “डीएनए मिथाइलेशन” कहा जाता है। यह डीएनए पर टैगिंग करने जैसा है जो वास्तविक अक्षरों को बदले बिना कुछ जीनों के काम करने के तरीके को प्रभावित कर सकता है।

हर कोशिका में डीएनए मिथाइलेशन के लाखों निशान होते हैं। वैज्ञानिकों ने कैंसर के शुरुआती चरणों में इन निशानों में बदलाव देखा है, जिससे कैंसर का जल्द निदान करने में मदद मिल सकती है। वे जांच सकते हैं कि कैंसर कोशिकाओं में डीएनए के किस हिस्से में मिथाइल टैग हैं और वो स्वस्थ कोशिकाओं की तुलना में कितने ज्यादा हैं।

देखा जाए तो विभिन्न प्रकार के कैंसर को दर्शाने वाले सटीक डीएनए मिथाइलेशन पैटर्न को खोजना घास के ढेर में सुई खोजने जैसा है। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि एआई इस चुनौतीपूर्ण काम में हमारी मदद कर सकती है।

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता शमिथ समराजीवा का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि, “हम जिन कम्प्यूटेशनल विधियों पर काम कर रहे हैं, उनमें प्रशिक्षण से जुड़े विविध आंकड़े और वास्तविक नैदानिक ​​सेटिंग्स में सावधानीपूर्वक परीक्षण शामिल हैं। इनकी मदद से कंप्यूटर प्रोग्राम और स्मार्ट बन रहे हैं जो अलग-अलग जानकारियों को देखकर सीख सकते हैं।“

 शोधकर्ताओं को भरोसा है कि इससे ऐसे एआई मॉडल विकसित होंगे जो कैंसर का जल्द पता लगाने और स्क्रीनिंग में डॉक्टरों की मदद कर सकते हैं। इसकी वजह से मरीजों का बेहतर इलाज मुमकिन हो सकेगा।

 इस मॉडल में रक्त से प्राप्त डीएनए की जगह ऊतकों से लिए नमूनों का उपयोग किया जाता है। शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि डॉक्टरों द्वारा अस्पतालों में इस्तेमाल किए जाने से पहले इस मॉडल को बायोप्सी नमूनों की व्यापक रेंज के साथ अतिरिक्त प्रशिक्षण और परीक्षण की आवश्यकता होगी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह महत्वपूर्ण है कि उनके अध्ययन में एआई मॉडल का उपयोग किया गया, जो इस बात पर भी प्रकाश डाल सकता है कि वो कैंसर को लेकर कैसे भविष्यवाणी करता है। उन्होंने इस बात पर गहनता से अध्ययन किया कि उनका मॉडल कैसे काम करता है, ताकि यह समझा जा सके कि कैंसर की शुरूआत कैसे होती है, वो कैसे फैलता है और उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिल सके।

यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है, इससे मरीजों के स्वास्थ्य में नाटकीय रूप से सुधार हो सकता है, क्योंकि अधिकांश कैंसरों के मामले में यदि समय रहते मर्ज का पता चल जाए तो उसका उपचार संभव है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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