ललित मौर्या
वैज्ञानिकों ने मालदीव के गहरे समुद्र में प्रवाल भित्तियों के बीच डैमसेल्फिश की एक नई प्रजाति की खोज की है। वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति को क्रोमिस अबाधा नाम दिया है। यह खोज कैलिफोर्निया एकेडमी ऑफ साइंसेज के इथियोलॉजिस्ट की एक छोटी से टीम ने की है।
इसके बारे में अधिक जानकारी जर्नल जूकीज में प्रकाशित हुई है। अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि कैसे उन्हें मालदीव के गहरे समुद्र में स्थित प्रवाल भित्तियों की खोज करते समय इस मछली का पता चला।
वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि इस मछली की लम्बाई औसतन 6.9 सेंटीमीटर होती है। इसका निचला हिस्सा हल्का नीला और ऊपरी हिस्सा सफेद होता है। हालांकि लंबाई के साथ-साथ नीले रंग की छटा भी बदलती रहती है। मालदीव के आस-पास की आठ जगहों पर यह मछलियां पाई गई हैं, जहां इन्हें 100 मीटर से ज्यादा गहराई से पकड़ा गया।
आमतौर पर उस गहराई पर, बहुत ज्यादा रोशनी नहीं होती, क्योंकि यह मेसोफोटिक जोन का हिस्सा है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि गहरे समुद्र में रहने वाली मछलियों में दो-टोन रंग मेसोफोटिक जोन में छलावरण में सहायता करता है, जो उन्हें ऊपर और नीचे दोनों जगह शिकारियों से छिपने में मदद करता है।
गौरतलब है कि डैमसेल्फिश छोटी, चमकीले रंग की समुद्री मछलियां होती हैं जो पोमेसेंट्रिडे परिवार से संबंध रखती हैं। यह मछलियां दुनिया भर में उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों में पाई जाती हैं। यह अपने जीवंत रंगों और बोल्ड व्यवहार के लिए जानी जाती हैं। इस वजह से इन्हें घरों में एक्वैरियम में भी रखा जाता है।
अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र में कोरल और उसके आसपास रहने वाली मछलियों को पकड़ने और पहचानने के लिए हाथों से फेंके जाने वाले जाल की मदद ली है। बता दें कि उथले कोरल के विपरीत, गहरे समुद्र में रीफ का कम ही अध्ययन किया जाता है।
समुद्री वातावरण में आता बदलाव प्रजातियों के लिए पैदा कर रहा खतरा
ऐसे में खासकर हिंद महासागर, पूर्वी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत में इस गहराई में जहां मौजूद रीफ का उतना अध्ययन नहीं किया गया है। वहां मछली की एक नई प्रजाति की खोज अप्रत्याशित नहीं है। यह प्रजाति दरारों और समुद्री स्पंज के आसपास पाई गई, यह एक ऐसे आवास को दर्शाता है जो उन्हें शिकारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। मालदीव की स्थानीय भाषा धिवेही में ‘अबाधा’ नाम का अर्थ ‘सदा’ होता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि मेसोफोटिक क्षेत्र में मछलियां अक्सर समान गुणों को साझा करती हैं, जिसमें कुछ प्रजातियां विशिष्ट भूमिकाएं निभाती हैं। हालांकि इसमें अभी तक क्रोमिस अबाधा की भूमिका निश्चित नहीं है।
अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से बढ़ती अम्लता के कारण गहरे समुद्र की भित्तियां उथली चट्टानों की तुलना में कम प्रभावित होती हैं। हालांकि, उन्हें अभी भी अन्य मानव निर्मित खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे जहाजों से फेंके जाने वाले जाल, रस्सियां, ब्लीचिंग और कचरा, जो वहां रहने वाली मछलियों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
देखा जाए तो यह खोज गहरे समुद्र में रहने वाली कोरल रीफ की समृद्ध जैव विविधता को उजागर करती है। साथ ही यह इन कम ज्ञात पारिस्थितिकी प्रणालियों की खोज और संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित करती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )