विकास शर्मा
नई रिसर्च में वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर एस्ट्रोनॉट्स को ले जाने में आ रही एक बड़ी समस्या का समाधान मिला है. उन्होंने पाया है कि मंगल ग्रह पर जाने के लिए लंबी यात्रा में आने वाली दिक्कतों को कम करने वाला समाधान हाइबरेशन संभव हो सकता है. इस तकनीक में यात्रियों को लंबे समय तक सुलाया जा सकता है जिससे उनकी जरूरत के संसाधन भी कम ले जाने होंगे. यह उम्मीद उनमें चमगादड़ों के खून ने जगाई है क्योंकि उससे वे यह संभव बना सकते हैं .
वैज्ञानिक मंगल ग्रह तक इंसानों को पहुंचाने के लिए गहन रिसर्च कर रहे हैं. पर कई ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान अभी तक नहीं निकला है और इस वजह से यह काम आज भी इंसानों के लिए असंभव सा ही माना जा रहा है. इनमें से सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है इंसान को मंगल ग्रह तक सुरक्षित पहुंचा पाना. यहां स्पेस ट्रैवल की कई समस्याएं हैं जो इस काम को असंभव बनाए रखे हैं. लेकिन एक नए शोध में वैज्ञानिकों क ऐसा तरीका तैयार करने की उम्मीद जगी है, जिससे एस्ट्रोनॉट्स आसानी से मंगल तक जा सकेंगे और साथ ही संसाधनों की उनकी जरूरत भी काफी कम हो जाएगी.
क्या क्या हैं दिक्कतें?
फिलहाल जो स्पेसक्राफ्ट तकनीकें हैं उसने हमारे एस्ट्रनॉट्स को मंगल तक पहुंचने में कम से कम दो साल का समय लगेगा. ऐसे में वहां तक जाने वहां एक दो दिन भी ठहरने और वहां से वापस आने में कम से कम पांच से छह साल लगेंगे. और इतना सारा राशन और ईंधन ले जाना और फिर वहां से उन्हें वापस लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा इंसान भी तक करीब एक साल से कुछ ही ज्यादा दिन तक स्पेस में लगातार रह पाया है. यानी साफ है कि वह तैयार नही है.
कितनी बड़ी समस्या है ये?
इंसानी शरीर स्पेस के निर्वात में लंबे समय तक जिंदा रह पाने के लिए नहीं बना है. जहां रेडिएशन जैसी समस्याओं जानलेवा तक साबित हो सकती हैं. लेकिन वैज्ञानिक इसके लिए एक बढ़िया समाधान सोच रहे हैं. उन्हें लगता है कि अगर ऐसी व्यवस्था हो जाए जिससे इंसान लंबे समय तक सो जाए तो ना केवल इंसान इतना लंबा सफर झेल लेगा, बल्कि यात्रियों के लिए भोजन सामग्री भी कम ले जाना पड़ेगा जिससे अंतरिक्ष यान का भार कम होगा और हम अधिक ईंधन मंगल तक ले जा सकेंगे.
एक संभावित समाधान
वैज्ञानिकों ने पाया है कि यात्रा के दौरान सो जाना, जिसे जानवरों के मामले में हाइबरनेशन प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है एक कारगर समाधान हो सकता है और नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि इसका हल चमगादड़ों के खून में मिल सकता है. वे बहुत ही ठंडी जगह पर लंबे समय तक रहने के लिए जाने जाते हैं.
क्यों है इससे इतनी उम्मीद
जर्मनी की ग्रीफ्सवाल्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा इसलिए हो पाता है कि उनके खून में खास तरह की लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं जिन्हें एरिथ्रोसाइट कहा जाता है. यह एरिथ्रोसाइट इंसानों में भी होता है, लेकिन ठंड में वैसे काम नहीं करता जैसा कि चमगादड़ों में करता है. उन्होंने पाया कि चमगादड़ों का खून ठंडा होने पर उनका एरिथ्रोसाइट समान्य रहता है, लेकिन इंसानों में वह गाढ़ा और कम लचीला हो जाता है.
तो फिर असल चुनौती क्या है?
वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया है कि चमगादड़ के खून में ऐसा क्या है जिससे ठंड में एरिथ्रोसाइट सामान्य रह पाता है, लेकिन इसे वे इंसानों पर कैसा लागू करेंगे यह एक बड़ी चुनौती अब भी है और इसमें सालों लग सकते हैं. शोधकर्ता इसे इसे सही दिशा में अच्छे कदम की तरह देख रहे हैं. अध्ययन के प्रमुख लेखक जेराल्ड केर्थ कहते हैं, “हम ये नहीं कह रहे हैं कि यह अगले तीन सालों में हो जाएगा. लेकिन यह एक अहम कदम जरूर है.”
अगर वैज्ञानिक किसी दिन इस काम में सफल हो जाते हैं तो यह लंबी स्पेस ट्रैवल को हकीकत बनाने में मददगार साबित होगा. ऐसी यात्राओं में एस्ट्रोनॉट्स को ज्यादा संसाधन और ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होगी और मंगल ग्रह जैसी यात्राएं संभव हो सकेंगीं. अब देखना ये है कि क्या ऐसे समाधान एलन मस्क का मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने का सपना पूरा करने में मदद कर पाएंगे.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )