दयानिधि

क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, जून में जलवायु में बदलाव के कारण भारत में रिकॉर्ड 61.9 करोड़ लोगों ने अत्यधिक गर्मी का कहर झेला। जिससे भारत दुनिया भर में सबसे अधिक गर्मी से प्रभावित देश बन गया। चीन दूसरे स्थान पर है, जहां 57.9 करोड़ लोगों ने इसी तरह के हालातों का सामना किया।

विश्लेषण से पता चला है कि इस अवधि के दौरान दुनिया भर में लगभग पांच अरब लोगों ने अत्यधिक गर्मी का सामना किया, जिसमें वैश्विक आबादी के 60 फीसदी से अधिक लोगों ने जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम तीन गुना अधिक तापमान का प्रकोप झेला।

रिपोर्ट के हवाले से शोधकर्ता ने निरंतर कार्बन उत्सर्जन के भयानक परिणामों को इसके लिए जिमेवार ठहराया। शोधकर्ता ने कहा, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को जलाने की एक सदी से भी अधिक अवधि ने हमें एक खतरनाक दुनिया दी है। इस गर्मी में दुनिया भर में आने वाली हीटवेव अप्राकृतिक हैं जो कार्बन प्रदूषण बंद होने तक और भी आम होती जाएंगी।

भारत ने अपनी सबसे खतरनाक और लंबी लू में से एक का सामना किया, जो जून के मध्य में कम हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 40,000 से अधिक हीट स्ट्रोक के मामले और 100 से अधिक मौतें हुई। तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जबकि रात का न्यूनतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो देश में अब तक का सबसे अधिक रिकॉर्ड है।

हीटवेव से प्रभावित आबादी
भारत 61.9 करोड़ चीन 57.9 करोड़
इंडोनेशिया 23.1 करोड़ नाइजीरिया 20.6 करोड़
ब्राजील 17.6 करोड़ बांग्लादेश 17.1 करोड़
अमेरिका 16.5 करोड़ मेक्सिको 12.3 करोड़
यूरोप (रूस को छोड़कर) 15.2 करोड़ मिस्र 10.3 करोड़
इथियोपिया 12.1 करोड़

सऊदी अरब में, हज यात्रा के दौरान अत्यधिक गर्मी से होने वाली बीमारियों के कारण कम से कम 1,300 लोगों की मृत्यु हुई। कुछ शहरों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। क्लाइमेट सेंट्रल के मुताबिक, मक्का में मई के मध्य से जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में कम से कम तीन गुना वृद्धि हुई है। क्लाइमेटमीटर द्वारा किए गए पिछले विश्लेषण से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन ने सऊदी अरब में लू को 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है।

ग्रीस में भी अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा, एथेंस में एक्रोपोलिस 43 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के कारण बंद हो गया, जिसके कारण छह पर्यटकों की मृत्यु हुई। भूमध्य सागर, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में भी इसी तरह उच्च तापमान महसूस किया गया।

अमेरिका ने लगातार दो बार गर्म हवाओं का सामना किया, जिसका असर दक्षिणी क्षेत्र, मेक्सिको और मध्य अमेरिका पर पड़ा। मेक्सिको में, सोनोरा में तापमान 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और कम से कम 125 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद पूर्वी अमेरिका में भी लू चली, जिससे न्यूयॉर्क में गर्मी से संबंधित आपातकालीन यात्राओं में 500-600 फीसदी की वृद्धि हुई।

क्लाइमेटमीटर के तेज विश्लेषण में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया। अत्यधिक गर्मी ने कोपा अमेरिका फुटबॉल टूर्नामेंट को भी प्रभावित किया, जहां पेरू और कनाडा के बीच मैच के दौरान 38 डिग्री सेल्सियस के तापमान और भारी उमस के कारण एक सहायक रेफरी बेहोश हो गया था।

चीन में जून में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि रात का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहा। वुहान शहर ने एयर कंडीशनर के बढ़ते उपयोग के कारण संभावित बिजली कटौती की चेतावनी दी। दक्षिणी गोलार्ध में, सर्दियों के तापमान में उछाल आया, पैराग्वे में 38 डिग्री सेल्सियस और पेरू में 36 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो जून के लिए ऐतिहासिक उच्चतम तापमान है। मिस्र में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया, असवान में कम से कम 40 मौतें हुई और बढ़ती ऊर्जा खपत को नियंत्रित करने के लिए रोजना बिजली कटौती की गई।

जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई से होने वाले जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक गर्मी की आवृत्ति और तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि कर रहा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, ऐसी लू अब लगभग पांच गुना अधिक बार आती हैं और अतीत की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होती हैं। जीवाश्म ईंधन के उपयोग में तेजी से कमी के बिना, ये चरम घटनाए और भी आम हो जाएंगी, जिससे लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भारी खतरे पैदा होंगे।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, जलवायु संकट वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अगर सिस्टमिक उत्सर्जक खतरनाक गर्मी और अन्य चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ावा देने वाले जीवाश्म ईंधन पर तेजी से लगाम नहीं लगाते हैं, तो लोगों की जान और लोगों की भलाई को होने वाला नुकसान और भी बढ़ जाएगा।

दुनिया भर में तापमान में वृद्धि जारी है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, दुनिया भर में जीवन की रक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए तेजी से तथा निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता और भी अधिक अहम हो जाती है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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