दयानिधि
कॉर्नेल शोधकर्ताओं द्वारा 109 देशों में माइक्रोप्लास्टिक को खाने या निगले जाने की जांच-पड़ताल की गई है। अध्ययन के अनुसार, इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लोग माइक्रोप्लास्टिक निगलने की वैश्विक प्रति व्यक्ति सूची में शीर्ष पर हैं। जबकि चीन, मंगोलिया और यूनाइटेड किंगडम सबसे अधिक माइक्रोप्लास्टिक के वातावरण में सांस लेने वाले देशों की सूची में शीर्ष पर हैं।
एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन, मौजूदा आंकड़ों के मॉडल पर आधारित है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि अनुपचारित प्लास्टिक मलबे के खराब होने और पर्यावरण में फैलने के कारण मनुष्य अनजाने में कितना माइक्रोप्लास्टिक खा या निगल जाते हैं और सांस के जरिए शरीर में पहुंचाते हैं।
लोगों के द्वारा माइक्रोप्लास्टिक के निगले जाने का अधिक व्यापक अनुमान लगाने के लिए अध्ययन में हर एक देश की खाने की आदतों, खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों, आयु जनसांख्यिकी और सांस लेने की दर को ध्यान में रखा गया है। ये सभी कारण जो हर एक देश के निवासियों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक के निगले जाने के तरीके में अंतर बताता है।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि हर देश के स्तर पर माइक्रोप्लास्टिक का बढ़ना प्लास्टिक प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को होने वाले खतरों का एक बड़ा इशारा है। एक बड़ा वैश्विक मानचित्रण पानी की बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण और प्रभावी कचरे की रीसाइक्लिंग के माध्यम से स्थानीय प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में अहम भूमिका निभाता है।
अध्ययन फलों, सब्जियों, प्रोटीन, अनाज, डेयरी, पेय, शर्करा, नमक और मसालों जैसे प्रमुख खाद्य उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को लेकर आंकड़े एकत्रित करके आहार सेवन का आकलन करता है। मॉडल आंकड़ों का उपयोग यह बताने के लिए भी करते हैं कि विभिन्न देशों में उन खाद्य पदार्थों की कितनी खपत की जाती है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया और अमेरिका में प्रति व्यक्ति टेबल नमक की खपत लगभग बराबर है, लेकिन इंडोनेशियाई नमक में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा लगभग 100 गुना अधिक है।
कुल मिलाकर, अध्ययन में पाया गया कि इंडोनेशियाई लोग हर महीने लगभग 15 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक खाते हैं। यह किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक है, जहां अधिकांश प्लास्टिक कण समुद्री भोजन जैसे जलीय स्रोतों से आते हैं। यह 1990 से 2018 तक रोजमर्रा की माइक्रोप्लास्टिक खपत में 59 गुना वृद्धि है, जो मॉडलों के लिए उपयोग की गई सीमा है। अनुमान है कि अमेरिकी आहार में प्रति माह माइक्रोप्लास्टिक का सेवन लगभग 2.4 ग्राम है, जबकि पराग्वे में सबसे कम 0.85 ग्राम है।
सांस द्वारा अंदर जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक की गणना के लिए वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा, आयु जनसांख्यिकी और मानव श्वसन दर के आंकड़ों का उपयोग किया गया था। चीन और मंगोलिया के निवासी इस सूची में शीर्ष पर हैं, जो प्रति माह 28 लाख से अधिक कणों को सांस के जरिए शरीर में पहुंचा रहा हैं।
अमेरिकी निवासी प्रति माह लगभग 3,00,000 कणों को सांस के माध्यम से ग्रहण करते हैं। केवल भूमध्यसागरीय और आस-पास के क्षेत्रों के निवासी सांस के जरिए माइक्रोप्लास्टिक की कम मात्रा को शरीर में पहुंचाते हैं, जिनमें पुर्तगाल और हंगरी जैसे देशों में प्रति माह लगभग 60,000 से 2,40,000 कणों को सांस में लेते हैं।
विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगीकरण, विशेष रूप से पूर्व और दक्षिण एशिया में, प्लास्टिक सामग्री की खपत, कचरे का उत्पादन और लोगों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक के उपभोग में वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, औद्योगिक देश एक विपरीत प्रवृत्ति का अनुभव कर रहे हैं, जो मुक्त प्लास्टिक को कम करने और हटाने के लिए अधिक आर्थिक संसाधनों द्वारा समर्थित है।
अध्ययन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और औद्योगिक संदर्भों के अनुरूप माइक्रोप्लास्टिक अवशोषण में कमी की रणनीतियों को लागू कर सकता है, लेकिन ऐसे प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है, जैसे अपशिष्ट कटौती रणनीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विकसित देशों से तकनीकी समर्थन आदि।
अध्ययन के अनुसार, पानी में प्लास्टिक के मलबे में 90 फीसदी की कमी से माइक्रोप्लास्टिक में काफी कमी आ सकती है, विकसित देशों में संभावित रूप से 51 फीसदी तक और अत्यधिक औद्योगीकरण वाले क्षेत्रों में 49 फीसदी तक की कमी हो सकती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )