डी एन एस आनंद

झारखंड में काफी लम्बे समय से, जन जन तक विज्ञान पहुंचाने के लिए प्रयासरत साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड द्वारा राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना अभियान के तहत जारी ऑनलाइन परिचर्चा “राष्ट्रीय युवा-संवाद” की 8वीं कड़ी का आयोजन 15 सितंबर रविवार को किया गया। उल्लेखनीय है कि सत्ता, व्यवस्था बाजार की ताकतें एवं धर्म के धंधेबाजों द्वारा अवैज्ञानिक सोच, अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास को बढ़ावा देने के 21वीं सदी के मौजूदा दौर में, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के आह्वान पर देशभर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अभियान का आयोजन किया जा रहा है। साइंस फॉर सोसायटी झारखंड द्वारा, झारखंड में इसके तहत जारी ऑनलाइन परिचर्चा की यह 8वीं कड़ी थी, जिसमें जनवादी लेखक संघ झारखंड की भी भागीदारी थी। परिचर्चा का विषय था- “संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) : आखिर 75 वर्षों में कहां पहुंचे हम?”
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खां (प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक) अध्यक्ष, साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने की जबकि समन्वयन एवं संचालन डी एन एस आनंद, महासचिव साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने किया। वक्ता पैनल में शामिल थे – डॉ रविन्द्र प्रसाद सिन्हा, महासचिव, ऑल इंडिया साइंस टीचर्स एसोसिएशन, पटना, बिहार, डॉ भास्कर कर्ण असिस्टेंट प्रोफेसर, बीआईटी मेसरा, रांची, झारखंड, बीजू टोप्पो वरिष्ठ फ़िल्म मेकर झारखंड, रांची तथा प्रेम प्रकाश वरिष्ठ रंगकर्मी इप्टा पलामू झारखंड। हालांकि तकनीकी कारणों से डॉ रविन्द्र प्रसाद सिन्हा परिचर्चा से जुड़ नहीं पाए।‌


विषय प्रवेश करते हुए डी एन एस आनंद ने कहा कि यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी झारखंड इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) की चर्चा करते हुए कहा कि संविधान ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है। पर आजादी के 75 वर्षों के बाद भी समाज में अवैज्ञानिक सोच, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास, कुरीति एवं पाखंड का सिलसिला जारी है। ऐसे में समाज को इससे मुक्त कराने के लिए और अधिक प्रयास करने एवं वैचारिक संघर्ष चलाने की जरूरत है ताकि तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण संपन्न, सभी प्रकार के भेदभाव, शोषण उत्पीड़न से मुक्त समतामूलक समाज एवं देश का निर्माण किया जा सके।


चर्चा की शुरुआत करते हुए बीआईटी मेसरा, रांची के प्राध्यापक डॉ भास्कर कर्ण ने 21वीं सदी के विज्ञान तकनीक के मौजूदा दौर में भी लोगों के संकुचित होती सोच पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह और छोटे दायरे में सिमटने के बजाय खुले, व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण अपनाने का दौर है ताकि हमारी युवा पीढ़ी तेज गति से हो रही तकनीकी प्रगति एवं वैश्विक बदलाव के साथ बेहतर तालमेल बिठा सके। इस क्रम में उन्होंने अपने कुछ अनुभव साझा किये। उन्होंने लोगों में तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को देश की निरंतर प्रगति के लिए बेहद जरूरी बताया। समाज में लोकतांत्रिक चेतना के विकास पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हमें खुद में, असहमति, मतभिन्नता एवं विरोध के बावजूद जन हित में मिल जुलकर रहने एवं काम करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में हम आगे बढ़ने के बजाय दोराहे पर खड़े प्रतीत होते हैं। मंहगी होती शिक्षा एवं उसकी घटती गुणवत्ता पर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की।


झारखंड के चर्चित फिल्म मेकर बीजू टोप्पो ने इस तरह की चर्चा को जरूरी बताते हुए कहा कि संविधान का निर्माण देश को सही दिशा में ले जाने एवं भेदभाव मुक्त, समतामूलक समाज के निर्माण के लिए हुआ। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा तथा आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम संविधान के श्रेष्ठ मूल्यों को आत्मसात तथा समाज में स्थापित नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि समाज को बांटने की कोई भी कोशिश गलत है तथा लोगों को जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माण में हम इन बातों का पूरा ख्याल रखते हैं तथा समाज में मौजूद अच्छाई-बुराई को सामने लाते हुए, बेहतर समाज के निर्माण के लिए हम लोगों को जागरूक करते हैं। झारखंड में मौजूद अंधविश्वास एवं डायन प्रथा जैसी कुरीतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने वैज्ञानिक चेतना अभियान को विभिन्न माध्यमों से आगे बढ़ाने तथा नई पीढ़ी तक ले जाने पर बल दिया ताकि झारखंड निर्माण का वास्तविक लक्ष्य हासिल किया जा सके तथा बेहतर समाज एवं देश का निर्माण किया जा सके।


चर्चा को आगे बढ़ाते हुए झारखंड के वरिष्ठ रंगकर्मी, इप्टा पलामू के प्रेम प्रकाश ने कहा कि मौजूदा दौर में यह चर्चा बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षो में जिस प्रकार समाज को विभाजित करने का कुत्सित प्रयास किया गया, अब उसके कुपरिणाम सामने आने लगे हैं। उन्होंने कहा कि संकीर्णता, धर्मांधता एवं अवैज्ञानिक सोच ने न सिर्फ समाज की प्रगति की धारा का अवरुद्ध किया है बल्कि उसे पीछे की ओर ले जाने लगा है। यह स्थिति चिंताजनक है।उन्होंने प्रगति के लिए समाज को जोड़ने एवं प्रेम, सौहार्दपूर्ण तर्कशील समाज के निर्माण पर बल दिया। इस क्रम में उन्होंने रंग जगत की विसंगतियों की चर्चा करते हुए उसे दूर करने पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) बेहद महत्वपूर्ण है तथा हमें उसको लेकर लोगों को जागरूक करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। समाज में बढ़ रही संकीर्णता, असहिष्णुता, नफरत की भावना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि संविधान अपने नागरिकों में धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, लिंग अथवा नस्ल के आधार पर भेदभाव की इजाजत नहीं देता तथा सभी नागरिकों को समान अधिकार एवं अवसर देने की बात करता है। हमें जनहित, समाज हित एवं देश हित में तथा बेहतर समाज व देश के निर्माण के लिए संवैधानिक मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।
परिचर्चा में शिवकांत त्रिपाठी एवं डॉ बी एम कर्ण ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ अली इमाम खां ने कहा कि वैश्वीकरण, ज्ञान -विज्ञान एवं तकनीक के मौजूदा दौर में, रूढ़िवादी परंपराओं एवं जड़ मान्यताओं से मुक्त, विवेक सम्मत, तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास एवं विस्तार बेहद जरूरी है तथा इसके लिए रेशनल एप्रोच एवं साझेपन की भावना को आगे बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि इसके बिना देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों को आगे बढ़ा पाना संभव नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि समाज एवं देश की प्रगति के लिए बेहतर नागरिकों का निर्माण बेहद जरूरी है। आस्था एवं विश्वास के नाम पर अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिए जाने को अनुचित करार देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान की भावना के अनुरूप वस्तुस्थिति की समीक्षा की जरूरत है ताकि सही, तर्कसंगत दिशा में आगे बढ़ा जा सके। हाल के वर्षो में समाज के विभिन्न घटनाक्रमों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि समाज को विभाजन से बचाते हुए, लोगों, खासकर युवा पीढ़ी में रेशनल सोच विकसित करना जरूरी है ताकि हम संविधान सम्मत, समतामूलक, विविधतापूर्ण , न्यायपूर्ण, तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण संपन्न समाज एवं देश का निर्माण कर सकें।

Spread the information