विभा वार्ष्णेय
भारत के शुष्क क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन में तेंदू पेड़ का अलग ही महत्व है। इसके पत्तों का इस्तेमाल बीड़ी बनाने में होता है, जिससे समुदाय की आजीविका को संबल मिलता है। पर साथ ही गर्मी का मौसम शुरू होते ही इसमें पीले-भूरे रंग का फल पकने लगता है, जिसे बड़े चाव से खाया जाता है। इस कारण गर्मियों में जंगल जाने का कुछ और ही मजा रहता है।
तेंदू फल गूदेदार, मीठा और पोषण से भरपूर होता है। इसे पूरा पकने में एक साल तक लग जाता है लेकिन इसकी ताजेपन की अवधि और उम्र अल्प होती है। एक पेड़ से मिलने वाले 80-100 किलोग्राम फलों में से ज्यादातर जमीन पर गिरकर बर्बाद हो जाते हैं। स्थानीय बाजारों में ताजे फलों की अच्छी कीमत मिलती है लेकिन यह कम मात्रा में ही उपलब्ध होता है। आदिवासी समुदाय गर्मियों के दौरान बचे फल को सुखाकर उसका चूरा बना लेते हैं और बारिश के मौसम में इसका इस्तेमाल करते हैं, खासकर तब जब भोजन की कमी होती है।
इस छोटे से फल को देखकर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि यह बड़े आकार वाले रामफल का रिश्तेदार है। संतरी रंग का बड़ा रामफल (विंटर पार्सिमोन) दिल्ली के बाजार में बस कुछ ही साल पहले आया है। जहां तेंदू (ईस्ट इंडियन एबॉनी ट्री) डायोस्पायरोस मेलानॉक्सिलॉन है, वहीं रामफल (विंटर पार्सिमोन) डायोस्पायरोस वर्जीनियाना है। ये दोनों फल एबेनेसी परिवार से संबंधित हैं। मुख्यत: शहरों में मिलने वाले गूदेदार पार्सिमोन के विपरीत तेंदू के फल में गूदा कम और उसके बीच बड़े-बड़े बीज छिपे होते हैं। पत्तों से होने वाले आर्थिक लाभ के कारण इन फलों की तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है। पर फिर भी फलों का महत्व इस पेड़ के वैज्ञानिक नाम से पता चलता है। इन पेड़ों का जेनरिक (सामान्य) नाम डायोस्पायरोस ग्रीक शब्द “डायोस” (दिव्य) और “पाइरोस” (फल) से मिलकर बना है।
तेंदू का विशिष्ट नाम मेलानॉक्सिलॉन ग्रीक है और इसका अर्थ है “डार्क वुड”। डायोस्पायरोस की लगभग 700 प्रजातियां हैं। कुछ प्रजातियों की लकड़ी अपनी कठोरता, भारीपन, और गाढ़े रंग के लिए लोकप्रिय हैं, जिन्हें आमतौर पर आबनूस के पेड़ (एबॉनी ट्री) के रूप में जाना जाता है। अन्य प्रजातियां अपने फलों के लिए प्रसिद्ध हैं और उन्हें पार्सिमोन पेड़ के रूप में जाना जाता है। इसकी लकड़ी में पॉलिश करने पर दर्पण जैसी फिनिश आती है और यह दुनिया की सबसे महंगी लकड़ियों में से एक है। लकड़ी के लिए डायोस्पायरोस एबेनम का इस्तेमाल ज्यादा होता है। तेंदू मध्यम आकार का पेड़ है। यह शुष्क स्थानों में पर्णपाती और नम परिस्थितियों में सदाबहार होता है। यह 25 मीटर तक बढ़ सकता है, लेकिन पेड़ों को छोटा और झाड़ीदार बनाने के लिए काट दिया जाता है ताकि पत्तों और फलों को आसानी से तोड़ा जा सके।
पोषक तत्वों से भरपूर
तेंदू फल की तासीर ठंडी होती है। इसका उपयोग गर्म महीनों के दौरान शर्बत तैयार करने में किया जा सकता है (रेसिपी देखें)। नोएडा स्थिति एमिटी यूनिवर्सिटी के एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने 2021 में जर्नल प्लांट आर्काइव्स में बताया कि फल को खुली टोकरी में 25 डिग्री सेल्सियस पर कमरे के तापमान पर रखा जाए तो इसकी शेल्फ लाइफ करीब 5 दिन की होती है। टीम ने यह भी बताया कि फल का गूदा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन सी से भरपूर है, जिसमें पोटेशियम 305.52 मिलीग्राम/ 100 ग्राम तक है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि यह शरीर को स्वस्थ रखने वाले फाइटोकेमिकल्स का उत्कृष्ट स्रोत हो सकता है। 2022 में हॉर्टिकल्चर जर्नल में प्रकाशित एक रिव्यू पेपर से पता चलता है कि ताजे फल टोटल फेनोलिक कंटेंट, फ्लेवोनोइड्स, स्कैवेंजिंग गतिविधि, एंटीऑक्सीडेंट और बी कैरोटीन सामग्री से भरपूर होते हैं जो अमरूद, बेर, स्टार फल, आम, कीवी और सेब के बराबर या उससे अधिक है। पर तेंदू इन फलों जितना लोकप्रिय नहीं है।
यह पेड़ भारत के छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में पर्णपाती जंगलों में पाया जाता है और गर्म वातावरण में पनपता है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा तेंदू पत्ते की बिक्री से सबसे ज्यादा कमाई करते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार और विकास) सहकारी संघ लिमिटेड के अनुसार, 2024 में छत्तीसगढ़ ने तेंदू पत्ते की बिक्री से 942.12 करोड़ रुपए कमाए। पेड़ की सबसे अच्छी बात यह है कि ये मूलरूप से भारत का है और इसमें सूखे को सहने की क्षमता है। ये खराब निर्जन मिट्टी, गर्म और शुष्क पहाड़ी ढलानों, चट्टानी मिट्टी और भारी मिट्टी में भी जीवित रह सकता है। पेड़ की गहरी जड़ इसे शुष्क क्षेत्रों में जीवित रहने में मदद करती है। पेड़ को अच्छी तरह से विकसित होने के लिए सूखी मिट्टी की आवश्यकता होती है। ढीली, छिद्रपूर्ण मिट्टी इसके लिए सबसे मुफीद होती है। सदियों से लोगों ने पेड़ के विभिन्न हिस्सों के उपयोग की पद्धतियां विकसित की हैं।
इसके पत्ते न केवल बीड़ी के लिए उपयोगी हैं, बल्कि यह पौष्टिक चारा भी हैं। पेड़ की बार-बार छंटाई की जा सकती है और जिससे ताजे पत्तियों तक पहुंच सुनिश्चित होती है। इसके पत्तों में लगभग 7.12 प्रतिशत प्रोटीन और 25.28 प्रतिशत फाइबर होता है। पेड़ विशेष रूप से अपनी बहुत ही विशिष्ट लकड़ी के लिए जाना जाता है जो अपनी मजबूती के लिए मूल्यवान है। इसकी लकड़ी आबनूस जितनी काली नहीं होती पर यह भी कठोर, सख्त व टिकाऊ होती है और इसका उपयोग इमारतों, खंभों, माइन प्रॉप और बैल अथवा घोड़ा गाड़ियों के शाफ्ट के लिए किया जाता है।
तेंदू के बीजों में भी औषधीय गुण होते हैं और इन्हें मानसिक विकारों, तंत्रिका विकारों और दिल की धड़कन के इलाज के लिए उपयोग में लाया जाता है। सूखे फूल मूत्र, त्वचा और रक्त रोगों में उपयोगी होते हैं। पेड़ का छाल कसैला होता है और इसका काढ़ा दस्त में इस्तेमाल किया जाता है। अब इस पौष्टिक फल को बढ़ावा देने का समय आ गया है। हाल के वर्षों में गूदे का उपयोग करके मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं जो बाजार में आसानी से बेचे जा सकें। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के शोधकर्ताओं ने फलों के गूदे का उपयोग करके जूस, जैम और आइसक्रीम बनाने की तकनीक विकसित की है। हो सकता है कि इसका कोई मूल्यवर्धिक उत्पाद आपके भोजन में जल्द शामिल हो जाए।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )