ललित मौर्या

मैंग्रोव एक ऐसे जंगल जो हमारे पर्यावरण के लिए बेहद मायने रखते हैं। एक तरफ जहां यह जंगल तटीय पारिस्थितिकी पर मंडराते खतरों को कम करने में मदद करते हैं। वहीं साथ ही बाढ़ जैसी आपदाओं से भी इंसानों की रक्षा करते हैं।

एक नए अध्ययन से पता चला है कि मैंग्रोव दुनिया को सालाना बाढ़ से होने वाले 85,500 करोड़ डॉलर के नुकसान से बचाते हैं। गौरतलब है यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सांता क्रूज के सेंटर फॉर कोस्टल क्लाइमेट रेसिलिएंस के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन को वर्ल्ड बैंक की नई रिपोर्ट ‘द चेंजिंग वेल्थ ऑफ नेशंस’ में भी शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट में तटीय समुदायों को बाढ़, तूफानी लहरों और कटाव से बचाने में मैंग्रोव की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, जिससे आम आदमी और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते पहले से कहीं ज्यादा तूफान तटों से टकरा रहे हैं। इनकी न केवल आवृत्ति में वृद्धि हुई है, साथ ही यह पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो गए हैं। ऐसे में इन विनाशकारी तूफानों से तटों की सुरक्षा कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है।

परंपरागत रूप से देखें तो सरकारें आने वाले बाढ़ से बचाव के लिए अक्सर समुद्री दीवारों और तटबंधों का सहारा लेती हैं। हालांकि अध्ययन से पता चला है कि प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र – विशेष रूप से मैंग्रोव भी तटीय सुरक्षा के लिए अधिक नहीं तो इन उपायों जितने ही कारगर हो सकते हैं। इसके साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होते हैं।

गौरतलब है कि मैंग्रोवे को 2021 में विश्व बैंक द्वारा “द चेंजिंग वेल्थ ऑफ नेशंस” रिपोर्ट में पहली बार तटों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना था। इस नए शोध में 2020 के अपडेट किए गए आंकड़ों का उपयोग करके यह बेहतर ढंग से दर्शाया गया है कि मैंग्रोव समय के साथ तटों की सुरक्षा कैसे करते हैं।

नुकसान की दर में गिरावट के बावजूद दो दशक में नष्ट हो गए 677,000 हेक्टेयर में फैले मैन्ग्रोव: एफएओ
दुनिया के करीब 1.48 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में मैन्ग्रोव का जंगल फैला है; फोटो: आईस्टॉक

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 121 देशों में मैंग्रोव के सकारात्मक प्रभावों और बाढ़ का अध्ययन करने के लिए उन्नत मॉडल का उपयोग किया है। इसमें उपोष्णकटिबंधीय तटरेखाओं के सात लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैले मैंग्रोवे भी शामिल थे। अध्ययन से पता चला है कि बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए मैंग्रोव का महत्व नाटकीय रूप से बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि दुनिया भर में समुद्र तटों के पास आबादी बढ़ रही है। इतना ही नहीं जलवायु में आते बदलावों की वजह से तूफानों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं तटों के आसपास बढ़ती आबादी की वजह से तटीय क्षेत्रों में निर्माण भी बढ़ रहे हैं।

1996 से 2010 के बीच देखें तो बाढ़ के जोखिम को कम करने में मैंग्रोव से मिलने वाला लाभ 13,000 करोड़ डॉलर बढ़ गया। वहीं 2020 तक यह आंकड़ा बढ़कर 50,200 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि झींगा पालन और निर्माण कार्यों के लिए दुनिया में तेजी से मैंग्रोव को काटा गया। लेकिन इसके बावजूद उनका महत्व और बढ़ गया है, क्योंकि पहले से कहीं ज्यादा लोगों, इमारतों और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा उन पर निर्भर है।

क्यों जरूरी है इन जंगलों का संरक्षण

रिसर्च में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि मैंग्रोव न केवल पर्यावरण, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। मौजूदा समय में मैंग्रोव बाढ़ से सालाना 85,500 करोड़ डॉलर की सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। हर साल जिन देशों को इनकी वजह से सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है, उनमें चीन, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत शामिल हैं।

लेकिन विडम्बना देखिए की इंसानों के लिए जरूरी यह मैन्ग्रोव इंसानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा की ही भेंट चढ़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, समुद्र के जलस्तर में आते उतार-चढ़ाव और इंसानी गतिविधियों के चलते मैंग्रोव दुनियाभर में तेजी से सिकुड़ रहे हैं। साथ ही यह प्राकृतिक कारणों से भी नष्ट हो रहें हैं।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी हालिया रिपोर्ट “द वर्ल्ड्स मैंग्रोव्स 2000-2020” में खुलासा किया है कि पिछले दो दशकों में करीब 677,000 हेक्टेयर में फैले मैन्ग्रोव नष्ट हो गए हैं। अनुमान है कि पिछले 40 वर्षों में दुनिया भर के 123 देशों के समुद्र तट पर फैले 20 फीसदी मैन्ग्रोव खत्म हो गए हैं।

मैंग्रोव को नुकसान पहुंचा रहा है मुंबई साल्ट पैन में डंप किया जा रहा मलबा: एनजीटी
दुनिया के करीब 1.48 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में मैन्ग्रोव का जंगल फैला है; फोटो: आईस्टॉक

हालांकि साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा है कि पिछले दस वर्षों में मैन्ग्रोव को होते नुकसान की दर में कमी आई है। रिसर्च में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि 2010 से 2020 के बीच मैंग्रोव को होता नुकसान जारी रही, लेकिन गिरावट की दर घटकर केवल 0.66 फीसदी रह गई है।

हालांकि इस दौरान बाढ़ के जोखिम की तुलना में मैंग्रोव द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा तेजी से बढ़ी है। 2020 तक, मैन्ग्रोव एक दशक पहले की तुलना में बाढ़ से 61 फीसदी ज्यादा लोगों और 109 फीसदी अधिक संपत्ति की सुरक्षा कर रहे थे।

इसका वियतनाम, बांग्लादेश, भारत, चीन और कैमरून जैसे देशों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है, जहां मैंग्रोव हर साल हजारों लोगों के जीवन की रक्षा कर रहे हैं। हालांकि दूसरी तरफ मलेशिया, म्यांमार और ताइवान जैसे देशों में मैंग्रोव से होने वाले फायदों में गिरावट आई है। इससे पता चलता है इन क्षेत्रों में मैंग्रोव के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को बेहतर करने की जरूरत है।

ये निष्कर्ष ऐसे समय में सामने आए हैं जब देश जलवायु के बढ़ते जोखिमों से निपटने के लिए नए तरीके तलाश रहे हैं। मैंग्रोव बाढ़ से बचाव के लिए एक प्राकृतिक और किफायती तरीका प्रदान करते हैं, जिससे वे जलवायु-अनुकूलन योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं।

सरकारें और नीति निर्माता भविष्य के लिए योजनाएं बना रहे हैं। ऐसे में अध्ययन मैंग्रोव के संरक्षण और बहाली में निवेश पर जोर देता है। इनका संरक्षण और बहाली न केवल पर्यावरण के नजरिए से फायदेमंद है, साथ ही यह एक स्मार्ट आर्थिक विकल्प भी है। ये पारिस्थितिकी तंत्र महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करते हैं, जो हमें जलवायु परिवर्तन के बढ़ते जोखिमों के खिलाफ मजबूत बनने में मदद करते हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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