ललित मौर्या

स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट (एसओएफआर) 2023 के मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में पश्चिमी घाट से 58.22 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले जंगल गायब हो चुके हैं। रिपोर्ट ने इस बात की भी पुष्टि की है कि इस दौरान जहां बेहद सघन वनों में 3,465.12 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ मध्यम सघन वनों में 1,043.23 वर्ग किलोमीटर और “खुले” वन में भी 2,480.11 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि “अति सघन” वनों में उन वन क्षेत्रों को रखा जाता है जहां 70 फीसदी से अधिक वितान आवरण यानी कैनोपी कवर होता है। वहीं “खुले” वन श्रेणी में यह वितान 10-40 फीसदी, जबकि “मध्यम” घने वन श्रेणी के तहत 40-70 फीसदी होता है।

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इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा

यह पहला मौका है जब केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में मौजूद जंगलों पर ध्यान केंद्रित किया है। पश्चिमी घाट छह राज्यों को कवर करता है, जिनमें गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु शामिल हैं।

पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल होने के साथ-साथ दुनिया में जैव विविधता का एक प्रमुख हॉटस्पॉट भी है। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक यह करीब 60,285.61 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें से 73 फीसदी हिस्सा वन क्षेत्र के रूप में है, जिसका कुल क्षेत्रफल करीब 44,043.99 वर्ग किलोमीटर है।

मैन्ग्रोव को भी बड़े पैमाने पर हुआ है नुकसान

केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक मैंग्रोव लक्षद्वीप में नष्ट हुए, जहां 96 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव गायब हो चुके हैं। इसके बाद जम्मू कश्मीर में 52.15 वर्ग किलोमीटर और अंडमान निकोबार में 34.22 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव नष्ट हो चुके हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु के नीलगिरी में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है, जहां 2013 से 123.44 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल खत्म हो चुके हैं। वहीं पुणे में भी 664.9 वर्ग किलोमीटर जंगल खत्म हो चुके हैं।

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इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा

स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट में पहाड़ी क्षेत्रों में जंगलों को हो रहे नुकसान पर भी प्रकाश डाला है। आंकड़ों के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश में 1,000 वर्ग किलोमीटर, मिजोरम में 987.7 वर्ग किलोमीटर और नागालैंड में 794 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में कमी आई है। इसी तरह असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में भी वन क्षेत्र को नुकसान हुआ है।

यदि ऊंचाई के लिहाज से देखें तो 2013 से 2023 के बीच जंगलों को सबसे ज्यादा नुकसान 1,000-2,000 मीटर की ऊंचाई पर हुआ है, जहां वन क्षेत्र में 937.86 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है। इसी तरह 4,000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर यह गिरावट  416.31 वर्ग किलोमीटर रिकॉर्ड की गई।

केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक मैंग्रोव लक्षद्वीप में नष्ट हुए, जहां 96 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव गायब हो चुके हैं। इसके बाद जम्मू कश्मीर में 52.15 वर्ग किलोमीटर और अंडमान निकोबार में 34.22 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव नष्ट हो चुके हैं। गुजरात के कच्छ में सबसे अधिक 71.46 वर्ग किलोमीटर में मौजूद मैंग्रोव नष्ट हुए हैं। वहीं इन दस वर्षों के दौरान केरल में 7.63 वर्ग किलोमीटर में मौजूद मैंग्रोव खत्म हो चुके हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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