दयानिधि

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि गंभीर रूप से जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रचलन बढ़ रहा है।

शोध में इस बात की जांच-पड़ताल की गई कि कैसे जलवायु संबंधी घटनाएं जैसे कि तूफान, भूस्खलन और बाढ़ के बाद के दो सालों में महिला साथी के साथ हिंसा की बढ़ती दरों से जुड़े हैं।

शोधकर्ताओं ने 1993 से 2019 के बीच 156 देशों में किए गए 363 सर्वेक्षणों से अंतरंग साथी हिंसा पर आंकड़े एकत्र किए, जिसमें उन महिलाओं पर गौर किया गया जिनके पास वर्तमान में एक साथी है। अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा को पिछले साल में किसी भी शारीरिक या यौन हिंसा के रूप में की जाने वाली हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया था।

शोध के मुताबिक, टीम ने 190 देशों में 1920 से 2022 तक जलवायु संबंधी आंकड़े भी एकत्र किए। फिर उन्होंने जलवायु संबंधी समस्याएं और अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा के बीच संबंधों का विश्लेषण किया, साथ ही देश की आर्थिक स्थिति पर भी विचार किया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि अंतरंग साथी के साथ हिंसा और कुछ जलवायु संबंधी घटनाओं, जैसे तूफान, भूस्खलन और बाढ़ के बीच एक अहम संबंध पाया गया। इस बीच अन्य प्रकार के जलवायु संबंधी समस्याओं जैसे भूकंप और जंगल की आग ने अंतरंग साथी के द्वारा की जाने वाली हिंसा से कोई स्पष्ट संबंध नहीं देखा गया।

शोध में कहा गया है कि अधिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाले देशों में अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा की दर कम पाई गई। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, मौजूदा साक्ष्यों से पता चला है कि जब कोई महिला जलवायु संबंधी घटना का अनुभव करती है, तो कुछ देशों में उसके हिंसा का अनुभव करने के आसार अधिक होते हैं, लेकिन अन्य देशों में नहीं।

शोधकर्ताओं ने शोध में बताया कि उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया कि राष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीति को जानकारी देने में मदद मिल सके। शोध के मुताबिक, शोधकर्ता इस बात का आकलन करने में असमर्थ थे कि अलग-अलग जलवायु संबंधी घटनाओं का अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा पर अधिक प्रभाव क्यों पड़ता है।

हालांकि उनका मानना है कि अलग-अलग समस्याओं का हिंसा पर प्रभाव पड़ने में अलग-अलग समय लग सकता है और आंकड़ों की उपलब्धता न होने के कारण अध्ययन की गई दो साल की अवधि में इसे शामिल नहीं किया जा सका है। जिसके कारण शोधकर्ता महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उपायों पर देशों द्वारा अधिक नियमित रूप से आंकड़ों को एकत्र करने का आह्वान कर रहे हैं।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि गर्मी और नमी से हिंसा सहित आक्रामक व्यवहार बढ़ता है। जलवायु संबंधी आपदाएं परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा को बढ़ाती हैं, जिससे हिंसा में वृद्धि हो सकती है। वे साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने के लिए अक्सर उपलब्ध सामाजिक सेवाओं को भी कम कर देते हैं, जैसे कि पुलिस और सिविल सोसाइटी, जो आपदा पर अधिक गौर करते हैं।

उसी समय, सरकारें आपदा राहत के लिए आश्रय स्थल बना सकती हैं जो अक्सर भीड़भाड़ वाले और असुरक्षित होते हैं, यौन हिंसा के खतरों के बारे में सोचे बिना। यह सब उन देशों में अधिक बार और अधिक गंभीरता से होता है, जहां पितृसत्तात्मक लिंग मानदंड हैं और जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा का उपयोग सामान्य व्यवहार के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।

पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित शोध के हवाले से शोधकर्ताओं का मानना है कि जलवायु शमन और अनुकूलन प्रयास महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान जैसे जलवायु परिवर्तन के लिए देशों द्वारा किए जाने वाले संकल्प में “महिलाओं के विरुद्ध हिंसा” का उल्लेख करना और इससे निपटने के लिए धन आवंटित करना या जलवायु परिवर्तन लिंग संबंधी कार्य योजनाएं विकसित करना शामिल किया जा सकता है। शोध के मुताबिक, समोआ और फिजी दो ऐसे देश हैं जो पहले ही ऐसा कर चुके हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से यह भी सलाह दी है कि देशों की आपदा नियोजन प्रक्रियाओं में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर विचार किया जाना चाहिए।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

 

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