राजू सजवान
अगले पांच वर्षों में वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के औसत से 1.2 डिग्री सेल्सियस से लेकर 1.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। विश्व मौसम संगठन ने अपनी नई रिपोर्ट में यह पूर्वानुमान जारी किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक 80 फीसदी संभावना है कि साल 2025 से 2029 के बीच कम से कम एक साल 2024 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में पार कर जाएगा। साल 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है। विश्व मौसम संगठन ने यह भी कहा है कि 86 फीसदी इस बात की संभावना है कि अगले पांच वर्षों में कम से कम एक साल 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होगा।
रिपोर्ट में अगले पांच सालों का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की 70 फीसदी संभावना जताई गई है, जो पिछले वर्ष की रिपोर्ट (2024-2028) से अधिक है। पिछले साल यह संभावना केवल 47 फीसदी थी और 2023 की रिपोर्ट में यह 32 फीसदी थी।
विश्व मौसम संगठन ने कहा है कि वैश्विक तापमान में हर अतिरिक्त दशमलव वृद्धि से अत्यधिक गर्मी की लहरें, भारी वर्षा, सूखा, हिमनदों और आइस शीट्स का पिघलना, समुद्रों का गर्म होना और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएं और भी बढ़ जाएंगी।
आर्कटिक में तेज गर्मी
रिपोर्ट में बताया गया है कि आर्कटिक पर अगले पांच साल के दौरान गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट सकते हैं। अगले पांच सालों के दौरान, आर्कटिक क्षेत्र का तापमान वैश्विक औसत से 3.5 गुना अधिक बढ़ने की संभावना है, जो 1991-2020 के औसत से 2.4 डिग्री से अधिक होगा।अ इसके अलावा समुद्री बर्फ का स्तर मार्च 2025-2029 तक कम होने की संभावना है। ऐसा खासकर बारेंट्स सागर, बेरिंग सागर और ओखोत्स्क सागर में हो सकता है।
बारिश के पैटर्न में भारी अंतर
रिपोर्ट के मुताबिक मई से सितंबर 2025-2029 तक की वर्षा में साहेल, उत्तर यूरोप, अलास्का, और उत्तर साइबेरिया में औसत से अधिक वर्षा होने का अनुमान है। जबकि अमेजन क्षेत्र में इस मौसम के दौरान औसत से कम वर्षा हो सकती है। दक्षिण एशिया में 2023 को छोड़कर पिछले कुछ वर्षों में औसत से अधिक वर्षा हुई है, और यह 2025-2029 के दौरान भी जारी रहने की संभावना है, हालांकि सभी मौसमी पैटर्न समान नहीं होंगे।
2025 एक निर्णायक वर्ष
2025 वैश्विक जलवायु कार्य के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष माना जा रहा है। इसका कारण यह है कि 2025 से पहले हमें अपनी जलवायु योजनाओं (एनडीसी) में बदलाव और सुधार की आवश्यकता है, ताकि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। पेरिस समझौते में देशों ने सहमति दी थी कि वैश्विक औसत तापमान को औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की कोशिश की जाएगी और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास किया जाएगा।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )