दयानिधि

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के नए शोध के अनुसार, जीवाश्म ईंधन से साल 2024 में दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। दुनिया भर में साल 2024 के कार्बन बजट में जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन 37.4 अरब मीट्रिक टन होने का अनुमान लगाया गया है, जो 2023 से 0.8 फीसदी अधिक है।

शोध में कहा गया है कि इस दर से 50 फीसदी तक के आसार है कि ग्लोबल वार्मिंग लगभग छह सालों में लगातार 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी। वहीं जीवाश्म ईंधन के जलने से भारत के कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन में 2024 में 4.6 फीसदी की वृद्धि होने के आसार जताए गए हैं, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है, जबकि यह पिछले साल 8.2 फीसदी के करीब था।

बाकू में कॉप-29 में जारी किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत के कार्बन उत्सर्जन में कोयले की भूमिका 4.5 फीसदी, तेल 3.6 फीसदी, प्राकृतिक गैस 11.8 फीसदी और सीमेंट क्षेत्र चार फीसदी तक उत्सर्जन में वृद्धि कर रहा है। शोध में कहा गया है, भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मजबूती से बढ़ रही है, जिसमें महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का विकास और बिजली की मांग में वृद्धि हो रही है, जो नए नवीकरणीय ऊर्जा में ठोस वृद्धि से आगे निकल गई है।

भारत की तुलना में चीन के उत्सर्जन में 2024 में 0.2 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका में 0.6 फीसदी और यूरोपीय संघ में 3.8 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है। दुनिया भर में सीओ 2 उत्सर्जन में भारत का योगदान आठ फीसदी है जबकि चीन की 32 फीसदी, अमेरिका 13 फीसदी और यूरोपीय संघ का योगदान सात फीसदी है।

शोध में कहा गया है कि कोयला उत्सर्जन (दुनिया भर में उत्सर्जन का 41 फीसदी के लिए जिम्मेवार है ) में 0.2 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसमें भारत, चीन और बाकी दुनिया में कुल मिलाकर वृद्धि होगी और यूरोपीय संघ और अमेरिका में कमी आएगी।

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट और ग्लोबल कार्बन बजट वार्षिक अनुसंधान दुनिया भर के 80 से अधिक संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया जाता है, जिसमें यूके में एक्सेटर विश्वविद्यालय और ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय, नॉर्वे में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान केंद्र शामिल है।

कार्बन सिंक को लेकर शोध से पता चला है कि भूमि और महासागरों ने जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों का सामना करते हुए भी मानवजनित गतिविधियों के कारण उत्सर्जित होने वाले सीओ2 का लगभग आधा हिस्सा अवशोषित कर लिया है। पिछले दशक में हर साल औसतन महासागरों ने 10.5 अरब टन – या कुल सीओ2 उत्सर्जन का 26 फीसदी अवशोषित किया।

यह तब भी है, जब जलवायु परिस्थितियों ने पिछले दशक में महासागर में सीओ 2 के जमा होना लगभग 5.9 फीसदी तक कम कर दिया है। हो सकता है बदली हुई हवाओं के कारण जो समुद्र के प्रसार को बिगाड़ती हैं, गर्म पानी में सीओ2 की कम घुलनशीलता में इनकी कम भूमिका होती है।

अल नीनो जलवायु घटना के कारण साल 2023 में भूमि पर पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा कार्बन अवशोषण में कमी आई (जिसे भूमि में कार्बन जमा होने के रूप में जाना जाता है), जिसके कारण साल 2024 की दूसरी तिमाही तक अल नीनो के समाप्त हो जाने के बाद ठीक होने का अनुमान है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

Spread the information