दयानिधि
जलवायु परिवर्तन का तेजी से बढ़ना और अरबों लोगों के पास अभी भी बुनियादी जरूरतों की कमी होना, दोनों चुनौतियों का एक साथ समाधान करना न केवल संभव है बल्कि जरूरी भी है। नए शोध में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करते हुए सभी के लिए अच्छा जीवन स्तर सुनिश्चित किया जा सकता है, बशर्ते उत्सर्जन में कमी को जल्दी और निर्णायक रूप से लागू किया जाए।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) ऊर्जा, जलवायु और पर्यावरण कार्यक्रम के शोधकर्ता के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में ऊर्जा परिदृश्यों की जांच की गई है जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और पेरिस समझौते दोनों के उद्देश्यों को एक साथ शामिल करता हैं।
शोध पत्र में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि क्या ये परिदृश्य वैश्विक स्तर पर सभी लोगों को आवश्यक सेवाओं के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि घरों को गर्म करना और ठंडा करना, खाना पकाना, यातायात, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल आदि।
शोध का लक्ष्य यह समझना है कि अत्यधिक गरीबी को खत्म करने के लिए क्या करना होगा, साथ ही जलवायु कार्रवाई को भी आगे बढ़ाना होगा। शोध में केवल लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालने की बात नहीं की जा रही है। विकास के साथ भविष्य की ओर देखा जा रहा है, ताकि दुनिया भर में हर किसी के लिए कम से कम अच्छा जीवन स्तर सुनिश्चित किया जा सके।
शोध पत्र में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने नए ‘डिजायर मॉडल’ का इस्तेमाल ऊर्जा परिदृश्यों की तुलना करने के लिए किया जो सतत विकास को प्राथमिकता देते हैं और जो पिछले रुझानों को जारी रखते हैं। एक अहम खोज यह है कि सतत विकास परिदृश्य बुनियादी जरूरतों के लिए न्यूनतम जरूरी ऊर्जा से कम खपत करने वाले लोगों की संख्या को काफी हद तक कम कर देते हैं।
इन परिदृश्यों के तहत, उन लोगों की संख्या जिनके पास अपनी बुनियादी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं है। ऊर्जा के 90 फीसदी से अधिक घटने का अनुमान है, जो मौजूदा रुझानों को जारी रखने से हासिल की जाने वाली प्रगति की तुलना में बहुत तेज दर है। इसके अलावा शोध में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अच्छे जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए जरूरी उत्सर्जन कुल उत्सर्जन से बहुत कम है।
शोध के निष्कर्ष इस धारणा को चुनौती देते हैं कि गरीबी को मिटाना और ग्रह की रक्षा करना परस्पर विरोधी लक्ष्य हैं। वास्तव में बुनियादी मानवीय गरिमा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी ऊर्जा वर्तमान में वैश्विक स्तर पर खपत की जाने वाली ऊर्जा की तुलना में बहुत कम है। फिर भी इस तरह के सतत विकास प्रक्षेपवक्र का मतलब है कि कम आय वाले देशों में विकास दर जो देखा गया है उससे बहुत अधिक है। इसके लिए उचित विकास प्रयासों और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि न केवल उन जगहों पर अधिक सेवाएं होनी चाहिए जहां उनकी जरूरत है, बल्कि यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि सेवाएं कैसे प्रदान की जाती हैं और यह सुनिश्चित किया जाए कि संसाधन बर्बाद न हों, बल्कि उन लोगों को आवंटित किए जाएं जिन्हें उनकी जरूरत है।
यह अध्ययन ऊर्जा की जरूरतों पर विस्तृत अध्ययनों को उत्सर्जन में कमी के लिए वैश्विक एकीकृत मॉडलिंग से जोड़ने वाला पहला अध्ययन है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो भविष्य की ऊर्जा जरूरतों में कम से कम एक तिहाई की कमी आ सकती है, जबकि उत्सर्जन शून्य हो जाएगा। यह अध्ययन एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )