डी एन एस आनंद
आज 30 नवंबर है। देश के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस का जन्मदिन। यह भारतीय संविधान का 75 वां वर्ष है। साइंस फार सोसायटी, झारखंड ने इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मनाने, वर्ष भर जन विज्ञान अभियान चलाने एवं विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने का निर्णय किया है, ताकि संविधान निर्दिष्ट, समाज में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। उल्लेखनीय है कि संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे’, जबकि अनुच्छेद 51ए(जी) के अनुसार ‘प्राकृतिक प
र्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे’।
देश की आजादी के 77 वर्ष से अधिक हो गए पर समाज में वैज्ञानिक मानसिकता का विकास अब भी दु:स्वप्न बना हुआ है। संविधान की सही जानकारी एवं समझ का अभाव तथा देश के एक नागरिक के रूप में, लोगों में अपने मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति उदासीनता, लापरवाही एवं उपेक्षाभाव ने हालात को बदतर बना दिया है। प्रतिगामी सोच, रूढ़ परंपराओं, मूढ़ मान्यताओं, कुरीति, पाखंड, पुरोहितवाद, अंधश्रद्धा व अंधविश्वास ने समाज की प्रगति के मार्ग में अवरोध पैदा कर दिया है। अवैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं धर्म के धंधेबाजों के मकड़जाल से बाहर निकले बिना संविधान सम्मत, सभी प्रकार की गैर-बराबरी, लूट, अंधश्रद्धा , अंधविश्वास से मुक्त, समता मूलक, धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील, विविधतापूर्ण, न्यायपूर्ण भारत का निर्माण एक सपना ही बना रहेगा।
ऐसे में देश के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत कहीं अधिक महसूस होती है। यह तर्कशील, आधुनिक, आत्मनिर्भर एवं विज्ञान सम्मत भारत के निर्माण के लिए भी बेहद जरूरी है।
30 नवंबर 1858 को जगदीश चंद्र बोस का जन्म मेमनसिंह (वर्तमान बंगला देश) में हुआ था। जहां प्रकृति के सान्निध्य में, आमलोगों के बच्चों के बीच उनका बचपन बीता।
प्रकृति से मिली संवेदनशीलता
वह अंग्रेजी शासन का दौर था। उनके पिता भगवान चंद्र बोस सरकारी नौकरी में थे। जगदीश चन्द्र बोस के बचपन का बड़ा हिस्सा फरीदपुर में बीता। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई एक बंगाली मीडियम स्कूल में हुई। उनके पिता मानते थे कि अंग्रेजी शिक्षा हासिल करने के पूर्व जगदीश चन्द्र बोस को मातृभाषा बंगला एवं अपनी संस्कृति की जानकारी जरुर होनी चाहिए। प्राइमरी स्कूल में उनके सहपाठी आमतौर पर किसानों, मछुआरों एवं श्रमिकों के बच्चे थे, जिनके सानिध्य में उनको प्रकृति को देखने, जानने, समझने एवं सीखने का भरपूर मौका मिला। सांस्कृतिक गतिविधियों में भी उनकी गहरी रुचि थी। वे ग्रामीण मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम ” जतरा ” बहुत चाव से देखने जाते। वे महाभारत महाकाव्य के एक प्रमुख पात्र कर्ण से बेहद प्रभावित थे। उनका मानना था कि अपनी नीची जाति की पहचान के कारण कर्ण को बार बार भेदभाव, उपेक्षा एवं अपमान का सामना करना पड़ा। पर वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने आदर्शों से पीछे नहीं हंटा एवं हालात का सदैव बहादुरी से डटकर सामना किया। हर परिस्थितियों का डटकर सामना करने का पाठ उन्होंने अपने बचपन में ही पढ़ लिया था। 1869 में वे पढ़ने के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) आ गए। यहां उनकी पढ़ाई संत जेवियर कॉलेज में हुई। 1880 में उन्होंने फीजिकल साइंस से ग्रेजुएशन किया। 1880 में ही मेडिसिन की पढ़ाई करने वे इंग्लैंड गए। 1884 में वे नेचुरल साइंस में ग्रेजुएट हुए। 1885 में वे भारत लौटे एवं कोलकाता स्थित प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया। 1894 में उन्होंने साइंटिफिक रिसर्च का रास्ता पकड़ा। अंततः वे 1915 में भौतिकी के सीनियर प्रोफेसर के रूप में रिटायर हुए। जगदीश चन्द्र बोस रविन्द्र नाथ टैगोर के निकटतम मित्रों में से थे। उनका निधन 23 नवंबर 1937 को उसके गिरिडीह, वर्तमान झारखंड (तत्कालीन बिहार) स्थित आवास पर हुआ।
जे सी बोस की विरासत को बचाएं
जाहिर है कि उनका अंतिम समय जंगल पहाड़ एवं प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मौजूदा झारखंड के गिरिडीह में बीता। स्वाभाविक रूप से झारखंड को विज्ञान जगत के अपने इस ख्यातिनाम, महान वैज्ञानिक बेटे पर गर्व है। झारखंड प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। पर इसका पिछड़ापन जगजाहिर है। एक ओर प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता है। कोयला, लोहा, तांबा, सोना से लेकर यूरेनियम तक। उद्योग धंधे का जाल। वन संपदा की अमूल्य धरोहर। लेकिन यह तो सिक्के का महज एक पहलू है। इसका दूसरा हिस्सा बेहद पीड़ादायक है। भूख से मौत एवं डायन हत्या की खबरें यहां अब भी सामने आती हैं। अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, बीमारी, बदहाली, अंधविश्वास की जड़ें यहां अब भी काफी गहरी हैं। 21वीं सदी के मौजूदा ज्ञान विज्ञान के दौर में भी डायन के नाम पर निर्दोष, गरीब, मजबूर महिलाओं की लगातार होने वाली हत्याएं मन को विचलित करती हैं। अंधविश्वास के इस दुष्चक्र से बाहर निकाले वगैर झारखंड का विकास संभव नहीं है। और इसके लिए जरूरी है लोगों के बीच वैज्ञानिक जागरूकता। लोगों को जागरूक बनाकर, उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास कर ही झारखंड को इस मकड़जाल से बाहर निकाल कर विकास एवं प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाया जा सकता है।
साइंस फार सोसायटी झारखंड की पहल
राज्य में वैज्ञानिक जागरूकता के लिए विगत करीब दो दशकों से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत निबंधित एक स्वयंसेवी गैर सरकारी संस्था साइंस फार सोसायटी, झारखंड इस दिशा में सतत प्रयत्नशील है। इसके साथ ही पीपुल्स साइंस सेंटर जमशेदपुर की पहल पर 28 फरवरी 2021, को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शुरू हुए वैज्ञानिक चेतना वेबसाइट एवं साइंस वेब पोर्टल ने भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार में अपनी भागीदारी शुरू की है। झारखंड समेत देश भर के बाल- युवा विज्ञानियों विज्ञान संचारकों के बीच बेहतर संवाद, समन्वय एवं सहयोग बनाने में यह राष्ट्रीय विज्ञान पोर्टल अपनी अहम भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इसी प्रकार साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने राज्य में शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए ‘जगदीश चंद्र बोस जन शोध अभियान’ एवं ‘जे सी बोस मेमोरियल व्याख्यान माला’ का सिलसिला शुरू किया है जिसमें, वैज्ञानिक चेतना से संबंधित देश के प्रमुख विज्ञान हस्तियों, विज्ञान संचारकों के व्याख्यान तथा वैज्ञानिक चेतना परिचर्चा श्रृंखला राष्ट्रीय युवा-संवाद का आयोजन किया जा रहा है। जिसकी कई कड़ियों का आयोजन किया जा चुका है। इस प्रकार साइंस फार सोसायटी झारखंड, ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के आह्वान पर राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना अभियान एवं जन संवाद को बल देने एवं उसे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयासरत है। लेकिन समस्याओं की विशालता एवं विकरालता को देखते हुए यह जरूरी है कि सरकार एवं जनता के सामूहिक प्रयास एवं व्यापक जन भागीदारी से झारखंड को मौजूदा हालात से बाहर निकाला जाए। इसके लिए सतत जन विज्ञान अभियान को आगे बढ़ाया जाए, मंजिल तक पहुंचाया जाए।
ऐसे में यह उचित होगा कि देश के शीर्ष वैज्ञानिक, विज्ञानकर्मी एवं विज्ञान संचारक जगदीश चन्द्र बोस के विज्ञान गतिविधियों के केन्द्र रहे गिरीडीह, झारखंड में लोगों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का साइंस म्यूजियम, शोधकर्ताओं के लिए एक प्रमुख शोध केंद्र एवं बच्चों के लिए विज्ञान गतिविधि केंद्र के रूप में विकसित करने के प्रयास को बल दें। वैसे यह सुखद है कि झारखंड सरकार ने गिरिडीह में जे सी बोस यूनिवर्सिटी के गठन को अपनी मंजूरी दे दी है। पर उसे धरातल पर उतारा जाना अभी बाकी है। इसके साथ ही उनके सपनों, विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाना एवं उससे युवा पीढ़ी को जोड़ना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है जो अब भी बाकी है।
झारखंड प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का केंद्र है पर आवश्यकता के अनुरूप शोध केंद्र नहीं होने के कारण वह उपलब्ध संसाधनों का जनहित एवं देशहित में बेहतर उपयोग नहीं कर पा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि उनके स्मृति स्थल पर विज्ञान की ऐसी मशाल जले जो अंधविश्वास के अंधकार को दूर कर झारखंड को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर दे।
यह पहल महज झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे समाज एवं देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
( लेखक साइंस फॉर सोसायटी झारखंड के महासचिव एवं वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल जमशेदपुर, झारखंड के संपादक हैं )