महोदय/महोदया,
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय(एन.ए.पी.एम)द्वारा संचालित नदी घाटी मंच की तरफ से हम देश की बहुमूल्य नदियों की गंभीर दशाके मद्देनज़र एक मज़बूत नदी प्रबंधन कानून की मांग के साथ, ये पत्र भेज रहे हैं आगामी चुनावों के सन्दर्भ में हम सभी राजनीतिक दलों और सांसदों के सामने प्रमुख मांगों के साथ एक पीपुल्स बिल का मसौदा रख रहे हैं।
पृथ्वी पर गहराते पर्यावरणीय संकट और इससे जुडी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए, हम समझते हैं कि भारत के 2024 के संसदीय चुनाव न केवल देश, दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है।जबकि चुनावी राजनीति में दूरदर्शिय लक्ष्य छोड़,लोक-लुभानि नीतियों का दबदबा रहता है, तो पर्यावरण के मुद्दों को हमेशादरकिनार कर दिया जाता है।हमसभी पार्टियां अपना ध्यान देश की अनमोल प्राकृतिक विरासत – हमारी नदियों – पर लाना चाहते हैं, जो न केवल हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, बल्किइस देश के प्रत्येक नागरिक को जीवन और आजीविका सुरक्षा प्रदान करती हैं।हमारी नदियाँ, सभ्यता की रीढ़ और भारत की प्राकृतिक जीवन रेखाएँ, एक बढ़ते संकट में हैं और हम सभी दलों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और राजनेताओं से इस विषय को गंभीरता से लेने की अपील करते हैं।
नदियों के साथ, किसानों – विशेष रूप से छोटे भूमिधारकों, मछुआरों, घुमंतूसमुदायों और कई आदिवासी, दलित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के तटवर्ती अधिकार जुड़े हुए हैं। देश की विविध नदी घाटियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों और गठबंधनों के रूप में हम केंद्र और राज्य सरकारों की विकासात्मक नीतियों के बारे में चिंतित हैं – बड़ी निर्माण परियोजनाओं पर आधारित आर्थिक व्यवस्था ने हमारे नदी पारिस्थितिकी तंत्र और नदियों का वस्तुकरण, निजीकरण, विनियोजन और प्रदूषण ही किया है–इसमें‘विकास’ के नाम पर बांधों, बैराजों, तटबंधों, जलविद्युत परियोजनाओं, बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक और अवैध रेत खनन, सीवेज और अपशिष्टप्रदूषण, इंटरलिंकिंग और रिवर फ्रंट परियोजनाओं का निरंतर निर्माण शामिल है।
इनके कारण भूमि उपयोग और जल विज्ञान में परिवर्तन ने देश में सतही और भूजल दोनों व्यवस्थाओं को प्रभावित किया है, जिससे लाखों लोग अपनी आजीविकाओं से बेदखल और विस्थापित हुए हैं।नर्मदा पर बाँध निर्माण मेंबिना पुनर्वास विस्थापन की ऐतहासिक साज़िश और अन्याय अब हमें मंज़ूर नहीं।हम ‘नदी संरक्षण’ की आड़ में सांप्रदायिक, विभाजनकारी कृत्यों के बारे में भी समान रूप से चिंतित हैं और ऐसी नीतियों की निंदा करते हैं।पीने के पानी के संकट ने महिलाओं के श्रम पर बोझ को कई गुना बढ़ा दिया है और सुरक्षित और साफ़ पानी की कमी देश भर में बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रही है। जल प्रशासन के लिए जिम्मेदार केंद्रीय जल आयोग (CWC) जैसे संस्थानों ने ‘जल प्रबंधन’ के नाम पर तकनीकी व इंजीनियरिंग परियोजनाओंको जनता पर थोपा है,
जबकि नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम जो हमारी नदियों की पवित्रता का गुणगान करते हैं, उसमेंनदी पुनर्जीवन के नाम पर सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी मात्रहै।आज हम बढ़ते तापमान के साथ,भयंकर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं –एक तरफ़तेज़ी से पिघलतेग्लेशियर हिमालय की नदियाँ और उसकी गोद में बसेमैदानी इलाकोंको कभी बाढ़, तो कभी सूखेका समाना करना पड़ता हैतो दूसरी तरफ नदियों के सूखने के कारण जल संसाधनों के बंटवारे पर अंतरराज्यीय और क्षेत्रीयविवादबढ़ रहे हैं – जैसा कि हम कावेरी, महानदी, कोसी (सीमा-पार नदी) और मुल्लयार और पेरियार जैसी अन्य छोटी नदियों में देख पाते हैं।
पिछले वर्ष हुई चर्चाओं और विचार-विमर्श के माध्यम से, हमने यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत के संवैधानिक मूल्यों औरसततता तथा समता के सिद्धांतों पर आधारित नदी प्रबंधन व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है।‘विकास‘ के नाम पर गलत प्राथमिकताओं को चुनौती देना और अपने संविधान, मानवाधिकारों, पारिस्थितिक स्थिरता और न्यायसंगत, लोकतांत्रिक भागीदारी के मूल्यों के आधार पर, हमारे नदियों के संरक्षण केलिए पैरवी करना हमारा लक्ष्य है।हम आपके समक्ष एक केंद्रीय कानून का मसौदा प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका उद्देश्य भारत में नदियों और तटीय अधिकारों की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जीवन है। इस मसौदा कानून में जिन कुछ प्रमुख मुद्दों को संबोधित किया गया है वे हैं: Ø
1-जीवन के स्रोत के रूप में नदियों के समग्र महत्व की पहचान और नदी संरक्षण को प्राथमिकता देने वाले विकास प्रतिमानों की वकालत करना।
2-अन्यायपूर्ण अतिक्रमणों (विशेषरूप से बांधों और तटबंधों) और नदियों पर पड़ने वाले प्रभावों को संबोधित करने के लिए मौजूदा कानूनों और संवैधानिक मूल्यों के साथ तालमेल बिठाना।
3-नदियों को उनके जल प्रवाह के आधार पर परिभाषित करने से लेकर, नदी के पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने और संसाधन आवंटन/साझाकरण में वितरणात्मक न्याय सुनिश्चित करने तक के सिद्धांत लागू करना।
4-गैर–मानसूनी महीनों में भी नदियों को सूखने से बचाने के उपायों के साथ, प्राथमिकता के रूप में नदियों के निरंतर और अप्रदूषित प्रवाह पर जोर देना।
5-अवैध रेत खनन, शहरी, औद्योगिक और कृषि स्रोतों से होने वाले प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण करके, नदी जलग्रहण क्षेत्रों में वनीकरण और वन आवरण की सुरक्षा का आह्वान करना/
6-नदियों और उनके पारिस्थितिक तंत्रों पर विकास गतिविधियों के प्रभावों का व्यापक मूल्यांकन और रोकथाम, निर्णय लेने में तटवर्ती समुदायों के परामर्श और सहमति को सुनिश्चित करना।
7-विस्थापन संबंधी मुद्दोंका समाधान प्रभावित आबादी की ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्यकरना और उचित मुआवजे और पुनर्वास कानून २०१३ को पूर्ण रूप से लागू करना।
8-विभिन्न विषयों की विशेषज्ञता और वैधानिक एजेंसियों, नागरिक समाज और नदी समुदायों के प्रतिनिधित्व के साथ एक नदी बेसिन प्राधिकरण (RBA)स्थापना।
9- नदी बेसिन प्राधिकरण के कार्यों को परिभाषित करना , जिसमें नदी सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित कार्यों की योजनाबजटनिष्पादन और निगरानी शामिल है।
10-पारिस्थितिक और सामाजिक–सांस्कृतिक मूल्यांकन और सार्वजनिक परामर्श को शामिल करते हुए, अंतर–विषयक समितियों द्वारा प्रत्येक नदी के लिए मास्टर प्लान तैयार करना।
11-इन समितियों की जिम्मेदारियों की रूपरेखा तैयार करें, जिसमें बजट तैयार करना, निष्पादन की निगरानी और निगरानी समितियों की नियुक्ति शामिल है।
12-उल्लंघनों के खिलाफ़, कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, नियमित सर्वेक्षण और अनुसंधान का आह्वान।
हम आशा करते हैं कि ये महत्वपूर्ण मुद्दे आपके चुनावी घोषणा–पत्रों और आपकी पार्टी की भविष्य की कार्य–नीति में शामिल होंगे। हम आपकी ओर से लिखित उत्तर और तत्काल कार्रवाई की प्रतीक्षा करते हैं।
धन्यवाद सहित,
राष्ट्रीय नदी घाटी मंच
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय
(सन्दर्भ –एन ए पी एम् रिवरस-नदी घाटी मंच ,डाउन टू अर्थ )