विवेक मिश्रा
प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले महाकुंभ की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। हालांकि, इसमें एक सबसे अहम चीज की अनदेखी जारी है और वह है सीधे गंगा में गिरने वाले सीवेज (मलजल) की। स्थिति यह है कि गंगाजल आचमन लायक नहीं है। यानी वह श्रद्धालु जो प्रयाग की गंगा में स्नान करके अपने आप को शुद्ध मान रहे हैं दरअसल वह जाने-अनजाने शहर के मलजल से ही स्नान कर रहे हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चेयरमैन और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ गंगा गंगा नदी के प्रदूषण नियंत्रण, रोकथाम और उपचार के मुद्दे पर गंगा राज्यों और उनके जिलों की सुनवाई कर रही है। इस मामले में 6 नवंबर, 2024 को सुनवाई की गई।
इस सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार की 30 अक्तूबर, 2024 को पेश की गई अनुपालन रिपोर्ट पर गौर किया गया। इस रिपोर्ट में के मुताबिक प्रयागराज नगर में रोजाना 468.28 मिलियन लीटर प्रति दिन एमएलडी सीवेज उत्पन्न हो रहा है, जबकि सीवेज उपचार की क्षमता केवल 340 एमएलडी है। इसका मतलब है कि रोजाना 128.28 एमएलडी सीवेज का उपचार नहीं हो रहा है और वह सीधे गंगा नदी में ही जा रहा है।
इसी अनुपालन रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि प्रयागराज में 25 अनटैप्ड नालों से बिना उपचारित सीवेज गंगा में और 15 अनटैप्ड नालों से यमुनाजी में गैर उपचारित सीवेज गिराया जा रहा है।
प्रयागराज में 340 एमएलडी क्षमता वाले कुल 10 एसटीपी डिजाइन्ड हैं। इनमें से सिर्फ 9 एसटीपी काम कर रहे हैं जबकि एक एसटीपी नॉन ऑपरेशनल यानी अभी तक बना नहीं है। इसके अलावा इन 10 एसटीपी में सिर्फ सलोरी स्थित 14 एमएलडी क्षमता वाला एसटीपी ही ऐसा है जो सभी जल उपचार मानकों पर काम कर रहा है बाकी सभी एसटीपी जैव ऑक्सीजन मांग, घुलित ऑक्सीजन, पीएच, टीएसएस जैसे निर्धारित जल मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं।
अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक कुल 11 गंगा जिलों में मौजूद 16 कस्बों में 41 एसटीपी निर्धारित किए गए हैं। इनमें से 6 एसटीपी का काम अभी तक पूरा नहीं किया गया है और वह बंद पड़े हैं। अन्य 35 एसटीपी में सभी 34 एसटीपी निर्धारित मानकों पर सीवेज का उपचार नहीं कर रहे हैं।
अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर देहात जिले में कोई सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) नहीं है, लिहाजा वहां के सीवेज का कोई उपचार नहीं हो रहा है।
रिपोर्ट में पाया गया कि गंगा के 11 जिलों के 16 कस्बों में मौजूद एसटीपी की डिजाइन्ड कैपिसिटी 1337.96 एमएलडी है जबकि मौजूद एसटीपी की उपयोगिता क्षमता 1116.24 एमएलडी (85.8 फीसदी ऑपरेशनल) है। इसका अर्थ हुआ कि सीवेज उपचार में 221.72 एमएलडी का अंतर है।
वहीं, अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक 41 एसटीपी में कुल 23 एसटीपी में फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) मानक का उल्लंघन हो रहा है, जो गंगा नदी के जल की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
एनजीटी ने 6 नवंबर को अपनी रिपोर्ट में गौर किया कि केवल 12 एसटीपी ऐसे हैं जो फीकल कोलीफॉर्म मानक (<230 एपीएन/100एमएल) का अनुपालन कर रहे हैं। इसका मतलब है कि इन एसटीपी द्वारा उपचारित पानी में बैक्टीरिया की संख्या अनुमत सीमा से कम है, जो जल की गुणवत्ता के लिए अच्छे संकेत हैं।
वहीं, 23 एसटीपी ऐसे हैं जो फेकल कोलीफॉर्म मानकों (>230 एमपीएन/100एमएल) का पालन नहीं कर रहे हैं। इसका मतलब है कि इन एसटीपी द्वारा उपचारित पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा अधिक है, जो गंगा और अन्य जल स्रोतों की जल गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकता है।
वहीं, 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम (जैसे क्लोरीनेशन) है, जो उपचारित जल को बैक्टीरिया मुक्त करने में मदद करता है। वहीं, 13 एसटीपी ऐसे हैं जो अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक (कार्य कर रहे हैं। इन एसटीपी की डिजाईन क्षमता 404.86 एमएलडी है जबकि इनका उपयोग 470.95 एमएलडी तक हो रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक 11 एसटीपी अभी निर्माणाधीन या परीक्षणाधीन हैं। इन संयंत्रों के चालू होने के बाद सीवेज उपचार की क्षमता में वृद्धि होगी, जो प्रदूषण नियंत्रण में सहायक होगा।
इसके अलावा कानपुर में 15 एमएलडी क्षमता वाले बनियापुर एसटीपी को तीन वर्षों से अधिक समय से पूर्ण रूप से तैयार होने के बावजूद चालू नहीं किया गया है। इस संयंत्र का चालू न होना कानपुर के सीवेज के उचित उपचार में एक बड़ी रुकावट है। इसके अलावा फर्रुखाबाद में स्थित दो एसटीपी पूरी तरह से बंद हैं, जिसके कारण वहां से निकलने वाला बिना उपचारित सीवेज सीधे गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है।
वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 326 नालों में से 247 नाले अविकसित (अनटैप्ड) हैं और ये नाले 3513.16 एमएलडी गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। एनजीटी ने 6 नवंबर को सुनवाई के दौरान गौर करने पर पाया कि अयोध्या में भी स्थिति बेहतर नहीं है और अन्य जिलों की हालत भी चिंताजनक बनी हुई है।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से यह निर्देश दिया है कि वे एक शपथ पत्र दाखिल करें, जिसमें प्रत्येक जिले के नालों की स्थिति, उनसे उत्पन्न सीवेज की मात्रा, सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़े जाने वाले नालों की योजना और इन संयंत्रों के क्रियान्वयन की समयसीमा का विवरण मौजूद हो।
पीठ ने यह भी कहा है कि शपथ पत्र में यह भी बताया जाए कि सीवेज उपचार संयंत्रों के निर्माण के लिए भूमि आवंटन, वित्तीय संसाधन और समयसीमा की क्या जानकारी है। मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी 2025 को होगी।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )