वेदप्रिय
ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के आह्वान पर 7 नवम्बर 2023 से 28 फरवरी 2024 तक राष्ट्रव्यापी साइंटिफिक टेंपर कैंपेन ( वैज्ञानिक चेतना अभियान ) चलाया जा रहा है। इस क्रम में देश के विभिन्न भागों में, लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का याद आना स्वाभाविक है। करीब दो दिन पूर्व ही 14 नवम्बर को, जन्मदिन के अवसर पर, कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हें याद किया है। दरअसल अन्य गुणों के अलावा आजादी के बाद नए भारत के निर्माण में, साइंटिफिक टेंपर को प्रोत्साहित करने पर बल, ने उन्हें समकालीन राजनेताओं में विशेष बना दिया। यही वजह है कि प्रतिगामी अवैज्ञानिक सोच वाली शक्तियों का सर्वाधिक हमला भी आज उन्हें ही झेलना पड़ रहा है। प्रस्तुत है इस मुद्दे पर वरिष्ठ विज्ञान लेखक वेदप्रिय का एक विशेष आलेख –
पंडित नेहरू आधुनिक भारत के नवनिर्माताओं में से एक थे। द्वितीय विश्वयुद्ध की त्रासदी का तुरंत बाद, सदियों की गुलामी, पुरातनपंथी जकड़न ,आपसी फूट आदि ने देश को खोखला कर दिया था। जातिवाद, छुआछूत आर्थिक विपन्नता ,व सांस्कृतिक पिछड़ापन यहां हावी था। विभाजन की त्रासदी के चलते विभिन्नताओं की एकता बनाए रखना कोई कम चुनौतियां नहीं थी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन ने एक नई ऊर्जा का संचार जरूर किया था जिसके कारण हमने आजादी तो पा ली थी। लेकिन राष्ट्र के पुनर्निर्माण का एक बड़ा कार्य हमारे सामने था । एक बड़े दूरदृष्टा की जरूरत थी । नेहरू के रूप में हमें एक महान व्यक्तित्व का नेतृत्व मिला।
इन्होंने विश्व की सभी महान सभ्यताओं का अध्ययन किया हुआ था।’ द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ 1946 तथा ‘Glimpses of World History ‘ 1934 जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें कोई ऐसे ही थोड़े लिख सकता है। इन्होंने न केवल विश्व इतिहास को पढ़ा था अपितु विश्व के प्राचीन व समकालीन महापुरुषों का बारीक अध्ययन भी किया था। इन्होंने इनकी जीवनियों पर भी लिखा था।आप एक विश्व प्रसिद्ध राजनेता रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन एक बात और खास है जो इनके व्यक्तित्व में दर्ज है जो इन्हें एक विशेष मुकाम हासिल करवाती है। वह है इनकी वैज्ञानिक दृष्टि। कुछ विरले ही राजनीतिक दिग्गज रहे होंगे जो इस प्रकार वैज्ञानिक सोच रखते हों।
इन्होंने सन 1907 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था ।इनके विषय थे भौतिकी, रसायनिकी ,वनस्पतिशास्त्र एवं भूगर्भविज्ञान ।ये गणित में ज्यादा निपुण नहीं थे । उन्होंने सन 1910 में विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था और इन विषयों में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी ।आप जा सकते थे लेकिन औपचारिक वैज्ञानिक शोधों में नहीं गए ।उनके पिताजी श्री मोतीलाल जी नेहरू एक प्रतिष्ठित वकील थे ।इसलिए इनका पारिवारिक तकाज़ा व जरूरत थी कि ये कानून पढ़ें और अपने पिताजी की विरासत को आगे बढ़ाएं । इसलिए इन्होंने सन 1910 में कानून की पढ़ाई शुरू की व 1912 में ये बैरिस्टर बन गए ।यहां इंग्लैंड में पढ़ते हुए ये फेबियन समाजवादियों से बहुत प्रभावित थे। फेबियन समाजवादी ग्रुप वह ग्रुप था जो संसदीय प्रणाली में लोकतांत्रिक तरीके से सुधारों के जरिए समाजवाद की हिमायत करता था। युवा नेहरू के मस्तिष्क पर इन दो विचारों (वैज्ञानिकता एवं समाजवाद) की गहरी छाप पड़ी। आप यह भी समझते थे कि Science is a natural agent of Socialism . आपकी समझ यहां तक चली गई थी।
यहां भारत में लौटने पर इनकी प्राथमिकताएं कुछ और बन गई। यह जरूरी भी था। इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया ।सन 1927 में ये अक्टूबर क्रांति की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर यू एस एस आर गए । यहाँ ये जॉन रीड की पुस्तक ‘दस दिन जब दुनिया हिल उठी’ से बहुत प्रभावित हुए ।इन्होंने यहां की व्यवस्था का भी बारीकी से अध्ययन किया। यहां इन्होंने समझा कि वैज्ञानिक दृष्टि सामाजिक जीवन के साथ -साथ व्यक्तिगत जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका आग्रह था कि It is a temper of a free man. उन्होंने इस वैज्ञानिकता को विश्व शांति के साथ भी जोड़ा।
इनका पूरा विश्वास था कि बिना विज्ञान के अनुप्रयोगों के किसी राष्ट्र का उत्थान संभव नहीं। सन 1938 में तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष श्री सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित राष्ट्रीय योजना कमेटी के चेयरमैन बने ।इस योजना कमेटी के निर्माण में अंतरिक्ष वैज्ञानिक मेघनाथ साहा का बड़ा हाथ था। पंडित नेहरू ने इस कमेटी के 15 प्रमुख व्यक्तियों में पांच प्रमुख वैज्ञानिकों को शामिल किया। वैसे यह कमेटी कोई ज्यादा नहीं चल पाई ,लेकिन पंडित नेहरू ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे।
सन 1946 में इन्होंने ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ नाम की प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। इसमें इन्होंने शब्द साइंटिफिक टेंपर का प्रयोग किया है। बहुत से लोगों का कहना है कि प्रथम बार यह शब्द गढ़ा गया है। इससे पूर्व हमारे पास Scientific Attitude व Scientific Outlook जैसे शब्दों थे। लेकिन साइंटिफिक टेंपर नाम का शब्द पहली बार शब्दकोश का हिस्सा बना था। एक छानबीन यह भी कहती है की पहली बार शब्दकोश का हिस्सा यह शब्द ‘साइंटिफिक टेम्पर’ अक्टूबर 1907 में बना था। यह उस समय ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में पहली बार छपा था ।लेकिन उस समय यह शब्द किन्हीं अन्य अर्थों में सामने आया था । हम देखते हैं कि बहुत बार ऐसा होता है जब किसी वैज्ञानिक के कार्य को स्वीकृति नहीं मिलती या उनके काम को उस अहमियत के अनुसार नहीं सराहा जाता जितना अच्छा कि वह काम होता है । इसलिए उस वैज्ञानिक में रोष या गुस्सा होना स्वाभाविक है ।इस गुस्से के इजहार के रूप में यह शब्द सन 1907में पहली बार सामने आया था ।विज्ञान के इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है जहां वैज्ञानिकों के काम को तुरंत सराहना नहीं मिली। हम जानते हैं कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक बोल्ट्जमैन को जब अपनी शोधों के लिए सही सलूक नहीं मिला तो उन्होंने आत्महत्या तक कर ली थी।
लेकिन पंडित नेहरू ने इस शब्द साइंटिफिक टेंपर को भिन्न अर्थों में प्रयोग किया है। यह भी सही है कि स्वयं पंडित नेहरू ने इस शब्द की व्याख्या नहीं दी, एक ऐसी व्याख्या जिससे हम आज परिचित हैं ।इसकी व्याख्या कई पड़ावों से होकर गुजरी है। पंडित नेहरू के विचारों से कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। पंडित नेहरू ने विज्ञान को (1)एक दार्शनिक पहलू में सच का पीछा करने वाली सबसे बड़ी कवायद माना है ।(2)उन्होंने विज्ञान को ज्ञान का एक उच्च स्तरीय अधिकारिक रूप माना है । (3) विज्ञान को ये सामाजिक जरूरतों को समझने वाला मसलन स्वास्थ्य, गरीबी, रोजगार आदि व इनसे पार पाने में सक्षम माना है। इन मान्यताओं के चलते पंडित नेहरू को मुश्किलों का सामना भी कम नहीं करना पड़ा। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है सन 1934 में बिहार में आया भूकंप। नेहरू जी वहां भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए जा रहे थे। नेहरू जी के मैंटर गांधी जी ने यहां तक कह दिया की भूकंप तो पापों के लिए दी गई ईश्वरीय सजा है ।अब नेहरु जी करें भी तो क्या? लेकिन वे अपने स्टैंड पर रहे ।इसके साथ -साथ यह भी ध्यान में रखना चाहिए की स्वतंत्रता उपरांत उठे सोमनाथ प्रकरण पर महात्मा गांधी ने ही नेहरू जी का सबसे ज्यादा साथ दिया था । जब यह तय हो गया कि भारत को आजादी मिलने वाली है और संविधान निर्माण की बात आ गई तो आप पूरे मन से चाहते थे कि वैज्ञानिक मानसिकता, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान
का हिस्सा रहे परंतु यह सब हो नहीं पाया। लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि मेरी राजनीतिक जरूरत बेशक मुझे अर्थतंत्र की ओर खींच ले गई है लेकिन मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि भूख ,गरीबी व रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ाई विज्ञान के बिना नहीं लड़ी जा सकती।( सन 1938 में इंडियन साइंस कांग्रेस में दिया गया भाषण )।
आजादी के बाद देश की बागडोर इनके हाथ में आ गई । ये अपने किसी भी महत्वपूर्ण भाषण में विज्ञान का हवाला दिए बिना नहीं रहते थे। सन 1950 में नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा – Science is something more.It is a way of training the mind to look at life and the whole structure of society.So I stress the need for the development of a scientific mind and temper which is more important than actual discovery and it is out of this temper and method that many more discoveries will come. सन 1955 में इन्हें एक बार फिर यू एस एस आर जाने का अवसर मिला। विज्ञान व समाजवाद के प्रति इनके विचार और पुख्ता हुए। वापस लौटते ही आपने देश के लिए विज्ञान नीति पर विचार करना शुरू किया। इन्हीं के प्रयासों से साइंस पॉलिसी रेजोल्यूशन 4 मार्च 1958 को लागू हुआ ।उनका कहना था –The key to National Prosperity apart from the spirit of the people ,lies in the modern age in the effective combination of three factors Technology ,Raw material and Capital,of which first is perhaps the most important. इस नीति में इनका जोर इसी बात पर था की वैज्ञानिक नजरिए, विज्ञान की विधि तथा वैज्ञानिक ज्ञान के जरिए ही देश को रीजनेबल सेवाएं मिल सकती हैं।
सन 1959 की एक घटना है । 13 जुलाई को इनके पास श्री रामस्वरूप शर्मा ज्योतिषाचार्य का एक पत्र आया।पत्र में आग्रह था कि ये आचार्य ज्योतिष पर लिखी अपनी पुस्तक श्री नेहरू को समर्पित करना चाहते हैं। तुरंत पंडित नेहरू ने इस पत्र के जवाब में 16 जुलाई को एक पत्र लिखकर कहा (a) इस प्रकार मुझे पुस्तक का सम्मान मिलना वैज्ञानिक मानसिकता के विरुद्ध जाएगा। (b)मैं खगोल व ज्योतिष में अंतर समझता हूँ।(c) ज्योतिष में विश्वास रखने की बजाय मेरा विश्वास विज्ञान विधि के प्रयोग में है ।
पंडित नेहरू वैज्ञानिकों का बड़ा सम्मान करते थे । वे मेघनाथ साहा से बहुत प्रभावित थे। यह और बात है कि श्री मेघनाद साहा का शोधपत्र चार बार नोबेल कमेटी के पास जाकर वापस लौट आया था और पुरस्कार नहीं मिला। आपने एक बार अपने सारे प्रोटोकॉल तोड़कर डॉक्टर भाभा की कद्र की थी। इन के सम्मान में आप स्वयं अपनी कुर्सी से उठ कर उनके पास गए थे ।उल्लेखनीय है कि जब प्रसिद्ध वैज्ञानिक Neils Bohr भारत आए थे (सन 1960 )तो नेहरु जी ने अपने अन्य कार्यक्रम स्थगित कर दिए व इनके साथ -साथ रहे थे । आपने इनका सत्कार एक राज्य अध्यक्ष की तरह किया था। नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध वैज्ञानिक जेबीएस हाल्देन अपने जीवन के अंतिम वर्ष भारत में बिताने आए थे। उनका यहां रहना पंडित नेहरू के विज्ञान प्रेम के साथ जुड़ा हुआ था। सी एस आई आर की स्थापना में इन दोनों का ही बड़ा योगदान था।
हम जानते हैं कि नेहरू जी के ये विचार उनके जीते जी संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं कर सके । यह तो 42 में संशोधन 1976 के बाद पार्ट 4 ए आर्टिकल 51a द्वारा ही संभव हुआ कि उनके विचार औपचारिक रूप में हमारे संविधान का हिस्सा बने ।जैसे ही शब्द साइंटिफिक टेंपर अधिकारिक के रूप में सामने आया इस पर सार्वजनिक बहस शुरू हो गई व इसकी व्याख्याओं की बात उठी ।अक्टूबर 1980 में कूनूर में एक चार दिवसीय कार्यशाला चली ।इसमें उस समय के जाने-माने विचारकों एवं वैज्ञानिक महिषीयों ने भाग लिया। इन्हीं बहसों के आधार पर जुलाई 1981 में ‘नेहरू केंद्र ,मुंबई’ द्वारा वैज्ञानिक मानसिकता पर एक अधिकारिक कथन जारी किया गया। इसका आमुख नेहरू के प्रशंसक रहे श्री पी एन हक्सर ने लिखा है ।यह कथन पढ़ने लायक है। प्रतिगामी ताकतों द्वारा साइंटिफिक टेम्पर व नेहरूजी आज सर्वाधिक निशाने पर हैं।जिन्हें बचाना आज हमारी जिम्मेवारी बनती है।
( हरियाणा के श्री वेदप्रिय देश के वरिष्ठ विज्ञान लेखक एवं विज्ञान संचारक हैं तथा काफी लम्बे समय से जन विज्ञान आंदोलन तथा हरियाणा विज्ञान मंच से जुड़े हैं )