ग्रीनलैंड के स्थायीतुषारों में से मिले नमूनों से वैज्ञानिकों ने एक पुरातन डीएनए हासिल किया और उससे 20 लाख साल पुराने इकोसिस्टम का पुनर्निर्माण करने में सफलता हासिल कर ली. यह इकोसिस्टम 10 लाख साल लंबा है जिसके जानकारी वैज्ञानिको ने निकाली है. इस खोज के जरिए अब पृथ्वी का इतिहास जानने में आसानी होगी जिसके लिए वैज्ञानिकों को केवल उस दौर के डीएनए की जरूरत होगी.
पृथ्वी के इतिहास के बारे में जानने के लिए हम हमे समय के पीछे की यात्रा नहीं करनी पड़ेगी. इस बारे में वैज्ञानिकों ने अभूतपूर्व अध्ययन कर एक पुरातन डीएनए से 20 लाख साल पुराने इकोसिस्टम का ही पुनर्निर्माण कर दिया है. यह पड़ताल पृथ्वी के इतिहास को जानने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी. वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड के स्थायी तुषारों के अवसादी निक्षेपों में से यह डीएनए निकाला जो पिछले रिकॉर्ड से 10 लाख साल ज्यादा पुराना था. उसी पुराने रिकॉर्ड से वैज्ञानिकों के ऊनी मैमथ का डीएनए मिला था जिसे फिर से पैदा करने के प्रयास चल रहे हैं.
इस खोज की सबसे खास बात
इस अध्ययन की खास बात यह है कि वैज्ञानिक उस पुरातन भूआकृति का पुनर्निर्माण कर सके जो आकर्टिक वृत्त के बर्फीले किनारों से लाखों साल पहले गायब हो गया था. डेनमार्क की कोपनहेगन यूनिवर्सिटी और यूके की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के अनुवांशिकीविद एस्के विलर्सलेव का कहना है कि पहली बार दस लाख सालों के इतिहास का एक नया अध्ययन खुला है.
सीधे इतिहास में प्रवेश संभव
विलर्सलेव ने बताया कि अब हमें पुरातन पारिस्थितिकी तंत्र के डीएनए के जरिए सीधे उस युग में प्रवेश कर सकते हैं और अपने बहुत ही पीछे के समय में जा सकते हैं जिसके पहले कल्पना करने का भी साहस नहीं किया जाता होगा. डीएनए के साथ समस्या यह है कि सामान्य अवस्थाओं में यह समय के साथ संरक्षित नहीं रहता है. सूक्ष्मजीव, मौसम और भूगर्भीय प्रक्रियाओं जैसे पर्यावरणीय दबावों के चलते इनके विखंडन हो जाता है.
कहां से लिए गए नमूने
यदि पुरातन डीएनए संरक्षित रह सकता है तो वह केवल दातों और अन्य हड्डियों में या फिर स्थायीतुषारों में दफन पदार्थों के साथ ही रह सकता है. शोधकर्ताओ ने उत्तरी ग्रीनलैंड की एक पतली खाड़ी के कैप कोबनहैव्न भूगर्भीय निर्माण के स्थायीतुषार और बर्फ से नमूने हासिल किए जिनमें से वैज्ञानिक लंबे इतिहास को सहेजे डीएनए का पुनर्निमाण कर सके.
कैसे मिले थे ये नमूने
वैज्ञानिकों को ये नमूने कई साल पहले किसी दूसरा कार्य करते समय मिले थे. यह अभियान चूंकि बहुत ही महंगा था इसलिए उन्होने अपनी जरूरत से ज्यादा नमूने जमा कर लिए थे जिससे बाद में कभी उनकी जरूरत पड़े तो उनका उपयोग किया जा सके. ये नमूने काफी समय तक भंडार में पड़े थे और सही प्रोजेक्ट का इंतजार कर रहे थे.
आसान नहीं था डीएनए की पूरी पहचान करना
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब तक नई पीढ़ी का डीएनए एक्स्ट्रैक्शन और सीक्वेंसिंग उपकरण विकसित नहीं हो गए, तब तक वे अवसाद नमूनों में से डीएनए के महीन और खराब हो चुके हिस्सों की पहचान नहीं कर सके. इसका मतलब यही है कि वे अंततः 20 लाख साल पुराना इकोसिस्टम का नक्शा बना सके.
बहुत मेहतन लगी इन्हें सुधारने में
वैज्ञानिक कुछ ही सालों के अथक प्रयासों से वे डीएनए को नमूनों से निकालने में सफलता हासिल की जो कि इतने कम सालों में दूसरे तरीके से जानने में बहुत ही ज्यादा समय लगता. डीएनए के हिस्से बहुत ही महीन थे, जिनकी लंबाई कुछ ही नैनोमीटर थी. इसके अलावा उनका बहुत ही ज्यादा विखंडित हो गए थे और काफी हद तक अपूर्ण थे.
पिछले कई दशकों से उन्नत जेनेटिक सीक्वेंसिग ने वैज्ञानकों को हमारी आज की दुनिया का एक विशाल डेटाबेस बनाने में मदद की है. ये डीएनए लाइब्रेरी वैज्ञानिकों को चुनौतीपर्ण डीएनए समझने में बहुत मददगार हो रहे हैं. ये लाइब्रेरी वैज्ञानिकों ने गायब हिस्सों का पुनर्निर्माण करने में मदद कर सकते हैं. इसिलिए जो डीएनए के नमूने 20 हजार साल में बने अवसादों में 20 लाख सालों तक दबे रहे उनका पुनर्निर्माण हो सका और पता चला कि इस डीएनए के जीव शीतोष्ण वातावरण में रहा करते थे, जहां रेंडियर, खरगोश, जैसे कई जानवर पाए जाते थे. इसके अलावा चींटियां, कोरल, केकड़ों, सहित पेड़ों ने भी अपने निशान इन डीएनए में छोड़े थे.