प्लास्टिक का प्रदूषण एक बढ़ती समस्या है. इसका तेजी से बढ़ता उपयोग, इससे निपटने के उपाय बहुत ही कम हैं और हालत यह हो गई है कि विभिन्न रास्तों से प्लास्टिक का कचरा हमारे भोजन से होते हुए हमारे शरीर में पहुंचने लगा है. आंकड़े बताते हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की कई नीतियों में एक रीसाइकलिंग या पुनर्चक्रण बिलकुल भी कारगर नहीं हैं.
जलवायु परिवर्तन में प्रदूषण की बड़ी भूमिका हैं. इससे निपटने के लिए हमें वायु और जल सहित कई तरह के प्रदूषणों पर ध्यान देने होता है. वायु और जल प्रदूषण पर सबसे ज्यादा काम हो रहा है, लेकिन कुछ सालों से प्लास्टिक के प्रदूषण के दुष्परिणाम बहुत ही गंभीर स्वरूप ले रहे हैं. जमीन में बिखरा हुआ प्लास्टिक मिट्टी में जाकर पानी में घुलते हुए अंततः महासागरों तक में जा रहा है. इनके जरिए वह जानवरों और इंसानों में जा रहा है. वहीं सांख्यकीय आंकड़ों ने बताया है कि प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए अपनाई जा रही रीसाइक्लिंग की तकनीक कारगर नहीं है.
कई गुना हो गया है प्लास्टिक
आंकलन किया गया है कि प्लास्टिक का उत्पादन 1950 से 2017 के बीच में 174 गुना बढ़ गया है और यह भी उम्मीद है कि साल 2040 तक यह दोगुना हो जाएगा. आज इंसान का जीवन बिना प्लास्टिक के कल्पना करना भी मुश्किल है, लेकिन उसका जैविकरूप से विखंडन नहीं हो सकता है. इसलिए यही माना जाता है कि यह हमेशा ही पर्यावरण में मौजूद रहेगा.
बहुत कम होता है रीसाइकिल
आंकड़े बताते हैं कि 2015 के आसपास 79 फीसद वैश्विक प्लास्टिक कचरा जमीन में या फिर प्राकृतिक पर्यावरण में था, उसका 12 फीसद जला दिया गया था और बहुत ही कम मात्रा में यानि केवल 9 फिसद प्लास्टिक का ही पुनर्चक्रण हुआ था. दुनिया भर में प्लास्टिक के प्रदूषण की समस्या से निपटने के ले सरकरो, उद्योगों, बड़े और छोटे उद्यमों के साथ नागरिक समाजों को प्रतबद्धता दिखानी होगी.
बड़ी कंपनियों की जिम्मेदारी
इसमें कोई शक नहीं जनता कारोबारियों से उम्मीद करती है कि वे प्लास्टिक के उत्पादन को कम करने की जिम्मेदारी लें और बहुत सी बड़ी कंपनियों ने खुद आगे आकर इस तरह के कदम उठाने का फैसला भी किया है. जिसमें उत्पादन कम करने के साथ साथ प्लास्टिक का पुनर्चक्रण या रीसाइक्लिंग भी शामिल है.
काफी नहीं हैं प्रयास
हालिया अध्ययन बताता है कि करीब 800 कंपनियों ने प्लास्टिक कम करने की लिए संकल्प लिया है. वन अर्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि इन कदम प्लास्टिक संकट से निपटने के लिए काफी नहीं हैं. वैज्ञानिकों ने 2015 से 2020 के बीच प्रकाशित हुईं कॉर्पोरेट रिपोर्ट्स को खंगाला जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों ने स्वैच्छिक रूप से प्लास्टिक प्रदूषण कम करने की प्रतिबद्धता जताई थी.
अधूरा समाधान
शोधकर्ताओं ने उन वैज्ञानिक साहित्य, समाचार लेखों, औद्योगिक रिपोर्ट आदि की समीक्षा भी की जिनमें इन संकल्पों की कारगरता की चर्चा हुई थी. उन्होंने पाया कि 800 में से 72 प्रतिशत ने प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की थी. इनमें से अधिकांश का लक्ष्य सामान्य प्लास्टिक था. वे अहम हैं लेकिन उससे केवल अधूरा समाधान मिल सकता है.
कम हो सकता है प्लास्टिक
अध्ययन में पाया गया है कि कंपनियां अधिकांशतः अपने प्लास्टिक उपयोग या फिर उत्पदान स्वरूपों में बदालव करती हैं जिनमें आमतौर पर उनके उत्पाद में रीसाइकिल की हुई ज्यादा सामग्री होती है या फिर उनका वजन कम हो जाता है. इससे बहुत कम मात्रा में प्लास्टिक कम होता है. इनमें से कुछ कंपनियों के उत्पादन की विशालता को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनकी बोतल या कंटेनर का छोटे से हिस्सा कम करने पर भी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का उपयोग कम किया जा सकता है.
लेकिन इन सबसे असल समस्या का समाधान नहीं होता है. उत्पाद का वजन हलका करना तक कारगर उपाय नहीं माना जा सकता क्योंकि इससे बचा पैसा और ज्यादा प्लास्टिक के उत्पादन में लग जाता है. आदर्श समाधान तो यही होगा कि सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह से नजरअंदाज ही कर दिया जाए और ऐसी तकनीक विकसित की जाएं जिससे प्लास्टिक सप्लाई चेन से बाहर आ सके. बड़ी कंपनियों पर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए जिससे प्रभावी तौर पर प्लास्टिक का उत्पादन ही कम हो सके. इसमें वैज्ञानिक समुदायों की भूमिका बहुत अहम हो जाती है.