ललित मौर्या
रसोई में उठता धुआं सिर्फ आंखों में ही नहीं चुभता, यह महिलाओं के दिमाग को भी कमजोर कर रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि लकड़ी, गोबर या कोयले जैसे प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधन से जलते चूल्हों से निकला जहरीला धुआं, धीरे-धीरे महिलाओं की सोचने, समझने और याद रखने की क्षमता को खा रहा है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि घरों में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्रदूषित ईंधन (जैसे लकड़ी, गोबर, कोयला आदि) से महिलाओं में दिमागी कमजोरी या स्मरण शक्ति में गिरावट यानी संज्ञानात्मक हानि का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक होता है।
यह अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु और शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल द लैंसेट रीजनल हेल्थ – साउथ ईस्ट एशिया में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन कर्नाटक में श्रीनिवासपुरा के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 45 वर्ष या उससे अधिक आयु के 4,100 लोगों पर किया गया, जो आईआईएससी के ब्रेन रिसर्च सेंटर-श्रीनिवासपुरा एजिंग, न्यूरो सेनेसेंस और कॉग्निशन प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। इनमें से करीब 1000 लोगों के दिमाग के एमआरआई स्कैन किए गए थे।
महिलाओं के लिए खतरा, जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाला धुंआ
अध्ययन में पाया गया कि जब ठोस ईंधन जैसे लकड़ी, गोबर या कोयला आदि को खासकर बंद या कम हवादार रसोई में जलाया जाता है, तो इससे कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर के ऑक्साइड, भारी धातुएं, जहरीले गैस और सूक्ष्म कण जैसे हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं। ये प्रदूषक शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करते हैं, जिससे दिमागी संरचना और कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है।
बढ़ सकता है अल्जाइमर का खतरा
प्रदूषकों के मस्तिष्क पर असर का मुख्य कारण सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव माने जाते हैं। यह बेहद बारीक कण सीधे दिमाग तक पहुंच सकते हैं या नाक के जरिए दिमाग तक पहुंच सकते हैं। इतना ही नहीं ये खून के जरिए दिमाग की सुरक्षा करने वाली दीवार को भी भेद सकते हैं। अध्ययन के मुताबिक ऐसे प्रदूषण के कारण याददाश्त, निर्णय लेने और भाषा संबंधी क्षमताएं प्रभावित हो सकती हैं। यह स्थिति आगे चलकर डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारियों की वजह बन सकती है। महिलाएं, जो आमतौर पर रसोई में अधिक समय बिताती हैं, इस प्रदूषित हवा के ज्यादा संपर्क में आती हैं। अध्ययन में यह भी देखा गया कि महिलाओं के दिमाग में याददाश्त से जुड़ा हिस्सा हिप्पोकैम्पस अपेक्षाकृत छोटा पाया गया। गौरतलब है कि यह वही हिस्सा है जो अल्जाइमर में सबसे पहले प्रभावित होता है।
खाना पकाने के लिए साफ सुथरे साधनों का उपयोग महत्वपूर्ण
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें ग्रामीण आबादी में दिमागी संरचना पर प्रदूषण के असर को एमआरआई स्कैन की मदद से जांचा गया है। देखा जाए तो इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ सकता है, खासकर भारत जैसे देश में, जहां डिमेंशिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि ग्रामीण भारत में साफ ईंधन को बढ़ावा देने वाली नीतियां और स्वास्थ्य जागरूकता अभियान शुरू किए जाने चाहिए ताकि रसोई से जुड़े प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों को रोका जा सके।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसे प्रयासों का भी जिक्र किया है। बता दें कि मई 2016 में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली महिलाओं को प्रदूषित ईंधन से मुक्ति दिलाने के लिए देश में उज्ज्वला योजना की शुरूआत की गई। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देना और महिलाओं की सेहत की सुरक्षा करना है। हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक इसमें अभी भी कई समस्याएं बनी हुई हैं। कई इलाकों में योजना की पूरी तरह लागू न होना और एलपीजी का स्थाई उपयोग न हो पाना एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इसके पीछे रिफिल की महंगी कीमतें और क्षेत्रीय असमानताएं मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं।
हाल ही में किए गए शोध में घरेलू वायु प्रदूषण को डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारियों के लिए जिम्मेवार माना है। इससे साफ-सुथरे ईंधन अपनाने की जरूरत और भी बढ़ गई है। लेकिन सिर्फ एलपीजी पर निर्भर रहना ग्रामीण इलाकों के लिए आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से जोखिम भरा हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2025 से शहरों में गैस वितरण नेटवर्क में अनिवार्य रूप से संपीडित बायोगैस (कंप्रेस्ड बायोगैस) को मिलाने का निर्णय लिया। यह कदम ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने और पर्यावरण अनुकूल ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ को बढ़ावा देने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में भी ऐसी ही ‘क्लीन फ्यूल स्टैकिंग’ रणनीतियां अपनाई जानी चाहिए। जिसमें एलपीजी के साथ-साथ सामुदायिक बायोगैस प्लांट और सौर ऊर्जा आधारित मिनीग्रिड भी शामिल हों, ताकि सस्ते और स्थाई साफ-सुथरे ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )