ललित मौर्या

यह उपकरण बेहद किफायती होने के साथ-साथ, स्केलेबल भी है। इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए महंगे संसाधनों या जीवाश्म ईंधन की जरूरत नहीं है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा अगली पीढ़ी की डिवाइस तैयार किया है जो सिर्फ सौर ऊर्जा से पानी के अणुओं को तोड़कर ग्रीन हाइड्रोजन में बदल सकता है।

यह डिवाइस बेहद किफायती होने के साथ-साथ, स्केलेबल है यानी इसे बड़े पैमाने पर भी बनाया जा सकता है। इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए महंगे संसाधनों या जीवाश्म ईंधन की जरूरत नहीं है। इस उपकरण का विकास बेंगलुरु के सेंटर फार नैनो एंड साफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। बता दें कि सीईएनएस विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।

गौरतलब है कि ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का सबसे स्वच्छ ईंधन माना जाता है। इससे न केवल फैक्ट्रियों, उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। साथ ही वाहनों को चलाने और अक्षय ऊर्जा को स्टोर करने में भी मदद मिलती है। लेकिन अब तक इसे सस्ते और बड़े स्तर पर बनाना बड़ी चुनौती थी।

डॉक्टर आशुतोष के सिंह के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के दल ने एक ऐसा सिलिकॉन आधारित फोटोएनोड तैयार किया है जो पानी के अणुओं को सोलर एनर्जी की मदद से तोड़कर हाइड्रोजन में बदल सकता है। इस तरह से उपकरण की जीवाश्म ईंधन या महंगे संसाधनों पर निर्भरता नहीं रहती।

कैसे असरदार है यह उपकरण

डॉक्टर अशुतोष के सिंह के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने अत्याधुनिक सिलिकॉन आधारित फोटोएनोड तैयार किया है, जो पानी को सोलर एनर्जी की मदद से हाइड्रोजन में बदलता है। इसके लिए उन्होंने एन-आई-पी हेटेरोजंक्शन नाम की खास तकनीक का इस्तेमाल किया जिसमें सेमीकंडक्टर की तीन परतें होती हैं। इन परतों में स्टैक्ड एन-टाइप टीआईओ2, आंतरिक (अनडॉप्ड) एसआई, और पी-टाइप एनआईओ सेमीकंडक्टर शामिल हैं।

इन परतों को मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग नाम की तकनीक से जमा किया गया, जो औद्योगिक स्तर पर इस्तेमाल के लिए उपयुक्त और सटीक है। इससे सूरज की रोशनी अच्छे से अवशोषित होती है, चार्ज ट्रांसपोर्ट तेज होता है और ऊर्जा की बर्बादी कम से कम होती है।

वैज्ञानिकों द्वारा बनाए इस उपकरण की सफलता केवल शोध पत्र तक सीमित नहीं है, यह उपकरण जमीनी स्तर पर भी असरदार साबित हुआ है। इस डिवाइस ने 600 एमवी का सरफेस फोटोवोल्टेज और मात्र 0.11 वीआरएचई का ऑनसेट पोटेंशियल हासिल किया, जो इसे सूरज की रोशनी से हाइड्रोजन बनाने में बेहद प्रभावी बनाता है। इतना ही नहीं, इसने क्षारीय परिस्थितियों में 10 घंटे तक लगातार काम किया और प्रदर्शन में केवल 4 फीसदी की गिरावट आई — जो कि एसआई-आधारित फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल सिस्टम के लिए दुर्लभ है।

बड़े पैमाने पर उपयोग संभव

सबसे खास बात यह है कि यह तकनीक न सिर्फ असरदार है, बल्कि सस्ती, टिकाऊ और बड़े स्तर पर भी कारगर है। रिसर्च टीम ने 25 सेंटीमीटर के वर्गाकार बड़े फोटोएनोड से भी बेहतरीन परिणाम हासिल किए। डॉक्टर सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा, “स्मार्ट मटेरियल का चयन कर और उन्हें सही तरीके से जोड़कर हमने एक ऐसा उपकरण बनाया है जो न सिर्फ बेहतर प्रदर्शन करता है, बल्कि बड़े स्तर पर भी बनाया सकता है। यह हमें सौर ऊर्जा से हाइड्रोजन बनाने के सस्ते और व्यावसायिक समाधान के एक कदम और करीब ले जाता है।”

इस उपकरण से जुड़े अध्ययन के नतीजे रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री द्वारा प्रकाशित जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री ए में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ शुरुआत है आगे चलकर यह तकनीक घरों से लेकर फैक्ट्रियों तक, हर जगह सौर ऊर्जा से हाइड्रोजन-आधारित ऊर्जा प्रणाली को संभव बना सकती है।

गौरतलब है कि भारत के 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन बड़ी भूमिका निभा सकती है। 2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग और खपत पांच गुना तक बढ़ने की उम्मीद जताई गई है। वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय अक्षय उर्जा एजेंसी के अनुसार 2050 तक कुल उर्जा में हाइड्रोजन की 12 फीसदी हिस्सेदारी होगी। भारत के बड़े औद्योगिक समूह भी इस सेक्टर में तेजी से अपने पैर पसार रहे हैं। इस समय ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है, जो सालाना 2.4 करोड़ टन से अधिक ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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