विकास शर्मा

अंटार्कटिका के ऊपर ओजोत परत में हुए छेद के लिए दुनिया में मोंट्रियल प्रोटोकॉल लागू किया गया था. इसे नतीजे अविश्सनीय तौर पर बहुत ही अच्छे मिले थे जिससे आज ओजोन परत का छेद पिछले कुछ सालों से अस्थाई अवस्था में आ चुका है. मोंट्रियल प्रोटोकॉल एक ऐसी मिसाल है जो हम इंसानों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रोत्साहित करती है. इसी लिए विश्व ओजोन दिवस को इतना महत्व दिया जाता है.

ओजोन पृथ्वी की अजीब गैस कही जा सकती है. एक तरफ पृथ्वी के वायुमंडल के समतापमांडल में ओजोन गैस की एक मोटी परत पृथ्वी की सतह के जीवन की रक्षक की भूमिका निभाती है तो वहीं वायुमंडल की सबसे निचली परत में यही गैस एक खतरनाक प्रदूषण पदार्थ की भूमिका अपना लेती है. ओजोन परत की महत्व को याद रखने और उसकी सुरक्षा को कायम रखने हेतु प्रयास करते रहने के लिए ही दुनिया में हर साल 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस या विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है. यह दिन ओजोन परत को बचाने के लिए अपनाए गए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को प्रमुख रूप से रेखांकित करता है.

ओजोन परत और ओजोन गैस
ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों  को अवशोषित कर लेती है जिससे वे पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाती हैं. इस परत में ओजोन O3 की बहुत ही अधिक मात्रा होती है जो कि एक नीले रंग की तीखी गंध वाली गैस होती है. जब ओजोन परत में पराबैंगनी किरणें पड़ती हैं तो उससे ओजोन के अणु टूट कर ऑक्सीजन अणु और एक मुक्त आक्सीजन परमाणु बनाते हैं जो फिर प्रतिक्रिया कर ओजोन बन जाते हैं.

ओजोन परत और मॉट्रियल प्रोटोकॉल
इस सब में पराबैंगनी किरणों की ऊर्जा खर्च जो जाती है. जो अगर पृथ्वी की सतह पर पहुंचती, तो पृथ्वी पर जीवन के हर रूप के लिए हानिकारक होती है. पिछले कई दशकों से वायुमंडल में बढ़ रही ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन ने ओजोन परत को बहुत नुकसान पहुंचाया है. पहले इस परत को कुछ खास तरह के प्रदूषक पदार्थों के कारण उत्सर्जित क्लोरीन और ब्रोमीन जैसी गैसें बहुत अधिक नुकसान पहुंचा रही थीं, लेकिन दुनिया के देशों ने सख्त नियम अपना कर इन पदार्थों के उत्सर्जन पर लगाम लगाई थी.

सफल रहा था मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
ये नियम आज भी मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नाम से जाने जाते हैं. 16 सितंबर 1987 को ही दुनिया के देशों ने मिल कर इस प्रोटोकॉल को अपनाया था और उन पदार्थों के उपयोग पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया था जिससे ओजोन परत का क्षरण कम होने लगा था. इस प्रोटोकॉल के लागू होने के 30 साल बात साल 2017 में पाया गया  कि ओजोन परत में हुआ छेद बंद हो गया है.  अनुमान है कि यह असर अगले 100 साल तक कायम रह पाएगा.

साल 2023 की थीम
साल 2023 में विश्व ओजोन दिवस की थीम “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: फिक्सिंग द ओजोन लेयर एंड रिड्यूसिंग दे क्लाइमेंट चेंज” यानि “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओजोन परत की मरम्मत और जलवायु परिवर्तन को कम करना” रखी गयी है. यह थीम मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के सफल प्रभाव को रेखांकित करने के साथ दोहराती है कि इसका जलवायु परिवर्तन पर कितना अच्छा असर देखने को मिला था. इसमें हाइड्रोफ्लोरोकार्बन जैसे पदार्थों के उपयोग को चरणबद्ध किंतु निश्चित तरीकों से खत्म किया गया था.

ओजोन परत में छेद
ओजोन परत वायुमंडल में समताप मंडल के निचले हिस्से में पृथ्वी की सतह के 10 से 22 मील की ऊंचाई पर होती है. इसकी मोटाई हर जगह एक सी नहीं है. जहां यह भूमध्य रेखा के ऊपर सबसे मोटी है तो वहीं ध्रुवों पर यह सबसे पतली होती है. 1970 के दशक में ही वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में पाया था कि अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन पर का क्षरण हो रहा है और इसके लिए अंटार्कटिका की खास मौसमी प्रक्रिया के साथ क्लोरोफ्लोरो कार्बन और उसके जैसे कुछ प्रदूषण जिम्मेदार हैं.

प्रदूषक पदार्थों को खत्म करने की कवायद
यहीं से इस बात के लिए प्रयास शुरू हो गये  कि ओजोन परत के क्षरण के लिए क्लोरोफ्लोरो कार्बन श्रेणी के पदार्थों को उत्पादन और उपयोग दोनों ही सख्ती रोकना होगा क्योंकि इनसे वायुमंडल मे बनने वाली क्लोरीन, ब्रोमीन जैसी गैसों का एक अणु लाखों ओजोन अणुओं को नष्ट करने में सक्षम होता है. इन प्रयासों को नतीजा ही मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल था.

लेकिन जिस तरह से दुनिया ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए संघर्ष कर रही है, यह दावा करना सही नहीं होगा कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने पूरा समाधान दे दिया है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम अब इस प्रोटोकॉल को भूल सकते है. इसे कायम रखना बहुत जरूरी है. फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह प्रोटोकॉल एक मिसाल है जिससे दुनिया को प्रेरणा मिलती है कि जलवायु परिवर्तन का संकट हल करना असंभव नहीं है.

    (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )
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