आज 29 जून है, राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस। दरअसल आज भारत में सांख्यिकीय विज्ञान के जनक कहे जाने वाले देश के प्रमुख वैज्ञानिक एवं सांख्यिकी विद पी सी महालनोविस का जन्मदिन है। देश की आजादी के बाद नए, विकसित एवं आधुनिक भारत के निर्माण में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद पी सी महालनोविस का मौजूदा झारखंड से भी गहरा नाता रहा है। झारखंड के गिरिडीह में उनका अपना घर था। गिरिडीह स्थित पी. सी. महालनोविस का घर वर्तमान में आर. के. महिला काॅलेज, गिरिडीह का हिस्सा है। साथ ही नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑर्गेनाइजेशन ( एन. एस. ओ.) यानी राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन का एक संस्थान भी गिरिडीह में अवस्थित है।
आज के युग में भारत जैसे क्या किसी भी देश को चलाने के लिए आंकड़ों की बहुत जरूरत होती है. देश में बुनियादी ढांचा कितना है और कहां कहां उसे दुरस्त और बेहतर करने की जरूरत है. देश के लोगों को रोजगार मिल रहा है . शासन और प्रशासन सहित तमाम सरकारी तंत्र सुचारू रूप से चल रहे हैं या नहीं और उन्हें चलाने के लिए आर्थिक गतिविधियां सही तरह से निष्पादित हो रही हैं या नहीं. इन सबके लिए आंकड़ों का जमा करना और उनके सही विश्लेषण करना बहुत जरूरी है. इस लिहाज प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती 29 जून को हर साल राष्ट्रीय सांख्यकीय दिवस मनाया जाना बहुत महत्व रखता है.
कौन थे प्रशांत चद्र महालनोबिन
पीसी महालनोबिस पश्चिम भारतीय वैज्ञानिक और सांख्यिकीविद् थे. वे स्वतंत्र भारत के योजना आयोग के सदस्य और महालनोबिस दूरी नाम की सांख्यिकीय मापन के लिए मशहूर हैं. उन्होंने 1950 में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन, भारतीय नमूना सर्वेक्षण, और भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी. वे स्वतंत्र भारत के पहले मत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार भी थे.
विज्ञान में पढाई
महालनोबिस का जन्म 29 जून 1893 को बंगाल प्रेसिडेंसी के कलकत्ता में हुआ था. कोलकाता में उनका शुरुआती शिक्षा कलकत्ता के ब्रह्मो बॉयज़ स्कूल में हुई. कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रेसिंडेंसी कॉलेज में उन्हें जगदीश चंद्र बसु और प्रफुल्ल चंद्र रे जैसे शिक्षक मिले. मेघनाथ साहा और सुभाषचंद्र बोस कॉलेज में उनके जूनियर थे. उन्हेंने 1912 में भौतिकी में स्नातक बनने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए.
सांख्यिकी और दिवस का महत्व
सांख्यिकी दिवस पर युवओं को साख्यिकी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है क्योंकि वे आर्थिक सामाजिक विकास को बढ़ाने के लिए एक बड़े कारक हैं. देश के सतत आर्थिक लक्ष्यों को कायम रखने के ले महालनोबिस ने स्वतंत्रता के बाद देश के आर्थिक नियोजन में बहुत ही मूलभूत और दूरगामी लेकिन स्थायी योगदान दिया था. इसीलिए सांख्यिकी की मूल अवधारणा को समझने के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है.
साल 2023 की थीम
साल 2023 की राष्ट्रीय सांख्यकीय दिवस की थीम “सतत विकास लक्ष्यों की निगरानी के लिए राष्ट्रीय संकेतक ढांचे के साथ राज्य संकेतक ढांचे का संरेखण” है. यह थीम एक साथ कई प्रमुख विषयों को रेखांकित करती है.सतत विकास के लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के संधारणीय विकास के लिए निर्धारित किए गए हैं. इन्हें संयुक्त राष्ट्र से जुड़े सभी देशों ने अपने लक्ष्यों में समाहित किया है. इन लक्ष्यों के लिए किए जा रहे प्रयासों की निगरानी के लिए संकेतकों की रूपरेखा का निर्धारण करने की बात की गई है.
सतत विकास लक्ष्यों पर निगारानी के लिए संकेतक
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक संकेतक सतत विकास लक्ष्यों पर निगारानी प्रक्रिया की स्थानीय, राष्टट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक सभी स्तर पर रीढ़ होते हैं. एक मजबूत संकेतक रूपरेखा सतत विकास लक्ष्यों और उनके उद्देस्यों की प्रबंधन उपकरण में बदलने का काम करते हैं. और यही सांख्यिकी का लक्ष्य भी है कि आंकड़ों को इस तरह से से पेश किए जाने के लिए सक्षम बनाना जिससे उनसे उपयोगी नतीजे हासिल किए जा सकें.
क्या काम आते हैं ये संकेतक
इस तरह के संकेतक ढांचा दुनिया के देशों को क्रियान्वयन रणनीति बनाने और संसाधन आवंटन करने में मददागर प्रबंध उपकरण के तौर पर काम आते हैं. साथ ही ये एक रिपोर्ट कार्ड की तरह भी होते हैं सतत विकास की वृद्धि को मापने का काम कर सके और जवाबदेही निर्धारित करने में भी मदद करते हैं.
ऐसे में जरूरी है कि देश में राष्ट्रीय संकेतक ढांचा या रूपरेखा और राज्य स्तर के संकेत ढांचे या रूपरेखा का आपस में संरेखण हो या समन्वय हो सके जिससे सांख्यिकी में किसी भी स्तर पर किसी भी तरह की भ्रम या दुविधा की स्थिति की नौबत ना आ सके. सांख्यिकीय में आंकड़ों की बढ़ती विशालता और उसके प्रबंधन का चुनौतीपूर्ण होने भी यही मांग करता है. फिलहाल 17 सतत विकास लक्ष्यों के 247 संकेतक निर्धारित किए जा चुके हैं.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )