ऑनलाइन शिक्षा को कोरोना काल में एक मजबूरी के रुप में देखा जा रहा है. फिजिकल स्कूल और क्लास से इसकी कोई तुलना नहीं है. सीखने के स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा स्कूली कक्षा की जगह नहीं ले सकती है. ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण भारत की पहुंच से बहुत दूर और गैर- व्यावहारिक है. COVID-19 महामारी ने दुनिया भर में शिक्षा और शैक्षिक प्रणालियों को प्रभावित किया है. COVID-19 के प्रसार को कम करने की कोशिशों में दुनिया भर की सरकारों ने अस्थायी रूप से शिक्षण संस्थानों को बंद करने का निर्णय लिया था. 30 सितंबर 2020 तक, महामारी की वजह से लगभग 1.077 बिलियन शिक्षार्थी वर्तमान में स्कूल बंद होने के कारण प्रभावित हैं. यूनिसेफ की निगरानी के मुताबिक, लॉकडाउन का असर दुनिया की लगभग 61.6 प्रतिशत आबादी पर हुआ.

 

वर्चुअल पढ़ाई बच्चों और टीचर्स के लिए नई प्रैक्टिस
कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है. एहतियातन स्कूल-कॉलेज फिलहाल बंद हैं. दूसरी ओर, पढ़ाई पर ज्यादा असर न हो, इसलिए बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) दी जा रही है. वर्चुअल पढ़ाई बेशक अपने आप में बच्चों और टीचर्स दोनों के लिए ही नई प्रैक्टिस बनकर उभरी और उभर रही है.

लड़कों और लड़कियों के बीच का फर्क और गहरा गया
वर्चुअल पढ़ाई के कारण लड़कों और लड़कियों के बीच का फर्क और गहरा गया. इस फर्क को डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) कहा जा रहा है. डिजिटिल डिवाइड लोगों के बीच का वो फासला है जो इंटरनेट की उपलब्धता से जुड़ा है. डिजिटल लर्निंग डिजिटल डिवाइड यानी फर्क बढ़ा रही है. जो बच्चे गांवों में हैं, पहाड़ों पर हैं या किसी भी दूरदराज के ऐसे इलाके में हैं, जहां बिजली, इंटरनेट नहीं होता, वहां पढ़ाई नहीं हो सकेगी.

ऑनलाइन शिक्षा कोरोना काल में एक मजबूरी
ऑनलाइन शिक्षा को कोरोना काल में एक मजबूरी के रुप में देखा जा रहा है. कह सकते हैं कि यह समय की मांग है. महामारी के दौरान शारीरिक दूरी बनाए रखने की स्थिति में ऑनलाइन शिक्षा ही सही ठीक रही है. हालांकि इसकी फिजिकल स्कूल और क्लास से कोई तुलना नहीं है. अच्छी तरह सीखने के स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा स्कूली कक्षा की जगह नहीं ले सकती है.

ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण भारत की पहुंच से बहुत दूर
लेकिन दूसरी ओर ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण भारत की पहुंच से बहुत दूर और गैर- व्यावहारिक है. ये भी सच है कि कक्षा की तुलना ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से की जाए इससे भारत के बहुसंख्यक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वंचित समुदाय के बच्चों के लिए पर्याप्त साधन और इंटरनेट डाटा जुटाना मुश्किल है.

भारत में लड़कियों के लिए कितनी अनुकूल
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं. ग्रामीण भारत में यह अनुपात और अधिक असंतुलित है. यहां पुरुषों की तुलना में महज 28 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि छोटी लड़कियों के लिए स्मार्ट फोन और इंटरनेट उपलब्ध कराना कहीं अधिक मुश्किल है.

देश के 5 राज्यों में स्टडी
राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में ये स्टडी की, जिसके नतीजे डराते हैं. जून में 3176 परिवारों पर हुए सर्वे में उत्तर प्रदेश के 11 जिलों, बिहार के 8 जिलों, जबकि असम के 5 जिलों को शामिल किया गया. वहीं तेलंगाना के 4 और दिल्ली का भी 1 जिला इसमें शामिल रहे.

लड़कियों की पढ़ाई सबसे ज्यादा खतरे में 
आर्थिक तौर पर कमजोर तबके के परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70% लोगों ने माना कि उनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं है. ऐसे हालातों में पढ़ाई और उसमें भी लड़कियों की पढ़ाई सबसे ज्यादा खतरे में है.

37% लड़कियां निश्चित नहीं कि वे स्कूल लौट सकेंगी
किशोरावस्था की लगभग 37% लड़कियां इस बात पर निश्चित नहीं कि वे स्कूल लौट सकेंगी. ग्रामीण और आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों की लड़कियां पहले से ही इस जद में हैं. लड़कों की बजाए दोगुनी लड़कियां कुल मिलाकर 4 साल से भी कम समय तक स्कूल जा पाती हैं.

साल 2014 में अफ्रीकन देशों में इबोला महामारी के कहर का अंजाम भी कुछ ऐसा ही था. वहां भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों का स्कूल छूटा. जल्दी शादियां और कम उम्र में मां बनना जैसे दुष्परिमाण वहां भी दिखे थे.     

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