जीवन दायिनी नदियों के साथ हमारा यह कैसा सलूक ?
***************************************************************************

दो नदियों सुवर्णरेखा एवं खरकाई के मुहाने पर बसा है जमशेदपुर या कहें टाटानगर यह झारखंड का एक महत्वपूर्ण शहर है तथा प्रमुख औद्योगिक नगरी, जहां देश का सबसे पुराना स्टील प्लांट है। धीरे धीरे यह एशिया का महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र बन गया। खूबसूरत जंगल और पहाड़ों से घिरा जमशेदपुर। निश्चय ही अपनी साफ सफाई को लेकर यह अन्य शहरों की तुलना में अब भी काफी बेहतर है। पर जिन नदियों के किनारे यह शहर बसा है, यहां के लोग बसे हैं, उनके साथ हमने क्या किया ? उनके साथ हमारा सलूक कैसा है? हमने अपनी जीवनदायिनी नदियों सुवर्णरेखा एवं खरकाई की यह कैसी गत बना दी।

नदियों के साथ हमारा गलत सलूक
***********************************************

जिन नदियों के पानी का इस्तेमाल हम अपनी जीवन रक्षा के लिए करते रहे। पीने से लेकर घर परिवार की जरूरतों तक के लिए पानी जहां से हम पाते रहे। जहां हमारी कई पीढ़ियां जीवन एवं आश्रय पाती रहीं, उसे महज अपनी सुख सुविधा एवं जरूरतों के लिए हमने गंदे नाले में बदल दिया। घर के सीवेज से लेकर आसपास के छोटे बड़े कल कारखानों, उद्योग-धंधों का गंदा, प्रदूषित, केमिकल युक्त विषैला पानी इन नदियों में छोड़ते रहे, गिराते रहे। इस क्रम में यह भूल गए कि शहर से बाहर की, आसपास की काफी बड़ी आबादी इनके किनारे एवं आसपास रहती है तथा अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की, पानी की जरूरतों के लिए वे इसी पर निर्भर हैं।

 

यह कैसी आस्था, कैसा विश्वास, कैसी परम्पराएं ?
***************************************************************

हम भारतीय नदियों को मां का दर्जा एवं सम्मान देते हैं।पर केमिकल युक्त मूर्तियों के भसान से लेकर पूजा पाठ एवं कर्मकांड के बाद की तमाम बची खुची सामग्री को इसमें प्रवाहित करना सर्वथा उचित एवं पुण्य का काम मानते हैं। बहुत कुछ हम परम्पराओं एवं मान्यताओं के नाम पर करते हैं। पर हमारी इस सोच, व्यवहार एवं आदत ने हमारे नदियों तालाबों झीलों को बदहाल बना दिया। आखिर यह कैसा सम्मान है ? हमें कुरीतियों, रूढ़ियों, परम्पराओं, जड़ मान्यताओं से खुद को मुक्त करते हुए आज के बदलते समय एवं स्वरूप के अनुसार सोचना, तार्किक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना, बेहतर, सुरक्षित जीवन जीना एवं आगे बढ़ना चाहिए। अपने जीवन की रक्षा के लिए प्रकृति एवं पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। अपना नजरिया बदलें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं। जीवन दायिनी अपने जल स्रोतों को बचाएं। “वैज्ञानिक दृष्टिकोण” वेब पोर्टल आपकी इस मुहिम, इस अभियान / आंदोलन के साथ है।

डी एन एस आनंद
संयोजक पीपुल्स साइंस सेंटर जमशेदपुर झारखंड
महासचिव, साइंस फार सोसायटी झारखंड

 

 

Spread the information