आज 26 नवंबर है। देश के प्रमुख शिक्षाविद एवं जन वैज्ञानिक प्रो. यशपाल का जन्म दिन। प्रो. यशपाल ने देश में जन विज्ञान अभियान / आंदोलन को आगे बढ़ाने, विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने एवं लोगों में वैज्ञानिक चेतना फैलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान निर्दिष्ट सभी नागरिकों में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को अपना जीवन लक्ष्य जैसा बनाया एवं आजीवन इसके लिए कार्य करते रहे। आजादी के 75 वें वर्ष में हम न सिर्फ प्रो. यशपाल के विचारों एवं कार्यों को याद करें बल्कि उसे पूरी क्षमता से आगे बढ़ाएं, उनके सपनों को मंजिल तक पहुंचाएं
यशपाल का जन्म एवं बचपन :
यशपाल का जन्म 26 नवंबर, 1926 को झांग (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर) में हुआ था। उनका बचपन ब्लूचिस्तान के क्वेटा में बीता। 1935 में आए भूकंप के कारण उनका पुस्तैनी घर तहस—नहस हो गया था। इसी दौरान उनके पिता का तबादला मध्यप्रदेश के जबलपुर में हो गया था। वह भी अपने परिवार के साथ जबलपुर आ गए। ब्लूचिस्तान से बंजर क्षेत्र से हरे—भरे मध्यप्रदेश में आना उनके लिए नया अनुभव था। 1947 में वह भी उनके पिता के साथ दिल्ली आ गए।
यशपाल का अध्ययन काल :
यशपाल ने बचपन में उर्दू में अध्ययन किया। मध्यप्रदेश में आने के बाद उन्होंने हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने अनेक धार्मिक पुस्तकों का भी अध्ययन किया। उच्च अध्ययन के लिए उन्होंने विज्ञान को चुना। यशपाल ने पंजाब विश्वविद्यालय से 1949 में भौतिकी मास्टर्स किया और 1958 में उन्होंने मैसेचुएट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी_Massachusetts Institute of Technology से भौतिकी में ही पीएचडी की उपाधि हासिल की थी।
प्रोफेसर यशपाल का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान :
प्रोफेसर यशपाल ने अपना करियर टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च_Tata Institute of Fundamental Research से शुरू किया था। उन्होंने कॉस्मिक रे यानी ब्रहांडीय विकिरणों पर विशेष अध्ययन किया। उनके शोध कार्य के कारण उन्हें पूरी दुनिया में प्रसिद्धी मिली। 1973 में सरकार ने उन्हें अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र यानी Space Applications Centre का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था, जिसने संचार प्रौद्योगिकी में अहम भूमिका निभाई। 
उन्होंने भारत में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट Satellite Instructional Television Experiment (SITE) की नींव रखी। उस समय प्रधान मंत्री रही इंदिरा गांधी की स्वयं इस परियोजना में गहरी रूचि थी। शिक्षा के लिए उपग्रह आधारित प्रणाली के विकास में उनके इस प्रयोग ने अहम भूमिका निभाई। वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों में ने इस प्रयोग के सामाजिक महत्व की काफी तारिफ हुई।
प्रोफेसर यशपाल का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान :
1986 से 1991 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी University Grants Commission (UGC) के अध्यक्ष भी रहे थे। 1993 में बच्चों की शिक्षा में ओवरबर्डन के मुद्दे पर भारत सरकार ने यशपाल की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। समिति ने लर्निंग विथाउट बर्डन_Learning without burden नाम से रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। 1983-1984 में वे योजना आयोग में मुख्य सलाहकार भी रहे थे। प्रोफेसर यशपाल 2007 से 2012 तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यलाय_Jawaharlal Nehru University (JNU) के कुलपति भी रहे थे। एनसीईआरटी ने जब नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क_National Curriculum Framework बनाया, तब यशपाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया। समिति ने उच्च शिक्षा में काफी बदलाव के सुझाव दिए।
प्रोफेसर यशपाल विज्ञान संचारक के रुप में :
आम जनता के बीच यशपाल अपने विशेष अंदाज के कारण प्रसिद्ध थे। वह विज्ञान की बातों को आसान शब्दों में समझाया करते थे। उन्होंने दूरदर्शन पर टर्निंग पाइंट_Turning Point नाम के एक विज्ञान कार्यक्रम को भी होस्ट किया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने मीडिया को विज्ञान लोकप्रियकरण की नयी विधा से परिचित कराया। उन्होंने विज्ञान प्रसार, निस्केयर सहित जैसी सरकारी विज्ञान संचार संस्थाओं का सदैव मार्गदर्शन किया। विज्ञान संचारक के रूप में उनका कार्य एक वैज्ञानिक होने के कारण काफी उल्लेखनिय रहा। 
प्रोफेसर यशपाल विज्ञान की गुत्थियों को सरलता से हल करके जनमानस को विज्ञान से जोड़ते थे। विज्ञान संचारक के रूप में उन्होंने देश में अनेक नये विज्ञान लेखकों को प्रेरित भी किया। लेखक को भी उनके साथ कई बार मिलने का अवसर मिला। विज्ञान प्रसार द्वार पूर्ण सूर्य ग्रहण पर आयोजित एक कार्यक्रम में भोपाल में उन्होंने बड़ी सरलता से बच्चों को सूर्य ग्रहण की वैज्ञानिकता से अवगत कराया था।
प्रोफेसर यशपाल को मिले सम्मान : 
भारत सरकार द्वारा उन्हें 1976 में पद्मभूषण सम्मान से और 2013 में पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। साल 2009 में विज्ञान को बढ़ावा देने और उसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाने की वजह से उन्हें यूनेस्को UNESCO द्वारा कलिंग सम्मान_Kalinga Award से नवाजा गया था। यह पुरस्कार विज्ञान संचार के क्षेत्र में सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। उनके अस्सी वर्ष पूर्ण होने पर विज्ञान प्रसार ने उनके जीवन एवं कार्यो पर एक पुस्तक ‘Yashpal – A life in Science’ को प्रकाशित किया था।
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