समाज, देश में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास के प्रबल पैरोकार थे शहीद भगतसिंह

स्वतंत्र भारत के संविधान ने देश में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को भले ही नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में शामिल किया हो पर भगतसिंह जैसे तर्कशील युवा क्रांतिकारियों ने काफी पहले ही इस विचार को देश के सामने रखा था।
भारतीय संविधान की धारा 51- क, मौलिक कर्तव्य में कहा गया है कि ” हर भारतीय नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य है कि
वह वैज्ञानिक मानसिकता, मानववाद, सुधार एवं खोज भावना विकसित करे “। जाहिर है हमारे संविधान निर्माताओं ने यह स्पष्ट रूप से समझ लिया था कि कुरीतियों, रूढ़ परम्पराओं, जड़ मान्यताओं, पाखंड, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास से मुक्त समतामूलक तर्कशील, विज्ञान सम्मत आधुनिक भारत के निर्माण के लिए यह बेहद जरूरी है।
भगतसिंह महज साढ़े तेईस साल की उम्र में 23 मार्च 1931 को हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। पर इसके कुछ ही समय पूर्व 1930 में उन्होंने एक लेख लिखा था – मैं नास्तिक क्यों हूं। निश्चय ही सार्वजनिक रूप से खुल कर इस तरह की बात कहना, लिखना उस समय भी आसान नहीं रहा होगा। अपने इस आलेख में उन्होंने रूढ़ परम्पराओं जड़ मान्यताओं पर करारा हमला करते हुए अतार्किक विचारों, विश्वासों को नकार दिया एवं तार्किक वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तर्कशील चिंतन परम्परा को स्थापित करने का हर संभव प्रयास किया।

वैज्ञानिक विचार अपनाने पर बल
एक बार इसी मुद्दे पर चर्चा करते हुए भगतसिंह ने कहा था –
हमारी पुरानी विरासत के दो पक्ष होते हैं, एक सांस्कृतिक और दूसरा मिथिहासिक। मैं सांस्कृतिक गुणों – जैसे निष्काम देश सेवा व बलिदान, विश्वासों पर अटल रहना – को पूरी सच्चाई से अपनाकर आगे बढ़ने की कोशिश में हूं, लेकिन मिथिहासिक विचारों को, जो कि पुराने समय की समझ के अनुरूप हैं, वैसे का वैसा मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हूं, क्योंकि विज्ञान ने ज्ञान में खूब वृद्धि की है और वैज्ञानिक विचार अपना कर ही भविष्य की समस्याएं हल हो सकती हैं।
अपनी बात स्पष्ट करते हुए भगतसिंह ने कहा – हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगति का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए प्रकृति पर विजय पाना है। इसको दिशा देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है। यही हमारा दर्शन है।
विश्व की उत्पत्ति संबंधी प्रश्न पर भगतसिंह ने कहा – यह (विश्व सृष्टि) एक प्राकृतिक घटना है। विभिन्न पदार्थों के, निहारिका के आकार में, आकस्मिक मिश्रण से पृथ्वी बनी। इसी प्रकार की घटना से जंतु पैदा हुए और एक लम्बे दौर के बाद मानव। डार्विन की जीव की उत्पत्ति पढ़ो। और तदुपरांत सारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति से लगातार संघर्ष और उस पर विजय पाने की चेष्टा से हुआ। ईश्वर पर विश्वास के सवाल पर उनका मानना था कि – जिस प्रकार लोग भूत-प्रेतों तथा दुष्ट आत्माओं में विश्वास करने लगे, उसी प्रकार ईश्वर को मानने लगे

भगतसिंह का मानना था कि – समाज को इस ईश्वरीय विश्वास के विरुद्ध उसी तरह लड़ना होगा जैसे कि मूर्ति पूजा तथा धर्म संबंधी क्षुद्र विचारों के विरुद्ध लड़ना पड़ा था। इसी प्रकार मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करने लगे तथा यथार्थवादी बन जाए तो उसे ईश्वरीय श्रद्धा को एक ओर फेंक देना चाहिए और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पौरुष के साथ सामना करना चाहिए।
भगतसिंह मानते थे कि – प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी। प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा। यदि काफी तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत अथवा दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है। उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी कभी मिथ्या हो सकता है। लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा सूचक है। पर निरा विश्वास और अंधविश्वास खतरनाक है। यह मस्तिष्क को मूढ़ तथा मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है। जो मनुष्य अपने यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी। यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे। तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशाई करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना।यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ। इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है।

जाहिर है भगतसिंह अंधविश्वास मुक्त एक तर्कशील, विज्ञान सम्मत आधुनिक एवं विकसित भारत के निर्माण का सपना देखते थे।
आइए, 23 मार्च भगतसिंह शहादत दिवस के अवसर पर हम संविधान सम्मत, समतामूलक, विविधतापूर्ण, न्यायसंगत, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, तर्कशील, विज्ञानसम्मत, आधुनिक एवं आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध, संकल्पबद्ध, सतत प्रयासरत एवं संघर्षरत हों।

डी एन एस आनंद
संयोजक, पीपुल्स साइंस सेंटर, जमशेदपुर, झारखंड
महासचिव, साइंस फार सोसायटी, झारखंड

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