पिछले 20 साल से हवा में तेजी से बढ़ा नाइट्रोजन डाईऑक्साइड प्रदूषण का जहर बच्चों का जीवन बर्बाद कर रहा है। अकेले 2019 में 18.5 लाख को इस प्रदूषण से अस्थमा हुआ। इनमें 70 फीसदी मामले शहरों के हैं। यह खुलासे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा पहली बार उपग्रह से जुटाए प्रदूषण के आंकड़े और बीमारी के जमीनी आंकड़ों की तुलना में सामने आए। इन्हें जारी करने वाले नासा वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों का दावा है कि प्रदूषित हवा से बच्चों को नुकसान पहली बार पुख्ता तौर पर सामने आया है।

हर साल 18.5 लाख बच्चे को अस्थमा की चपेट में ले रहा है नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, 20 साल तक जुटाए आंकड़ों को बनाया आधार- नासा का खुलासा | Nitrogen dioxide is ...

इनमें शामिल जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय की ग्लोबल हेल्थ विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर सूसन सी एनेनबर्ग ने बताया, आज दुनिया के किसी भी शहर में रहने का मतलब है कि आप हानिकारक वायु प्रदूषण के बीच सांस ले रहे हैं। वायु प्रदूषण मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह है। शहरों में 50 प्रतिशत आबादी रह रही है, विकसित देशों में तो यह आंकड़ा 80 प्रतिशत तक है।

204 देश, 13 हजार शहर : हाल एक जैसे
अध्ययन में 204 देशों के 13 हजार शहरी क्षेत्रों के 20 साल के उपग्रह डाटा का विश्लेषण हुआ। साल 2000 से 2019 तक नाइट्रोजन डाईऑक्साइड के सालाना उत्सर्जन, इनमें आए बदलाव, जमीनी प्रदूषण की निगरानी के आंकड़े, बीमारियों के आंकड़े, भी विश्लेषण में शामिल हुए।

शिशुओं में दमा रोग (अस्थमा) - BabyCenter India

शहरों में वाहनों से आ रही नाइट्रोजन डाईऑक्साइड
शहरों में कार, ट्रक, बसें सबसे ज्यादा नाइट्रोजन डाईऑक्साइड पैदा करते हैं। इसके अलावा डीजल से चलने वाले उपकरण, पावर प्लांट, टर्बाइन, इंजन, औद्योगिक बॉयलर्स, सीमेंट इकाइयां आदि से भी नाइट्रोजन डाईऑक्साइड पैदा होता है। यही प्रदूषण बच्चों में अस्थमा की सबसे बड़ी वजह है।

बच्चों की सांसों को चाहिए साफ हवा
रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों को अस्थमा व सांस के अन्य रोगों से बचाने के लिए उनकी सांसों को साफ हवा चाहिए। हमें उन्हें यही नहीं दे पा रहे हैं। विश्व के 33 प्रतिशत शहरों में नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षा मानक से कहीं आगे है।

बच्चों को तेजी से गिरफ्त में ले रहा अस्थमा - stree asthma child care tstr - AajTak

परिणाम में यह भी दिखा गिरावट सिर्फ आनुपातिक
सामने आया कि साल 2000 के मुकाबले 2019 में शहरों में नाइट्रोजन की वजह से बच्चों में हो रहे अस्थमा के आंकड़े 19 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत रह गए। वैश्विक औसत भी 10.3 से घटकर 8.5 पर आया। लेकिन यह उत्साहित करने वाली बात नहीं है क्योंकि आबादी बढ़ने से प्रदूषण की वजह से अस्थमा पीड़ित बच्चों की संख्या कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ गई। जो गिरावट नजर आ रही है, वह केवल आनुपातिक है। 2000 में शहरों में 12.20 लाख बच्चों को वायु प्रदूषण से अस्थमा हुआ था, 2019 में संख्या 12.40 लाख दर्ज हुई।

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