भारत का स्वास्थ्य खराब है
चंदशेखर जोशी
यह विध्वंस है, नया सृजन भी नहीं। तबाही के नए अध्याय की तैयारी है। दहशत, असुरक्षा और अफरा-तफरी के बीच जीना मुहाल है।
…कोरोना से बचाव के लिए विश्व बैंक से पहले सेट में भारत को करीब 76 अरब रुपए की मदद मिली। इस रकम से मरीजों का बेहतर उपचार, जांच, अस्पताल-प्रयोगशाला निर्माण और स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा करना था। लगभग 15 महीनों में देश में न कोई नया अस्पताल खुला, न स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। अस्पतालों में कर्मचारियों की भर्ती तक नहीं हुई। पीएम केयर और सीएम सहायता कोष में एकत्र अकूत धन भी कहां गया, किसी को पता नहीं।
…विश्व बैंक, सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निर्माण और विकास के लिए सहायता देता है। यह एक प्रकार का लोन है, जिसे देश ब्याज समेत चुकता करते हैं। विश्व बैंक में अमीर देशों का वर्चस्व है, यह गरीब मुल्कों को भारी लोन में जकडऩे के बाद अपनी नीतियां लागू करवाता है। भारत में तेजी से चल रहे निजीकरण, सरकारी संपत्ति और खेती को बड़े घरानों को बेचने की नीतियां विश्व बैंक व आईएमएफ (International Monetary Fund)की ही देन है। विश्व बैंक से कोरोना के नाम पर लिए गए अरबों रुपए ठिकाने लगा दिए गए हैं। अब नए सिरे से दहशत का माहौल पैदा किया जाने लगा है। फिर फंड आएगा, फिर देश गिरबी रखा जाएगा।
…एक आंकड़े के अनुसार भारत में हर साल लगभग एक करोड़ लोग रोजगार की तलाश में गांव-कस्बे छोड़ महानगरों की ओर जाते हैं। अब ये शहर लोगों को संभालने लायक न बचे। नगरों में एकत्र समूहों से सत्ता को व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह का डर सताता है। लिहाजा इन लोगों को एक झटके में तितर-बितर करने के लिए कोरोना अच्छा बहाना बन गया है।
…पिछले साल लाखों लोग पैदल चलकर बीमार हुए, जानें गंवाई, रोजगार छूटा, आत्महत्याएं हुईं, रेल पटरी पर कट कर मरे। जो बच गए वे फिर रोटी की तलाश में शहरों की ओर बढऩे लगे। कमरों का एक साल का बकाया किराया दिया, बिना स्कूल गए बच्चों की फीस भरी, कुछेक ने जिल्लत भरी दूसरी नौकरी ढूंढी, व्यवसाय कर रहे लोग सबकुछ लुटा कर बिस्तर समेट चुके हैं। इन सभी को फिर से भगाने की तैयारी है।
…प्राइवेट नौकरी करने वालों का बुरा हाल है। भारी तादात में उद्योग बंद हो चुके हैं। कंपनियों ने आधे से अधिक स्टाफ को निकाल दिया है, कई से जबरन इस्तीफे लिखवा लिए, बाकी के दूर तबादले कर दिए हैं। नए श्रम कानूनों के बाद अब ये कर्मचारी हड़ताल व न्यायालयों में जाने लायक भी नहीं रहे। हाल में बैंकों से लोन लेकर घर के पास किसी काम की शुरुआत करने वाले युवा अवसाद से घिर चुके हैं, इनका हस्र बहुत बुरा होना है।
…गरीब-मध्यम परिवारों के वृद्ध, बच्चे, महिलाएं हर समय आशंकित हैं। उनका जीवन कालकोठरी में कैद है। भविष्य का कोई सपना न रहा, जिंदा रहने से भी डर लगता है।
..विश्व स्वास्थ्य दिवस है, सिर्फ आदमखोर ही चंगे हैं.
( चंद्रशेखर जोशी के फेसबुक पेज से साभार )