दयानिधि
भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा एक नए अध्ययन में अलग-अलग प्रकार के कैंसरों में किंडलिन्स-एडाप्टर प्रोटीन के असर की जांच की गई जो कि कशेरूकियों की कोशिकाओं के भीतर मौजूद होता हैं। क्योंकि यह प्रोटीन कई तरह के संकेत देने वाले मार्गों का अहम हिस्सा है, इसलिए इसकी जांच-पड़ताल कर आगे बढ़ने से बीमारी के कई पहलुओं का बिना किसी रुकावट के उपचार किया जा सकता है।
किंडलिन्स एक तरह का एडाप्टर प्रोटीन है जो कि कशेरूकियों में लगभग सभी तरह की कोशिकाओं की कोशिका झिल्लियों से जुड़े हिस्सों के भीतर मौजूद होता है। वह कोशिकाओं के भीतर जैव-रासायनिक संकेतों के लिए कोशिका के संकेतों को भेजते हैं। प्रोटीन, रिसेप्टर्स और ट्रांसक्रिप्शन के साथ प्राकृतिक रूप से आंतरिक क्रिया के द्वारा कोशिका के संकेतों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं, जिससे कोशिका के भीतर रासायनिक संकेतों का काम शुरू हो जाता है।
इन प्रोटीनों की संरचना और संकेतों पर भारी प्रभाव हो सकता है जिससे शरीर के जीवित रहने और सही ढंग से काम करने में जरूरी सभी शारीरिक प्रणालियों के बीच संतुलित या अच्छी स्थिति में भी समस्या उत्पन्न हो सकती है। शरीर की इस संतुलित स्थिति को होमियोस्टेसिस कहते हैं।
निकोटीन, पराबैंगनी किरणों और कई अन्य जैसे असंख्य भौतिक और रासायनिक कैंसर फैलने के प्रभाव में किंडलिन्स में स्थायी बदलाव आ सकता है। इस प्रकार का बदलाव किंडलिन्स कोशिकाओं के भीतर होमियोस्टेसिस की प्रक्रिया में समस्या खड़ी कर सकता है। इसलिये किंडलिन्स में आनुवंशिक बदलावों के परिणामों को समझना कैंसर कोशिकाओं में वृद्धि के जटिल तंत्र को सामने लाने में अहम साबित हो सकती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के कोलकाता स्थित स्वायत्त संस्थान, एस.एन. बोस राष्ट्रीय आधारभूत विज्ञान केन्द्र, की एक टीम ने सामान्य कोशिकाओं को कैंसर से ग्रसित कोशिकाओं में बदलने में किंडलिन्स की भूमिका को समझने के लिये कैंसर जीनोम एटलस से 33 प्रकार के कैंसर वाले 10,000 मरीजों के आंकड़े एकत्रित किए।
प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से देबोज्योति चैधरी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पाया कि किंडलिन-1 (किंडलिन परिवार से संबंधित) स्तन कैंसर में को संचालित करता है और यह कैंसर से संबंधित चयापचयन, जो जीवित शरीरों में जीवन के लिए होने वाली रासायनिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है, जैसे टीसीए चक्र और ग्लाइकोलाइसिस, किंडलिन-2 से नियंत्रित होता है।
देबोज्योति चैधरी ने बताया कि प्रोटीन के किंडलिन परिवार में तीन चीजें शामिल हैं, किंडलिन 1, 2, 3, जिसमें अलग अलग अमीनो एसिड अनुक्रम और उत्तक शामिल हैं। ‘‘हिप्पो सिग्नलिंग कैंसर कोशिकाओं में एक प्रकार का इशारा होता है जो कि कोशिका को दूसरी जगह पर जाने और अन्य उत्तकों पर आक्रमण करने को कहता है। किंडलिन-2 भी हिप्पो सिग्नलिंग के नियम को अपना सकता है।
शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्रकार के कैंसर में मेकेनो केमिकल सिग्नलिंग पर किंडलिन परिवार प्रोटीन के प्रभाव का पता लगाने के लिये इसके आंकड़ों पर संरचनात्मक और कार्यात्मक जीनोमिक्स उपकरणों का उपयोग किया। परिणामों में टयूमर के विकास, मेटास्टेसिस और उपकला-मध्योत्तक संक्रमण (ईएमटी) से संबंधित प्रक्रियाओं में किंडलिन की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
अध्ययन बताता है कि किंडलिन्स की जरूरी संवेदनशील मार्गो में भागीदारी होती हैं। यह अध्ययन किंडलिन के सामान्य ढंग से कार्य नहीं करने और प्रतिकूल उत्तरजीविता परिणामों के बीच संभावित संबंध को लेकर भी सलाह देता है।
यह संरचनात्मक जीनोमिक्स नजरिया जांच मापदंडों के साथ-साथ यह भी स्थापित करता है कि कैंसर के अलग-अलग चरणों और प्रकारों में किंडलिन के रासायनिक सबूत भी प्रदान करता है।
देबोज्याति कहते हैं, ‘‘सभी किंडलिन परिवार के सदस्यों का सामूहिक रूप से अध्ययन करके हम कैंसर जीव विज्ञान में उनकी संभावित भूमिकाओं के बारे में व्यापक समझ हासिल कर सकते हैं।’’ ‘‘इसमें कैंसर कोशिका व्यवहार, ट्यूमर का विकास और चिकित्सा के प्रति प्रतिक्रिया को प्रभावित करने के लिए एक दूसरे के साथ या अन्य सेल्यूलर घटकों के साथ विभिन्न किंडलिन प्रोटीन परस्पर क्रिया की जांच शामिल है।’’
चैधरी के मुताबिक, ‘‘हमारे काम में सामने रखे गये किंडलिन परिवार में बदलाव और म्युटेशन और स्थिरता विश्लेषण से संबंधित आंकड़े पिछले अध्ययनों के साथ सही से मेल खाते हैं। उन्होंने कहा, हमने पाया की स्तन कैंसर में किंडलिन-2 का प्रभाव बढ़ जाता है और यह उपकला-मध्योत्तक संक्रमण (ईएमटी) को सक्रिय करता है।पहले के प्रयोगों में भी इसी प्रकार के परिणाम पाए गए थे।
कम्युनिकेशंस बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन ने ट्यूमर और उनके सूक्ष्म-परिवेश के बीच जटिलता को समझने में मदद की है। किंडलिन्स की क्षमता को एक आशाजनक लक्ष्य के तौर पर सामने लाया है जो उपचार संबंधी रणनीतियों के लिए नए रास्ते खोलता है।
शोध के मुताबिक, केमोरेसिस्टेंस और ट्यूमर रिलेप्स कैंसर विज्ञानियों के समक्ष दो बड़ी चुनौतियां है। वर्तमान अध्ययन कैंसर के उपचार में किंडलिन्स की भूमिका को तय करते हुए भविष्य की चिकित्सा रणनीतियों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाएगा। यह कैंसर के विरूद्ध जारी 4,000 वर्ष पुरानी लड़ाई में एक नई रणनीति का मार्ग प्रशस्त करेगा।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )