ललित मौर्या

स्वास्थ्य में लगातार हो रही प्रगति के बावजूद, दुनिया में लम्बे समय तक जीवित रहने वाली आबादी की जीवन प्रत्याशा 1990 के बाद से केवल साढ़े छह बढ़ी है इसमें कोई शक नहीं कि 19वीं और 20वीं सदी के दौरान जीवन प्रत्याशा में काफी सुधार हुआ। इसका श्रेय स्वास्थ्य क्षेत्र में होती प्रगति, स्वस्थ आहार और बेहतर दवाओं को दिया जा सकता है। हालांकि 20वीं सदी के दौरान जीवन प्रत्याशा में करीब दोगुनी वृद्धि के बाद, पिछले तीन दशकों में इसमें आ रही वृद्धि की रफ्तार धीमी हो गई है।

यह जानकारी शिकागो के इलिनोइस विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर एजिंग में प्रकाशित हुए हैं।

विश्लेषण से पता चला है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में लगातार हो रही प्रगति के बावजूद, दुनिया में लम्बे समय तक जीने वाली आबादी में जीवन प्रत्याशा 1990 के बाद से केवल साढ़े छह बढ़ी है। सुधार की यह दर कुछ वैज्ञानकों की अपेक्षा से बहुत धीमी है। उन्हें उम्मीद थी कि इस सदी में जीवन प्रत्याशा तेजी से बढ़ेगी और आज जन्म लेने वाले ज्यादातर लोग 100 साल से ज्यादा जिएंगें।

अध्ययन के मुताबिक 21वीं सदी में मनुष्यों की जीवन प्रत्याशा अपनी प्राकृतिक सीमा के करीब पहुंच रही है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एस जे ओलशनस्की का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि जीवन प्रत्याशा में सबसे बड़ा सुधार बीमारियों से निपटने के सफल प्रयासों की वजह से आया है। वहीं अब मुख्य चुनौती उम्र बढ़ने के प्रभावों से निपटना है। बता दें कि ओलशनस्की इलिनोइस विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से भी जुड़े हैं।

महामारी विज्ञान और जैव सांख्यिकी विषय के प्रोफेसर ओलशनस्की का कहना है कि, “आजकल अधिकांश लोग बुढ़ापे में दवाओं और चिकित्सा क्षेत्र में हुई प्रगति की वजह से लंबे समय तक जीवित रह रहे हैं।” मतलब की कहीं न कहीं लोग बुढ़ापे में दवाओं के सहारे जी रहे हैं।

लम्बे के साथ-साथ स्वस्थ जीवन भी है महत्वपूर्ण

उनके मुताबिक भले ही चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति हो रही है, लेकिन यह सुधार जीवन में कम अतिरिक्त वर्ष जोड़ रहे हैं। इसका मतलब है कि जीवन प्रत्याशा में तेज वृद्धि का युग अब खत्म हो गया है। उनके मुताबिक अगर वो और साल स्वास्थ्य नहीं रहते हैं तो दवाओं के बल पर जीवन प्रत्याशा को बढ़ाना हानिकारक हो सकता है।

उनका कहना है कि अब हमें ध्यान उन प्रयासों पर केंद्रित करना चाहिए जो बुढ़ापे को धीमा करते हैं और स्वास्थ्य अवधि को बढ़ाते हैं। स्वास्थ्य अवधि एक अपेक्षाकृत नया मीट्रिक है जो यह मापता है कि कोई व्यक्ति कितने वर्षों तक स्वस्थ रहता है, न कि सिर्फ जीवित।

हवाई विश्वविद्यालय, हार्वर्ड और इलिनोइस विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया यह अध्ययन, तीन दशकों से चल रही उस बहस को आगे बढ़ाता है कि मनुष्य कितने समय तक जीवित रह सकता है।

1990 में, ओलशनस्की ने जर्नल साइंस में एक पेपर प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया कि जीवन प्रत्याशा करीब 85 वर्ष की सीमा के करीब पहुंच रही है और इससे जुड़े महत्वपूर्ण लाभ पहले ही प्राप्त हो चुके हैं। हालांकि, कुछ लोगों का मानना ​​​​था कि चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में होती प्रगति 21वीं सदी में भी जीवन प्रत्याशा को बढ़ाती रहेगी।

अब चौंतीस वर्ष बाद, जर्नल नेचर एजिंग में प्रकाशित यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि जीवन प्रत्याशा में हो रही वृद्धि धीमी होती रहेगी क्योंकि पहले से कहीं अधिक लोग बुढ़ापे के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं। अध्ययन में उन देशों से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया गया है, जहां लोग सबसे लम्बे समय तक जीते हैं, इनमें हांगकांग और अमेरिका शामिल थे। यह वो देश हैं जहां हाल के वर्षों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई है।

ओलशनस्की के मुताबिक उनका अध्ययन इस तर्क को चुनौती देता है कि मनुष्य भविष्य में स्वाभाविक रूप से बहुत लंबे समय तक जीवित रहेगा। उनके अनुसार तीन से छह दशक पहले लोग कहीं ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रहते थे। नई दवाओं और चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही प्रगति के बावजूद जीवन में कम अतिरिक्त वर्ष जोड़ रहे हैं।

उनके अनुसार यद्यपि इस सदी में अधिक लोग 100 वर्ष या उससे अधिक आयु तक जीवित रह सकते हैं, फिर भी ये मामले अपवादस्वरूप ही होंगे तथा इनसे औसत जीवन प्रत्याशा में अधिक वृद्धि नहीं होगी। यह निष्कर्ष बीमा और धन प्रबंधन जैसे उद्योगों को चुनौती देता है, जो अक्सर यह मान लेते हैं कि अधिकांश लोग 100 वर्ष तक जीवित रहेंगे।

उनके मुताबिक यह बेहद चिंताजनक है कि इस शताब्दी में आबादी का केवल छोटा सा हिस्सा ही इतने लंबे समय तक जीवित रहेगा।

हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इसका यह कतई भी मतलब नहीं है कि चिकित्सा और विज्ञान आगे मदद नहीं कर सकते। उनके मुताबिक इसका अर्थ है कि सिर्फ जीवन वर्षों को बढ़ाने पर ध्यान देने के बजाय, हमें बुढ़ापे में जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

शोधकर्ताओं के मुताबिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए हम अभी भी बहुत कुछ कर सकते हैं। इसमें असमानता को दूर करना, जीवन पर मंडराते जोखिमों को सीमित करना और लोगों को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना जैसे प्रयास मददगार साबित हो सकते हैं। यह सभी लोगों को लम्बे समय तक स्वस्थ रहने में मददगार हो सकते हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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