ललित मौर्या

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी “वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2024” में कहा गया है कि भारत में सबसे अधिक गरीब रहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 110 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में जीवन काट रहे हैं, जिनमें से 23.4 करोड़ भारतीय हैं। मतलब कि बहुआयामी गरीबी से जूझ रही 21 फीसदी आबादी भारत में है।

रिपोर्ट में साझा आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में यह आंकड़ा 9.3 करोड़, इथियोपिया में 8.6 करोड़, नाइजीरिया में 7.4 करोड़ है। वहीं डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 6.6 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से जूझ रहे हैं।

भारत से खत्म हो रही है जन्मजात गरीबी?
गरीबी से तंग महिला; फोटो: आईस्टॉक

दुनिया में बहुआयामी गरीबी से जूझ रही करीब आधी यानी 48.1 फीसदी आबादी इन्हीं पांच देशों में बसी है। रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि दुनिया में बहुआयामी गरीबी में जीवन गुजारने वालों में करीब आधे बच्चे हैं।

इसका मतलब है कि दुनिया में 18 वर्ष से कम आयु के करीब 58.4 करोड़ बच्चे बहुआयामी गरीबी का शिकार हैं, जो दुनिया में कुल बच्चों का करीब 28 फीसदी है। ऐसे में देखें जाए तो यह आंकड़ा वयस्कों से कहीं अधिक है। बता दें कि दुनिया के 13.5 फीसदी वयस्क बहुआयामी गरीबी से पीड़ित हैं।

गौरतलब है कि वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक का यह यह नवीनतम अपडेट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा जारी किया गया है। 2024 के लिए जारी यह इंडेक्स 112 देशों से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है।

पांच साल में बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले 13.5 करोड़ लोग: नीति आयोग

गरीबी से तंग महिला; फोटो: आईस्टॉक

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनसे यह भी पता चला है कि दुनिया में बहुआयामी गरीबी के सबसे ज्यादा शिकार (83.2 फीसदी) दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में हैं। उप-सहारा अफ्रीका में जहां 55.3 करोड़ लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। वहीं दक्षिण एशिया में यह संख्या 40.2 करोड़ दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि गरीबी से जूझ रही इस आबादी में से करीब दो-तिहाई (65.2 फीसदी) लोग मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। इनकी कुल संख्या 74.9 करोड़ आंकी गई है।

वहीं बहुआयामी गरीबी से जूझ रहे 110 करोड़ लोगों में से करीब 83.7 फीसदी यानी 96.2 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं। वैश्विक स्तर पर, ग्रामीण आबादी का 28 फीसदी हिस्सा गरीबी की मार झेल रहा है, जबकि शहरी आबादी में यह आंकड़ा 6.6 फीसदी है।

यह रिपोर्ट तीन प्रमुख आयामों पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर पर आधारित है। इसके अंतर्गत पोषण, शिशु व वयस्क मृत्युदर, मातृत्व स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में हाजिरी, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, आवास, बिजली, और संपत्ति जैसे पहलुओं पर ध्यान दिया गया है।

बता दें कि यदि कोई परिवार इन संकेतकों में से एक-तिहाई या उससे अधिक से वंचित होता है, तो उसे बहुआयामी गरीब माना जाता है।

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गरीबी से तंग महिला; फोटो: आईस्टॉक

जहां संघर्ष, वहां कहीं अधिक है गरीब?

बहुआयामी गरीबी से जूझ रही यह आबादी बुनियादी सेवाओं से वंचित है। आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 82.8 करोड़ लोग साफ-सफाई और स्वच्छता में कमी से परेशान हैं। वहीं 88.6 करोड़ लोगों के पास उचित आवास नहीं है। 99.8 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास खाना पकाने के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि बेहद गरीबी का सामना करने वाली इस आबादी में से करीब 40 फीसदी (45.5 करोड़) ऐसे देशों में रह रहे हैं, जो हिंसक संघर्षों से ग्रस्त हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से 2023 में किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में सबसे अधिक संघर्ष की घटनाएं सामने आई हैं। इनकी वजह से 11.7 करोड़ से अधिक लोगों को विस्थापन की पीड़ा झेलनी पड़ी है। संघर्ष और अस्थिरता न केवल लोगों को गरीबी के भंवर जाल में धकेल रहे हैं, साथ ही इसे दूर करने के प्रयासों में भी बाधा पहुंचा रहे हैं।

हालांकि राहत की बात यह रही की उन 86 देशों में जहां  तुलना के लिए पर्याप्त आंकड़े मौजूद हैं, उनमें से 76 ने गरीबी में कमी लाने में सफलता हासिल की है। ग्रामीण भारत में गरीबी के लिए जिम्मेवार कारकों को देखें तो कमजोर बुनियादी ढांचा, सेवाओं के वितरण में कमी, अवसरों की कमी जैसे कारक जिम्मेवार है। इतना ही नहीं विशेषकर बच्चों में पोषण की स्थिति अब भी चिंताजनक है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी अभी और प्रयास किए जाने की जरूरत है। कई क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहद खराब है। लोग आज भी पानी, स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके साथ ही कोरोना ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है, जो देश में परिवारों को बहुआयामी गरीबी की ओर धकेल रही है। हालांकि भारत ने विभिन्न पहलों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इसमें अभी और सुधार की गुंजाइश है।

नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में भी जानकारी दी गई है कि 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। नीति आयोग द्वारा की गई गणना के अनुसार, देश में 2005-06 के दौरान बहुआयामी गरीबी 55.3 प्रतिशत थी जो 2013-2014 में 29.2 फीसदी हो गई। अगले दस वर्षों यानी 2022-2023 में यह घटकर 11.3 फीसदी रह गई है।

कहीं न कहीं यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि देश में बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय गिरावट आई है। हालांकि आज भी देश की एक बड़ी आबादी इस गरीबी का शिकार है, जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। मौजूदा रफ्तार से अगले 229 वर्षों में भी दूर नहीं होगी गरीबी: ऑक्सफेम

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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