ललित मौर्या

दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में चिंताजनक रूप से वृद्धि हो रही है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन के मुताबिक 2016 से 2023 के बीच इन दवाओं की बिक्री में 16.3 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।

इसके साथ ही इन दवाओं की बिक्री जो 2016 में 2,950 करोड़ दैनिक खुराक (डीडीडी) के बराबर थी, वो 2023 में बढ़कर 3,430 करोड़ डीडीडी तक पहुंच गई। इसके साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में भी 10.2 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो प्रति हजार लोगों पर 13.7 से बढ़कर 15.2 डीडीडी प्रति दिन पर पहुंच गई है।

जब शोधकर्तओं ने उन देशों में एंटीबायोटिक के उपयोग का आकलन किया, जिनके आंकड़े उपलब्ध नहीं थे, तो उन्होंने पाया कि इस दौरान एंटीबायोटिक की कुल बिक्री में 20.9 फीसदी की वृद्धि हुई है। साथ ही उन्होंने खपत की दर में 13.1 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया है।

हालांकि खपत में हुई यह वृद्धि 2008 से 2015 के बीच दर्ज 35.5 फीसदी की वृद्धि से कम रही। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि महामारी के पहले वर्ष के दौरान विशेष रूप से अमीर देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग तेजी से घट गया था।

एंटीबायोटिक के उपयोग में यह कमी आंशिक रूप से मास्क लगाने और घर पर रहने की नीतियों जैसे उपायों के कारण हुई। इन नीतियों ने सांस से जुड़े संक्रमण के प्रसार को कम करने में मदद की। बता दें कि इन संक्रमणों से निपटने के लिए ही अक्सर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग होता है।

आंकड़ों के मुताबिक महामारी के दौरान जिन देशों में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई उनमें फिलीपींस (-41.8 फीसदी), मलेशिया (-28.4 फीसदी), उरुग्वे (-27.5 फीसदी), इक्वाडोर (-27.2 फीसदी), और अर्जेंटीना (-26.8 फीसदी) शामिल थे।

जरूरत न होने के बावजूद कोरोना में बड़े पैमाने पर किया गया एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल: डब्लूएचओ
वहीं दूसरी तरफ 2021 में जिन देशों में इनकी खपत में अच्छी खासी वृद्धि दर्ज की गई उनमें भारत भी शामिल था, जहां इन दवाओं की खपत में 16.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह इंडोनेशिया (22.8 फीसदी), अर्जेंटीना (18.6 फीसदी), और दक्षिण अफ्रीका (15.4 फीसदी), और पश्चिम अफ्रीका (15.3 फीसदी) शामिल थे।

यह जानकारी वन हेल्थ ट्रस्ट (ओएचटी), पॉपुलेशन काउंसिल, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, ज्यूरिख विश्वविद्यालय, ब्रुसेल्स विश्वविद्यालय, जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय और हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन पर आधारित है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में 67 देशों द्वारा साझा किए एंटीबायोटिक दवाओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। अपने शोध में उन्होंने इंसानों में एंटीबायोटिक की खपत पर कोविड-19 और आर्थिक विकास के प्रभावों का भी अध्ययन किया है।

भारत में भी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में दर्ज की गई 16.5 फीसदी की वृद्धि

शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोना महामारी से पहले 2016 से 2019 के बीच जहां समृद्ध देशों में इन दवाओं की खपत में गिरावट आई थी। वहीं इस दौरान मध्यम आय वाले देशों में इसके उपयोग में वृद्धि हुई। आंकड़ों के मुताबिक जहां इस दौरान मध्यम आय वाले देशों में एंटीबायोटिक की खपत 9.8 फीसदी बढ़ गई। वहीं दूसरी तरह अमीर देशों में इसकी खपत में 5.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

शोध के मुताबिक कोविड-19 महामारी और एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री में आई कमी के बीच मजबूत संबंध है, जो अमीर देशों में कहीं अधिक स्पष्ट है। विश्लेषण से पता चला है कि 2020 में कोरोना की शुरुआत से एंटीबायोटिक के उपयोग में बड़ी गिरावट आई है।

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस : एंटीबायोटिक दवाएं हो रही बेअसर, मामूली संक्रमण भी हों जाएंगे लाइलाज

इन देशों में जहां 2019 से 2020 के बीच एंटीबायोटिक के उपयोग में 17.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। 2021 तक, निम्न-मध्यम आय वाले देशों में अमीर देशों की तुलना में एंटीबायोटिक का उपयोग कहीं अधिक था। दूसरी तरफ अमीर देशों ने इसमें निरंतर गिरावट दर्ज की।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मध्यम आय वाले देशों ने 2016 से 2023 के बीच एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की है।

अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं की खपत जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसके चलते इसमें 2030 तक 52.3 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। जो 7,510 करोड़ दैनिक खुराक (डीडीडी) तक पहुंच सकती है।

50 फीसदी से भी कम प्रभावी रह गई हैं बच्चों को संक्रमण के लिए दी जाने वाली कई एंटीबायोटिक दवाएं

देखा जाए तो हर रोज ये जीवन रक्षक दवाएं लाखों लोगों का जीवन बचाने में मदद करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यदि ये दवाएं काम करना बंद कर दें या बेअसर होने लगें तो क्या होगा। बात अजीब लग सकती है, लग सकता है कि क्या दवाएं भी बेअसर साबित हो सकती हैं। लेकिन यह सच है दुनिया में जिस तरह एंटीबायोटिक्स दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है, वो रोगाणुरोधी प्रतिरोध की एक नई समस्या को जन्म दे रहा है।

इसकी वजह से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) की समस्या तेजी से पैर पसार रही है। आज रोगाणुरोधी प्रतिरोध दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या बन चुका है जो सालाना करीब 50 लाख से ज्यादा जिंदगियों को निगल रहा है। विडम्बना देखिए की इसके लिए एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और बेहद ज्यादा होता इस्तेमाल भी जिम्मेवार है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अपने हालिया निष्कर्ष में माना है कि कोरोना के दौरान इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का भारी मात्रा में उपयोग किया गया। इससे मरीजों की स्थिति में तो कोई खास सुधार तो नहीं हुआ, लेकिन रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के मूक प्रसार और उससे जुड़े खतरों आशंका जरूर बढ़ गई।

इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती मरीजों में से महज आठ फीसदी को बैक्टीरिया के कारण होने वाला संक्रमण था।

सावधान! मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को खतरे में डाल रहा है, कृषि में बढ़ता एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग
इस संक्रमण का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से मुमकिन है, मगर इसके बावजूद कोरोना के हर चार में से तीन मरीज (75 फीसदी) को सिर्फ इस उम्मीद में एंटीबायोटिक दवाएं दी गई कि शायद वो फायदेमंद होंगी। सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन ने भी जानकारी देते हुए लिखा है कि एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत केवल बैक्टीरिया के कारण होने वाले कुछ विशेष संक्रमणों के इलाज के लिए पड़ती है। वहीं बैक्टीरिया से होने वाले कुछ संक्रमण, एंटीबायोटिक दवाओं के बिना भी ठीक हो जाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ यह एंटीबायोटिक दवाएं सर्दी, फ्लू या कोविड-19 जैसे वायरसों पर काम नहीं करती। ऐसे में जब इन एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती, तो वे मदद करने की जगह स्वास्थ्य को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में इन दवाओं का सोच-समझकर विवेकपूर्ण उपयोग बेहद जरूरी है। दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में चिंताजनक रूप से वृद्धि हो रही है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन के मुताबिक 2016 से 2023 के बीच इन दवाओं की बिक्री में 16.3 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।

इसके साथ ही इन दवाओं की बिक्री जो 2016 में 2,950 करोड़ दैनिक खुराक (डीडीडी) के बराबर थी, वो 2023 में बढ़कर 3,430 करोड़ डीडीडी तक पहुंच गई। इसके साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में भी 10.2 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो प्रति हजार लोगों पर 13.7 से बढ़कर 15.2 डीडीडी प्रति दिन पर पहुंच गई है।

जब शोधकर्तओं ने उन देशों में एंटीबायोटिक के उपयोग का आकलन किया, जिनके आंकड़े उपलब्ध नहीं थे, तो उन्होंने पाया कि इस दौरान एंटीबायोटिक की कुल बिक्री में 20.9 फीसदी की वृद्धि हुई है। साथ ही उन्होंने खपत की दर में 13.1 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया है।

हालांकि खपत में हुई यह वृद्धि 2008 से 2015 के बीच दर्ज 35.5 फीसदी की वृद्धि से कम रही। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि महामारी के पहले वर्ष के दौरान विशेष रूप से अमीर देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग तेजी से घट गया था।

एंटीबायोटिक के उपयोग में यह कमी आंशिक रूप से मास्क लगाने और घर पर रहने की नीतियों जैसे उपायों के कारण हुई। इन नीतियों ने सांस से जुड़े संक्रमण के प्रसार को कम करने में मदद की। बता दें कि इन संक्रमणों से निपटने के लिए ही अक्सर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग होता है।

आंकड़ों के मुताबिक महामारी के दौरान जिन देशों में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई उनमें फिलीपींस (-41.8 फीसदी), मलेशिया (-28.4 फीसदी), उरुग्वे (-27.5 फीसदी), इक्वाडोर (-27.2 फीसदी), और अर्जेंटीना (-26.8 फीसदी) शामिल थे।

जरूरत न होने के बावजूद कोरोना में बड़े पैमाने पर किया गया एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल: डब्लूएचओ
कोविड-19 के दौरान, अस्पतालों में भर्ती संक्रमितों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

वहीं दूसरी तरफ 2021 में जिन देशों में इनकी खपत में अच्छी खासी वृद्धि दर्ज की गई उनमें भारत भी शामिल था, जहां इन दवाओं की खपत में 16.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह इंडोनेशिया (22.8 फीसदी), अर्जेंटीना (18.6 फीसदी), और दक्षिण अफ्रीका (15.4 फीसदी), और पश्चिम अफ्रीका (15.3 फीसदी) शामिल थे।

यह जानकारी वन हेल्थ ट्रस्ट (ओएचटी), पॉपुलेशन काउंसिल, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, ज्यूरिख विश्वविद्यालय, ब्रुसेल्स विश्वविद्यालय, जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय और हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन पर आधारित है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में 67 देशों द्वारा साझा किए एंटीबायोटिक दवाओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। अपने शोध में उन्होंने इंसानों में एंटीबायोटिक की खपत पर कोविड-19 और आर्थिक विकास के प्रभावों का भी अध्ययन किया है।

भारत में भी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में दर्ज की गई 16.5 फीसदी की वृद्धि

शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोना महामारी से पहले 2016 से 2019 के बीच जहां समृद्ध देशों में इन दवाओं की खपत में गिरावट आई थी। वहीं इस दौरान मध्यम आय वाले देशों में इसके उपयोग में वृद्धि हुई। आंकड़ों के मुताबिक जहां इस दौरान मध्यम आय वाले देशों में एंटीबायोटिक की खपत 9.8 फीसदी बढ़ गई। वहीं दूसरी तरह अमीर देशों में इसकी खपत में 5.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

शोध के मुताबिक कोविड-19 महामारी और एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री में आई कमी के बीच मजबूत संबंध है, जो अमीर देशों में कहीं अधिक स्पष्ट है। विश्लेषण से पता चला है कि 2020 में कोरोना की शुरुआत से एंटीबायोटिक के उपयोग में बड़ी गिरावट आई है।

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस : एंटीबायोटिक दवाएं हो रही बेअसर, मामूली संक्रमण भी हों जाएंगे लाइलाज
कोविड-19 के दौरान, अस्पतालों में भर्ती संक्रमितों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

इन देशों में जहां 2019 से 2020 के बीच एंटीबायोटिक के उपयोग में 17.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। 2021 तक, निम्न-मध्यम आय वाले देशों में अमीर देशों की तुलना में एंटीबायोटिक का उपयोग कहीं अधिक था। दूसरी तरफ अमीर देशों ने इसमें निरंतर गिरावट दर्ज की। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मध्यम आय वाले देशों ने 2016 से 2023 के बीच एंटीबायोटिक दवाओं की खपत में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की है।

अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं की खपत जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसके चलते इसमें 2030 तक 52.3 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। जो 7,510 करोड़ दैनिक खुराक (डीडीडी) तक पहुंच सकती है।

50 फीसदी से भी कम प्रभावी रह गई हैं बच्चों को संक्रमण के लिए दी जाने वाली कई एंटीबायोटिक दवाएं
कोविड-19 के दौरान, अस्पतालों में भर्ती संक्रमितों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

देखा जाए तो हर रोज ये जीवन रक्षक दवाएं लाखों लोगों का जीवन बचाने में मदद करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यदि ये दवाएं काम करना बंद कर दें या बेअसर होने लगें तो क्या होगा। बात अजीब लग सकती है, लग सकता है कि क्या दवाएं भी बेअसर साबित हो सकती हैं। लेकिन यह सच है दुनिया में जिस तरह एंटीबायोटिक्स दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है, वो रोगाणुरोधी प्रतिरोध की एक नई समस्या को जन्म दे रहा है।

इसकी वजह से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) की समस्या तेजी से पैर पसार रही है। आज रोगाणुरोधी प्रतिरोध दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या बन चुका है जो सालाना करीब 50 लाख से ज्यादा जिंदगियों को निगल रहा है। विडम्बना देखिए की इसके लिए एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और बेहद ज्यादा होता इस्तेमाल भी जिम्मेवार है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अपने हालिया निष्कर्ष में माना है कि कोरोना के दौरान इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का भारी मात्रा में उपयोग किया गया। इससे मरीजों की स्थिति में तो कोई खास सुधार तो नहीं हुआ, लेकिन रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के मूक प्रसार और उससे जुड़े खतरों आशंका जरूर बढ़ गई।

इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती मरीजों में से महज आठ फीसदी को बैक्टीरिया के कारण होने वाला संक्रमण था।

सावधान! मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को खतरे में डाल रहा है, कृषि में बढ़ता एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग
कोविड-19 के दौरान, अस्पतालों में भर्ती संक्रमितों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

इस संक्रमण का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से मुमकिन है, मगर इसके बावजूद कोरोना के हर चार में से तीन मरीज (75 फीसदी) को सिर्फ इस उम्मीद में एंटीबायोटिक दवाएं दी गई कि शायद वो फायदेमंद होंगी।

सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन ने भी जानकारी देते हुए लिखा है कि एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत केवल बैक्टीरिया के कारण होने वाले कुछ विशेष संक्रमणों के इलाज के लिए पड़ती है। वहीं बैक्टीरिया से होने वाले कुछ संक्रमण, एंटीबायोटिक दवाओं के बिना भी ठीक हो जाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ यह एंटीबायोटिक दवाएं सर्दी, फ्लू या कोविड-19 जैसे वायरसों पर काम नहीं करती। ऐसे में जब इन एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती, तो वे मदद करने की जगह स्वास्थ्य को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में इन दवाओं का सोच-समझकर विवेकपूर्ण उपयोग बेहद जरूरी है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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